क्या करे जब हमारे ऊपर विपत्ति आये | What to do when calamity over us |

अगर आप पर विपत्ति आवे तो घबराओ मत।
आज इंसान की ज़िंदगी मुश्‍किलों के भँवर में फँसी हुई है। पूरी धरती पर एक-के-बाद-एक कहर बरपते ही जा रहे हैं। ऐसा लगता है मानो भूकंप, सुनामी, आग, बाढ़, ज्वालामुखी, बवंडर, आंधी-तूफान, सबने मिलकर इंसान को तबाह करने की कसम खा ली हो। ऊपर से इंसान की पारिवारिक समस्याएँ और उसकी खुद की परेशानियाँ उसका दुख और भी बढ़ा रही हैं। वह डर और खौफ के साए में जी रहा है।

विपत्ति से घबराओ मत।

विपत्ति कड़वी जरूर होती है,
पर याद रखो, चिरायता और नीम जैसी कड़वी चीजों से ही ताप नाश होकर शरीर निर्मल होता है।
विपत्ति में कभी निराश मत होना।
याद रखो, अन्न उपजा कर संसार को सुखी कर देने वाली जल की बूंदें काली घटा से ही बरसती हैं।
विपत्ति असल में उन्हीं को विशेष दुःख देती है, जो उससे डरते हैं।
जिसका मन दृढ़ हो, संसार की अनित्यता का अनुभव करता हो|
और हर एक में भगवान की दया देखकर निडर रहता हो|
उसके लिए विपत्ति फूलों की सेज के समान है।
जैसे रास्ते में दूर से पहाड़ियों को देखकर मुसाफिर घबड़ा उठता है|
कि मैं इन्हें कैसे पार करूंगा|
लेकिन पास पहुँचने पर वे उतनी कठिन नहीं मालूम होती|
यही हाल विपत्तियों का है।
मनुष्य दूर से उन्हें देखकर घबरा उठता है और दुःखी होता है|
परन्तु जब वे ही सिर पर आ पड़ती हैं|
तो धीरज रखने से थोड़ी सी पीड़ा पहुँचाकर ही नष्ट हो जाती है।
जिस तरह बिना खरादे सुन्दर मूर्ति नहीं बनती|
उसी तरह विपत्ति से गढ़े बिना मनुष्य का हृदय सुन्दर नहीं बनता।
विपत्ति प्रेम की कसौटी है।
विपत्ति में पड़े हुए बन्धु बान्धवों में तुम्हारा प्रेम बढ़े|
और वह तुम्हें निरभिमान बनाकर आदर के साथ उनकी सेवा करने को मजबूर कर दे|
तभी समझो कि तुम्हारा प्रेम असली है।
इसी प्रकार तुम्हारे ऊपर विपत्ति पड़ने पर तुम्हारे बन्धु बांधवों और मित्रों की प्रेम परीक्षा हो सकती है।
आचार्य चाणक्य ने कहा है
बीमार होने पर, असमय शत्रु से घिर जाने पर, राजकार्य में सहायक रूप में
तथा मृत्यु पर श्मशान भूमि में ले जाने वाला व्यक्ति सच्चा मित्र और बन्धु है।

काले बादलों के में ही बिजली की चमक छिपी रहती है|
विपत्ति अर्थात् दुःख के बाद सुख, निराशा के बाद आशा, पतझड़ के बाद वसन्त ही सृष्टि का नियम है।
याद रहे कि जब तक सुख की एकरसता को वेदना की विषमता का गहरा आघात नहीं लगता तब तक जीवन के यथार्थ सत्य का परिचय नहीं मिल सकता।
विपत्ति पड़ने पर पाँच प्रकार से विचार करो-
1- तुम्हारे अपने ही कर्म का फल है, इसे भोग लोगे तो तुम कर्म के एक कठिन बन्धन से छूट जाओगे।
2- विपत्ति तुम्हारे विश्वास की कसौटी है, इसमें न घबड़ाओगे तो तुम्हें भगवान की कृपा प्राप्त होगी।
3- विपत्ति मंगलमय भगवान का विधान है और उनका विधान कल्याण कारी ही होता है। इस विपत्ति में भी तुम्हारा कल्याण ही भरा है।
4- विपत्ति के रूप में जो कुछ तुम्हें प्राप्त होता है, यह ऐसा ही होने को था, नयी चीज कुछ भी नहीं बन रही है, भगवान का पहले से रचकर रखा हुआ ही दृश्य सामने आता है।
5- जिस देह को, जिस नाम को और जिस नाम तथा देह के सम्बन्ध को सच्चा मानकर तुम विपत्ति से घबराते हो, वह देह, नाम और सम्बन्ध सब आरोप मात्र हैं, इस जन्म से पहले भी तुम्हारा नाम, रूप और सम्बन्ध था, परन्तु आज उससे तुम्हारा कोई सरोकार नहीं है, यही हाल इसका भी है, फिर विपत्ति में घबड़ाना तो मूर्खता ही है, क्योंकि विपत्ति का अनुभव देह, नाम और इनके सम्बन्ध को लेकर ही होता है।
इस बात को याद रखना “डर गए तो विपत्ति है सामना किया तो चुनौती”
आज ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को मुश्‍किल हालात का सामना करना पड़ रहा है।
लेकिन मुश्‍किलों का आना कोई नयी बात नहीं है।
पहले भी लोगों को समस्याएँ झेलनी पड़ी थीं।
हमें याद रखना चाहिए कि हम पर जब मुसीबतें आती हैं|
तो शैतान हमारे बुरे हालात का फायदा उठाकर हमारा विश्‍वास कमज़ोर करना चाहता है|
वह हमारी खुशी छीनना चाहता है।
इसलिए हमें अपने विश्वास को कभी भी कमजोर नहीं होने देना चाहिए |
हमें अपनी ज़िंदगी की अच्छी बातों के बारे में सोचते रहना चाहिए।
क्योकि मन आनन्दित होने से मुख पर भी प्रसन्‍नता छा जाती है, परन्तु मन के दुःख से आत्मा निराश होती है।

एक रिसर्च में डॉक्टरों ने पाया है कि अगर एक बीमार इंसान सोचता है कि वह ठीक हो जाएगा, तो उसे काफी फायदा होता है।
कई मरीज़ों को जब दवाई के रूप में चीनी की गोलियाँ दी गयीं, तो उन्हें काफी राहत मिली, सिर्फ इसलिए कि उन्हें लगा उनका इलाज किया जा रहा है।
वहीं दूसरी तरफ, जब मरीज़ों को बताया गया कि ये गोलियाँ खाने से उन पर बुरा असर हो सकता है तो इस बारे में सोचकर उनकी तबियत और खराब हो गयी।
उसी तरह, अगर हम ज़िंदगी की उन बातों के बारे में सोचते रहेंगे जिन पर हमारा कोई बस नहीं, तो निराशा ही हमारे हाथ लगेगी।

करने प्रार्थना से हमें हर तरह के हालात में मदद मिल सकती है।
आत्मबल, सामर्थ्य देता है, और सामर्थ्य, विद्या प्रदान करती है। विद्या, स्थिरता प्रदान करती है, और स्थिरता, विजय की तरफ ले जाती है।
हर विपत्ति का सामना साहस से करें|

संसार में ऐसा कोई मनुष्य नहीं,
जिसे जीवन में कभी मुसीबतों का, विपत्तियों का सामना न करना पड़ा हो।
दिन और रात के समान सुख-दुख का कालचक्र सदा घूमता ही रहता है।
जैसे दिन के बाद रात्रि का आना अवश्यम्भावी है, वैसे ही सुख के बाद दुःख का भी आना अनिवार्य है।
दुःख भी आध्यात्मिकता की परीक्षा होती है।
जैसे सुवर्ण अग्नि में तपकर अधिक सतेज बनता है,
वैसे ही धैर्यवान मनुष्य विपत्तियों का साहस के साथ सामना करते हुए जीवन संग्राम में विजय प्राप्त करता है।
विपत्तियों की हम किस तरह उपेक्षा कर सकते हैं
और अनिवार्य होने पर उनका किस तरह मुकाबला कर सकते हैं, इस पर हम विचार करें।

जीवन एक संग्राम है।
इसमें वही व्यक्ति विजय प्राप्त कर सकता है|
जो या तो परिस्थिति के अनुकूल अपने को ढाल लेता है|
या जो अपने पुरुषार्थ के बल पर परिस्थिति को बदल देता है।
हम इन दोनों में से किसी भी एक मार्ग का या समयानुसार दोनों मार्गों का उपयोग कर जीवन-संग्राम में विजयी हो सकते हैं।

स्मरण रखिए, विपत्तियाँ केवल कमजोर, कायर, डरपोक और निठल्ले व्यक्तियों को ही डराती, चमकाती और पराजित करती हैं|
और उन लोगों के वश में रहती हैं जो उनसे जूझने के लिए कमर कसकर तैयार रहते हैं।
ऐसे व्यक्ति भली-भाँति जानते हैं कि जीवन यह फूलों की सेज नहीं वरन् रणभूमि है|
वे इस संघर्ष में सूझबूझ से काम लेते हुए अपना जीवन-क्रम तदनुसार ढाँचे में ढालने का प्रयास करते रहते हैं|

जीवन संग्राम में विजय प्राप्त करने के लिए अपने कार्यक्षेत्र रूपी अखाड़े में निडर होकर खम ठोंक कर लड़ते रहने की आवश्यकता है।
इसी तरीके से आप सभी सामान्य संकटों और विपत्तियों से लोहा लेकर उन्हें परास्त कर सकते हैं।
राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, ईसा, मोहम्मद, स्वामी दयानन्द, महात्मा गाँधी आदि महापुरुषों के जीवन संकटों और विपत्तियों से भरे हुए थे|
पर वे संकटों की तनिक भी परवाह न करते हुए अपने कर्त्तव्य मार्ग पर अविचल और अबाध गति से अग्रसर होते रहे।
फलतः वे अपने उद्देश्य में सफल हुए और आज संसार उन्हें ईश्वरी अवतार मानकर पूजता है।
विपत्तियों एवं कठिनाइयों से जूझने में ही हमारा पुरुषार्थ है।

आप देखेंगे कि जैसे जैसे हम विपत्तियों का मुकाबला करने के लिए कटिबद्ध होंगे|
वैसे ही विपत्तियाँ दुम दबाकर भाग खड़ी होंगी|
संकटों के सब बादल छँट जाएंगे|
और परिस्थिति निष्कंटक होकर हमारे लिए अनुकूल हो जायगी।



सच कहा है, विपत्ति जब आती है,
तो कायर को ही दहलाती है,
सूरमा नहीं होते विचलित एक कदम
खोते नहीं एक क्षण भी धीरज,
विपत्तियों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं।
जो अपने पक्के इरादों से
विपत्ति से टकरा जायेगा
मुसीबतों को घुटनो पर ला पायेगा| 
वही सुदृढ़ मनोबल वाला मनुष्य,
जिंदगी की यह जंग जीत पाएगा।
विपत्ति का सामना जो हंस के कर पायेगा
जग में उसी का नाम रह जाएगा|