इन
तीन सद्गुणों को ग्रहण कीजिये| चरित्र के उत्थान के लिये इन तीन
सद्गुणों−होशियारी, सज्जनता और सहनशीलता का विकास अनिवार्य है।
(1) होशियारी: यदि आप व्यवहार में निरन्तर जाग रहें, छोटी−छोटी बातों का ध्यान रखते हो तो आप अपने निश्चित ध्येय की ओर अग्रसर हो सकते हैं। सतर्क व्यक्ति हमेशा सावधान रहता है। वह कोई गलती नहीं करता फलस्वरूप उसे कोई दबा नहीं सकता।
(2) सज्जनता: एक दैवी गुण है जिसका कि मानव समाज में सर्वत्र आदर होता है। सज्जन पुरुष जीवन पर्यन्त वन्दनीय एवं पूजनीय होता है। उसके चरित्र की सफाई, मृदुल व्यवहार एवं पवित्रता उसे उत्तम मार्ग पर चलाती है।
(3) सहनशीलता: एक दैवी सम्पत्ति है। सहन करना कोई हँसी खेल नहीं है प्रत्युत बड़े साहस और वीरता का काम है। केवल महान आत्मायें ही सहनशील होकर अपने मार्ग पर निरन्तर अग्रसर हो सकती हैं।
(1) होशियारी: यदि आप व्यवहार में निरन्तर जाग रहें, छोटी−छोटी बातों का ध्यान रखते हो तो आप अपने निश्चित ध्येय की ओर अग्रसर हो सकते हैं। सतर्क व्यक्ति हमेशा सावधान रहता है। वह कोई गलती नहीं करता फलस्वरूप उसे कोई दबा नहीं सकता।
(2) सज्जनता: एक दैवी गुण है जिसका कि मानव समाज में सर्वत्र आदर होता है। सज्जन पुरुष जीवन पर्यन्त वन्दनीय एवं पूजनीय होता है। उसके चरित्र की सफाई, मृदुल व्यवहार एवं पवित्रता उसे उत्तम मार्ग पर चलाती है।
(3) सहनशीलता: एक दैवी सम्पत्ति है। सहन करना कोई हँसी खेल नहीं है प्रत्युत बड़े साहस और वीरता का काम है। केवल महान आत्मायें ही सहनशील होकर अपने मार्ग पर निरन्तर अग्रसर हो सकती हैं।