बुद्ध बारह वर्ष के तप के उपरान्त जब अपने ग्रह नगर लौटे तो सारे नगर में हर्ष की लहर फैल गई और पूरे नगरवासी उनके स्वागत के लिए दौड़ पड़े। किन्तु पिता शुद्धोधन बड़े कुपित थे कि मेरा बेटा और भिक्षुओं के वेश में दर-दर मारा मारा फिरे। मेरे राज्य में किस बात की कमी है। लोगों के बहुत समझाने पर पिता बुद्ध के स्वागत के लिए नगर की सीमा पर गये तो किन्तु भौंहें क्रोध से तनी थीं। बुद्ध के मुख मण्डल पर परम शान्ति झलकती देखकर पिता का क्रोध ठण्डा तो हुआ किन्तु शिकायत फिर भी बनी थी कि उनका बेटा होकर इस वेश में क्यों घूमता फिरता है?

कुछ मनुष्य उसी समय में ठहरे रहते हैं। कुछ आगे बढ़ जाते हैं। जो ठहरे रहते हैं, उन्हें समझदार नहीं कहा जा सकता जो आगे बढ़ते हैं वे ही जीवन में कुछ कर जाते हैं।