अर्जुन कपिध्वज
कहे जाते हैं। अर्जुन के
झंडे पर हनुमान जी विराजते थे। अध्यात्मिक दृष्टि से विचार करने पर विदित होता है
कि अर्जुन को वे गुण प्रिय थे, जिनके कारण हनुमान ने अमर ख्याति प्राप्त की-
अतुलित बलधामं स्वर्ण शैलाभदेहम्। दनुजवनकृशानुँ ज्ञानिनामग्रगण्यम्।।
सकल गुण निधानं वानराणमधीशं। रघुपतिवरदूतं वातजातं नमामि।।
हनुमान जी की स्तुति करते हुए प्रायः यह श्लोक पढ़ा जाता है।
हनुमान जी में
अनेक विशेषताएँ थीं:
(1) हनुमान जी में बल अपार था
(2) हनुमान जी विशाल देह ब्रह्मचर्य से दीप्तिवान् थी
(3) हनुमान जी दुष्टों का दमन करने वाले थे
(4) हनुमान जी ज्ञानियों में अग्रगण्य थे
(5) हनुमान जी गुणवान थे
(6) हनुमान जी भगवान् के प्रिय भक्तों में से थे।
अर्जुन इन गुणों का अनुकरण करना चाहते थे और उन्होंने ये गुण प्राप्त भी कर लिए थे। इसी कारण अपनी ध्वजा का चिह्न हनुमान लिया।
योग ग्रन्थों में लिखा है- “वायु स्थिर होने से मनुष्य मुक्त होता है।”
“प्राण चंचल हुआ, तो मन चंचल होता है, प्राण स्थिर होने से मन स्थिर हो जाता है।”
हनुमान वायु के नाम से पुत्र प्रसिद्ध हैं। हनुमान् का चिह्न धारण करने से स्पष्ट है कि अर्जुन ने वायु अर्थात् प्राणों पर विजय प्राप्त की थी। उसका अन्तःकरण निर्मल था, वायु की भाँति पवित्र था पर इन गुणों के रहते हुए भी वायु में चंचलता स्वभावतः होती है। अर्जुन का भी स्वभाव उसी प्रकार चंचल था और यही कारण हुआ कि वीर, चरित्रवान्, ज्ञान और भक्त होते हुए भी अर्जुन चंचलतावश विषम मनः स्थिति में रहे।
अतुलित बलधामं स्वर्ण शैलाभदेहम्। दनुजवनकृशानुँ ज्ञानिनामग्रगण्यम्।।
सकल गुण निधानं वानराणमधीशं। रघुपतिवरदूतं वातजातं नमामि।।
हनुमान जी की स्तुति करते हुए प्रायः यह श्लोक पढ़ा जाता है।

(1) हनुमान जी में बल अपार था
(2) हनुमान जी विशाल देह ब्रह्मचर्य से दीप्तिवान् थी
(3) हनुमान जी दुष्टों का दमन करने वाले थे
(4) हनुमान जी ज्ञानियों में अग्रगण्य थे
(5) हनुमान जी गुणवान थे
(6) हनुमान जी भगवान् के प्रिय भक्तों में से थे।
अर्जुन इन गुणों का अनुकरण करना चाहते थे और उन्होंने ये गुण प्राप्त भी कर लिए थे। इसी कारण अपनी ध्वजा का चिह्न हनुमान लिया।
योग ग्रन्थों में लिखा है- “वायु स्थिर होने से मनुष्य मुक्त होता है।”
“प्राण चंचल हुआ, तो मन चंचल होता है, प्राण स्थिर होने से मन स्थिर हो जाता है।”
हनुमान वायु के नाम से पुत्र प्रसिद्ध हैं। हनुमान् का चिह्न धारण करने से स्पष्ट है कि अर्जुन ने वायु अर्थात् प्राणों पर विजय प्राप्त की थी। उसका अन्तःकरण निर्मल था, वायु की भाँति पवित्र था पर इन गुणों के रहते हुए भी वायु में चंचलता स्वभावतः होती है। अर्जुन का भी स्वभाव उसी प्रकार चंचल था और यही कारण हुआ कि वीर, चरित्रवान्, ज्ञान और भक्त होते हुए भी अर्जुन चंचलतावश विषम मनः स्थिति में रहे।