प्राकृतिक जीवन और सौ वर्ष तक जीवन | Adopt Natural Life And Live For A Hundred Years |


प्रकृति के विशाल प्रांगण में नाना जीव जन्तु, जलचर, थलचर और नभचर हैं। प्रत्येक का शरीर जटिलताओं से परिपूर्ण है। उनमें अपनी-अपनी विशेषताएं और योग्यताएं हैं, जिनके बल पर वे पुष्पित एवं फलित होते हैं, यौवन और बुढ़ापा पाते हैं, जीवन का पूर्ण सुख प्राप्त करते हैं।

 पृथ्वी पर रहने वाले पशुओं का अध्ययन कीजिये। गाय, भैंस, बकरी, भेड़, घोड़ा, कुत्ता, बिल्ली, ऊँट इत्यादि जानवर अधिकतर प्रकृति के साहचर्य में रहते हैं, उनका भोजन सरल और स्वाभाविक रहता है, खानपान तथा विहार में संयम रहता है। घास या पेड़ पौधों की हरी ताजी पत्तियाँ फल इत्यादि उनकी क्षुधा निवारण करते हैं, सरिताओं और तालाबों के जल में वे अपनी तृष्णा निवारण करते हैं, ऋतुकाल में बिहार करते हैं। प्रकृति स्वयं उन्हें काल और ऋतु के अनुसार कुछ गुप्त आदेश दिया करती है, उनकी स्वयं वृत्तियाँ (Instinets) स्वयं उन्हें आरोग्य की ओर अग्रसर करती रहती हैं। उन्हें ठीक मार्ग पर रखने वाली प्रकृति माता ही है। यदि कभी किसी कारण से वे अस्वस्थ हो भी जाये, तो प्रकृति स्वयं अपने आप उनका उपचार भी करने लगती है। कभी पेट के विश्राम द्वारा, कभी ब्रह्मचर्य द्वारा, किसी न किसी प्रकार जीव−जंतु स्वयं ही स्वास्थ्य की ओर जाया करते हैं।

विश्वास रखिये प्रकृति के नियम पालन करने से रोगी से रोगी व्यक्ति पुनः स्वास्थ्य और आरोग्य प्राप्त कर सकता है, दुबले पतले जर्जरित शरीर पुनः हृदय पुष्ट और सशक्त बन सकते हैं। जो कार्य पौष्टिक दवाइयाँ भी नहीं कर सकती वह प्रकृति के नियमानुसार रहने से अनायास ही प्राप्त हो सकता है। वेदों में निर्देश किया गया है-

कुर्वन्नेवेह कर्र्माणि जिजीविषेच्छतंसमाः। (यजु. 402)
अर्थात् काम करते हुए सौ वर्ष तक जीवित रहने की इच्छा करनी चाहिए।
पश्येम शरदः शतं।
जीवेम शरदः शतं॥
शृणुयाम शरदः शतं।
प्रब्रवाम शरदः शत्ं।
अदीनः स्याम शरदः शतं॥
भूयश्च शरदः शतात (यजु. 3624)

हम सौ वर्ष तक देखें, सौ वर्ष तक जीयें, सौ वर्ष तक सुनें, सौ वर्ष तक बोलें, सौ वर्ष तक समृद्धिशाली रहें।

उपरोक्त कथन में हमारे पूर्व पुरुषों ने यह माना है कि यदि हम सचाई से प्राकृतिक नियमों का पालन करें और उनके अनुसार प्राकृतिक जीवन व्यतीत करें, तो हमें अपनी पूरी आयु (अर्थात् सौ वर्ष) तक जीने के अधिकारी हैं, और यदि पुरुषार्थ करें तो हमें इससे भी अधिक जीना चाहिये।

यदि प्राकृतिक जीवन अपनाया जाय तो सौ वर्ष तक जीवित रहना कोई बड़ी बात नहीं। हमारे पूर्व पुरुष ऋषि मुनि इत्यादि प्रकृति के पुण्य प्रताप से बड़ी बड़ी उम्र वाले हुए हैं। ग्रीसदेश के इतिहास में उल्लेख है- भारत में एक सौ चालीस वर्ष की आयु तक कई व्यक्ति जीते हैं, सौ वर्ष से ऊपर के मनुष्य को एक निराला नाम देने में आता है।यह लेख आज से लगभग दो हजार वर्ष पूर्व का है।

प्रकृति के प्रताप से दीर्घ जीव प्राप्त करने वालों के शुभ नाम और आयु देखिये- यूरोप में थामसपार 152 वर्ष, हेनरी जेन्किन्स 169 वर्ष, मेरी विलिंग 112 वर्ष, काउन्ट डेस्माउ 140 वर्ष, कैथराइन एडन 101 वर्ष, अब्राहम 175 वर्ष, इजाक 180 वर्ष, शेखसादी 102 वर्ष, कवि अवारी 114 वर्ष महाराष्ट्र में, निजाम उल्मुल्क 105 वर्ष, मल्लाहारी घनगर 115 वर्ष, पंडित प्रमाकर शास्त्री 109 वर्ष, रामसेठ भुरकीसुनार 105 वर्ष, हरद्वार रामलाल 105 वर्ष।

यदि स्वाभाविक रीतियों से हम जीते चले, प्रकृति के नियमों का पालन करते चलें, तो आयु क्षीण न होगी। दीर्घायु प्राप्त करने के लिए प्राकृतिक नियमों का पालन अत्यन्त आवश्यक है।