जीवन चाहे एक क्षण का हो वह क्षण तेजस्वी होना चाहिये। (श्री संत तुकडोजी महाराज)
जीवन का चाहे एक क्षण हो पर वह क्षण तेजस्वी होना चाहिये। गीदड़ बन कर सैकड़ों वर्ष तक जिन्दा रहना किस काम का? मुर्दार भावनाओं से तुमने अपनी शक्ति को छिपा रक्खा है और क्षुद्र उपभोगों के पीछे गुलाम बनकर दौड़ने में ही तुम अपना कल्याण समझ रहे हो इस अमूल्य शरीर की कीमत तुमने पशु तुल्य बना रक्खी है। भोगपरायण जीवन तो कुत्ता भी जी सकता है।
क्या धनवान बनने से लोग तुम्हारा आदर करेंगे
और तुम्हारा नाम अमर बना रहेगा? व्यसनी श्रीमान को लोग कुत्ते से भी बदतर समझते हैं और एक टूटा फूटा गरीब यदि गुणवान है तो वह उससे लाख दर्जे अच्छा है। अपने जीवन को पवित्र और ऊंचा बनाओ इसी में तुम्हारी भलाई है। इसी मानव शरीर को पाकर अपनी करतूत से अनेक व्यक्ति महापुरुष, महात्मा और अवतार बन गये है और तुम यदि सावधान वृत्ति से कर्तव्य करोगे, तो तुम्हारे लिए भी वह विजय दिन दूर नहीं है। तुम्हारा कर्तव्य है कि
देश में आवश्यक संगठन का कार्य प्रारंभ करो, स्वयं मजबूत बनो और दूसरों को भी उठाओ। जहाँ जहाँ जाओ अपने ही विचार के तेजस्वी नागरिकों का निर्माण करो। एक साधक यदि सौ सौ दो दो सौ अपने समान वीर बना देगा, तो अल्पकाल में एक लाख सैनिक तैयार हो जायेंगे। यदि यही कार्यक्रम चलता रहा तो थोड़े ही समय में सम्पूर्ण भारत में एक अनोखी रौनक पैदा कर देंगे, सारे समाज को दुरुस्त करके दिखायेंगे।