मानव जीवन का मूल लक्ष्य क्या है? | Vedon ka Divya Gyan | Atmabal - 005 |


भावार्थ:

मनुष्य अपने आपको भी नहीं जानता , यह कितनी बड़ी भूल है | उसे भाषा, साहित्य आदि की जो क्षमता प्राप्त है उससे शरीर और जीवात्मा का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए |

 

सन्देश:

यह मनुष्य  शरीर बार-बार मिलने वाला नहीं है | यह तो मिला था एक साधन के रूप में हमें अपने परम लक्ष्य प्रभु तक पहुंचने के लिए | परन्तु अज्ञानवश सांसारिक भोग विलास में भटक कर हमने यह सुअवसर गँवा दिया | धन-दौलत, साधन, संपत्ति, केवल सत्कर्म | हम यह भूल जाते हैं कि एक दिन हमें इस संसार से जाना है | जिस शरीर को बड़े लाड, प्यार, दुलार से सजाने-संवारने के लिए हम झूठ-सच, नीति-अनीति सभी का सहारा लेते हैं, न जाने क्या-क्या पाप कर्म करते हैं, वही देह अग्नि में जलकर भस्म हो जानी है | एक छण का भी तो भरोसा नहीं है | हमारा सारा ज्ञान, विज्ञान, प्रतिभा, क्षमता, शिक्षा, विद्या सब भौतिक पदार्थों में ही उलझे हैं और इस शरीर के भीतर बैठे इस शरीर के स्वामी आत्मा को हम भूल गए हैं | यह आत्मा ही तो परमात्मा का अंश है पर उसे न जानने से हम अँधेरे में भटक कर सदा दुःख ही पाते हैं

 

आत्मा की पहचान करके सत्य मार्ग पर चल सकने की बुद्धि हमें मिल जाए नाभि मानव जीवन की सार्थकता है | साधारणतया बुद्धि के दो रूप होते हैं | एक कुबुद्धि जो हमें स्वार्थ, मोह, लोभ आदि पापकर्मो की और आकर्षित करती है | दूसरी सुबुद्धि जो हमें अपने हिट के कार्य करने को तो प्रेरित करती है पर पापकर्मो से बचती भी है | इससे भी आगे होती है मेधा जो अच्छे और बुरे कार्यों में भेद कर पाने की क्षमता विकसित करती है | मेधा से भी आगे है प्रज्ञा जो विवेकानुसार लोकहित के कार्य करने की प्रेरणा देती है | इसमें तमोगुण का नाश हो जाता है और मनुष्य अपने स्वार्थ को नहीं देखता है | प्रज्ञा से भी विकसित स्तर पर प्रतिभा है | इसे आत्मिक द्रष्टि भी कह सकते हैं | इस विलक्षण बौद्धिक शक्ति के आधार पर मनुष्य संसार के गूढ़तम रहस्यों को जान लेता है | बुद्धि के सर्वोत्तम रूप को कहते है ऋतंभरा बुद्धि | इसमें केवल सतोगुणी ही शेष रह जाता है | यह सात्विक बुद्धि सदा एक रास रहती है और सत्य को पहचान कर आचरण में धारण एवं पालन करने की क्षमता प्रदान करती है | इसके प्रकाश में प्रत्येक वस्तु  बिलकुल यथावत दिखाई देती है तथा भ्रम व संशय समाप्त हो जाता है |

 

आज मनुष्य भांति-भांति के ज्ञान, विज्ञान, भाषा आदि का अध्ययन करके उसका उपयोग अनेकानेक क्षेत्रों में कर रहा है | सुख सुविधा के साधनों का ढेर लगाता जा रहा है | स्थिति यह है कि एक बटन दबाने मात्र से संसार के किसी भी कोने में से कोई भी कार्य सम्पन्न कर सकना संभव हो गया है | मनुष्य अपनी इस उपलब्धि पर स्वयं को परमात्मा से भी बड़ा समझने की मूर्खता तक करने लगा है | पर क्या इसीलिए हमें यह मानव शरीर प्राप्त हुआ है ? क्या यही इस बुद्धि का उपयोग है ? क्या यही जीवन का लक्ष्य है ?

 

हमें अपनी बुद्धि का विकास करते हुए मानव जीवन के वास्तविक लक्ष्य को पहचान कर उसी और अग्रसर होना चाहिए |

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