आत्मविश्वास - राजा ब्रूस की सफलता की कहानी
स्काटलैण्ड का राज ब्रूस एक बार शत्रुओं से पराजित हो कर अपना राजपाट खो बैठा। उसने कई बार प्रयत्न किए किन्तु सब में विफल रहा। बार-बार पराजित होने पर उसका आत्मविश्वास लुप्त हो गया। वह दुःखी निराश शत्रुओं से बचने के लिये एक गुफा में छिपा पड़ा था। उसका मन कष्टों और अभावों की कुकल्पना में व्यक्त था। वह संसार को दुःखमय समझ कर अपने जीवन को धिक्कार रहा था। मन तो बड़ा हठीला, चंचल, दृढ़ आर बलवान् है। जब यह नैराश्य और निर्बलता की ओर उन्मुख होता है, तो अपने प्रति संदेह, दुःखों, विफलता, अवगुण, कमजोरी से परिपूर्ण हो उठता है।
बार-बार गिरती है पर पुनः नए उत्साह लगन अध्यवसाय से पुनः प्रयत्न करती है। मकड़ी के प्रयत्नों की निष्फलता ने उसे संकल्प विकल्प में डाले रखा। कुछ देर पश्चात् उसने देखा कि मकड़ी एक सूक्ष्म तन्तु को बुनने में सफल मनोरथ हो गई। जाला बढ़ता गया और अन्तः वह उसे पूर्ण कर सकी।
ब्रूस सोचने लगा, “इस क्षुद्र निर्बल मकड़ी में भी कितना प्रयत्न, श्रम, लगन और परिश्रमशीलता है। इसने चंचल चित्त को इष्ट सिद्धि में एकाग्र किए रखा। विफलता की परवाह न की प्रत्युत दृढ़ता से लक्ष्य पर लगी रही। मैं भी पुनः प्रयत्न करूंगा और अवश्य सफल मनोरथ हूँगा। मैं चित्त विक्षेप नहीं होने दूँगा, पुनः पुन प्रयत्न करूंगा, मन को निरन्तर एकाग्र करूंगा”।
उसका आत्मविश्वास जाग्रत हो गया। ऐसा सोचकर वह मुस्तैदी से अपने काम में लग गया। उसने टूटी-फूटी सेना और रुपया संग्रह किया। एक दिन वह पूरी सफलता प्राप्त कर सका।