रामकृष्ण परमहंस के उपदेश | महापुरुषों के उपदेश | Hindi Updesh - Ramakrishna Paramahansa |

रामकृष्ण परमहंस के उपदेश | महापुरुषों के उपदेश | Hindi Updesh |

किसी गाँव में जाते हुए एक महात्मा के पैर से एक मूर्ख का अंगूठा कुचल गया, क्रोधित हो उसने महात्मा को इतना मारा, कि वह पृथ्वी पर गिर पड़ा। बड़ी कठिनाई से इलाज करने पर एक चेले ने पूछा, ये इलाज करने वाले कौन हैं, साधु बोला, जिसने मुझे पीटा था वह। सच्चे साधु शत्रु और मित्र में भेद नहीं समझते हैं।

माया परमात्मा को ऐसे ढक लेती है जैसे कि बादल सूर्य को ढ़क लेते हैं। जब बादल हट जाते हैं, तो सूर्य दिखाई देता है। ऐसे ही जब माया हट जाती है, तो भगवान के दर्शन हो जाते हैं।

परमात्मा और जीवात्मा में क्या सम्बन्ध है। जैसे किसी बहते पानी में कोई काष्ट का पट्टा पटकने से उसके दो भाग हो जाते हैं। ब्रह्म में कोई भेद नहीं परन्तु माया के कारण वे दिखाई देते हैं।

रामकृष्ण परमहंस

बुलबुला और पानी एक ही वस्तु हैं। वहीं बुलबुला पानी से बन कर उसी में मिल जाता है, ऐसे ही जीवात्मा और परमात्मा एक ही हैं। एक छोटा होने से परिमित है, दूसरा अपार है। एक पराधीन, दूसरा स्वाधीन है।

मछली की ताक में बैठे हुए एक बगुले पर एक शिकारी निशाना लगा रहा था। अवधूत बगुले को पीछे की कुछ चिन्ता थी। अवधूत बगुले को प्रणाम कर बोला मैं भी आपकी तरह ईश्वर के ध्यान में किसी की तरफ निगाह करूं।

मेंढक की दुम जब झड़ जाती है, तब जल और थल दोनों में रहता हैं। इसी तरह अज्ञान रूपी अंधेरा जब नष्ट हो जाता है, तब मनुष्य ईश्वर और संसार दोनों में रहता है।

जिस प्रकार सरसों की भरी हुई बोरी फटने से चारों तरफ सरसों फैल जाती है, उसको इकट्ठा करना मुश्किल है। उसी प्रकार सब दिशाओं में फिरने वाले मोह के चक्कर में ग्रसित मन को इकट्ठा करना कठिन हो जाता है।

ईश्वर का भक्त अपने ईश्वर के लिये सब सुखों तथा सब वस्तुओं का परित्याग कर देता है। जैसे कि चींटी चीनी के ढेर में मर जाती है, परन्तु पीछे नहीं लौटती है।

जैसे कि दूसरों की हत्या के लिये तलवारादि की जरूरत पड़ती है और अपने लिये एक सुई की नोंक ही काफी है। इसी तरह दूसरों को उपदेश देने के लिये बड़े 2 शास्त्रों की जरूरत है। परन्तु आत्मज्ञान के लिये महावाक्य पर दृढं विश्वास करना ही काफी है।

जो प्रलोभनों के बीच में रह कर मन को वश में करके पूर्ण ज्ञान प्राप्त करता है, वही सच्चा सूरमा है।

जिस तरह एक भिखारी एक हाथ से सितारा एक हाथ से ढोलक साथ में मुंह से गाता भी जाता है, उसी तरह संसारी जीवों, तुम भी साँसारिक कर्म करो, परन्तु ईश्वर के नाम को भूल कर उसका भी ध्यान करते रहो।

जिस प्रकार (कुलटा) व्यभिचारिणी स्त्री घर के काम-काज को करते हुए भी अपने दिलदार की याद करती रहती है, उसी प्रकार तुम भी संसार के धन्धों को करते हुए भी ईश्वर का स्मरण करते रहो।

एक बार डुबकी लगाने से अगर मोती मिले तो यह कहना चाहिये कि समुद्र में मोती ही नहीं। दुबारा डुबकी लगाओ, मोती जरूर मिलेंगे, इसी तरह ईश्वर एक बार प्रयत्न करने पर मिले तो यह कहना चाहिये कि ईश्वर ही नहीं है। दुबारा फिर प्रयत्न करो।

कुतुबनुमा की सुई हमेशा उत्तर की ओर रहती है। इसी से समुद्र में जहाजों को अड़चन नहीं पहुँचती। इसी तरह जिसका ध्यान ईश्वर की तरफ है, वह संसार रूपी समुद्र में नहीं भटक सकता है।

पानी पड़ते ही मिट्टी गल जाती है किन्तु पत्थर ज्यों का त्यों बना रहता है। दुर्बल श्रद्धा वाले मनुष्य दुःखों में घबरा जाते हैं किन्तु परमात्मा पर विश्वास करने वाला पत्थर की तरह अविचल बना रहता है। पटरी पर चलने वाला इंजन, लोहे पत्थर से भरे हुए अनेकों डिब्बों को खींचता हुआ दौड़ता रहता है। धर्म मार्ग पर चलने वाला अनेक साँसारिक मनुष्यों को अपने साथ पार करता जाता है।

बच्चे एक खम्भे को पकड़ कर उसके चारों ओर घूमते रहते हैं, किन्तु गिरते नहीं। इसी तरह ईश्वर का अवलम्ब रख कर मनुष्य साँसारिक कर्म करता हुआ भी पतित नहीं होता।

फटे-पुराने जूते और कपड़े पहनने से नम्रता के विचार उत्पन्न होते हैं और कोट-बूट पहनने से अभिमान पैदा होता है। चिकन का कुर्ता और पल्लेदार टोपी पहन कर गज़लें गाने की सूझती है तो गेरुआ वस्त्र पहन कर वैराग्य के विचार उठते हैं। वस्त्र निर्जीव हैं फिर भी उनकी श्रेणी के अनुसार विचार उत्पन्न होते हैं। सादगी पसन्द लोगों को सादे वस्त्र पहनने चाहिये।

सूर्य प्रकाश सब जगह एक समान पड़ता है परन्तु पानी या शीशे जैसे स्वच्छ पदार्थों पर ही, उसका प्रतिबिम्ब पड़ता है, इसी प्रकार का ईश्वर प्रकाश सर्वत्र सामने है, किन्तु वह दिखाई पवित्र आत्माओं में ही देता है।

कचौड़ियाँ बाहर से तो आटे की होती हैं, किन्तु भीतर मसाला भरा होता है, उनकी अच्छाई, बुराई भीतर के मसाले से देखी जाती है, इसी प्रकार सब मनुष्यों के शरीर तो प्रायः एक से ही होते हैं, परन्तु हृदयों में अन्तर होता है, इसी अन्तर के कारण भले और बुरे, की पहचान की जाती है।

मुट्ठी में लगे हुए आम को यदि दबाया जाय तो उसका कुछ रस बाहर निकल पड़ता है पर गुठली और छिलका हाथ में ही लगा रहता है। कष्ट पड़ने पर सत्पुरुषों की आँखों से आँसू तो निकल पड़ते हैं पर उनका धर्म विचलित नहीं होता।

सुई की नोंक में डोरे को तब पिरोया जा सकता है जब डोरे के सिरे को बंटकर नोंकदार बना लिया जाय। ईश्वर के मार्ग में वे प्रवेश कर सकते हैं जो अपने मन को विनम्र और निर्मल बना लेते हैं।

तराजू का वही पलड़ा झुका रहेगा जिसमें बोझ अधिक होगा। नम्र और सरल वह होगा जिसके पास विद्या और विवेक का बोझ होगा।

जिस घड़े के पेंदे में छोटा सा भी छेद हो जाता है उसमें पानी नहीं ठहरता। जिस मनुष्य का आचरण बुरा है उसमें सद्गुण नहीं ठहरते।

कसौटी पर घिसने से मालूम हो जाता है कि सोना खोटा है या खरा। संकट के समय विचलित होने पर पता चलता है कि मनुष्य बुरा है या भला।

अग्नि के सत्संग से काला कोयला, सुनहरी रंग का हो जाता है। सत्पुरुषों के सत्संग से अज्ञान की कालिमा मिट जाती है, और हृदय में ज्ञान का प्रकाश होने लगता है।

फिजूल शक नहीं करना चाहिये। हमेशा प्रसन्न रहिये। चित्त को कोमल, तथा हर्षान्वित बनाओ।

लुहार अपनी धोंकनी को निरंतर इसलिये धोंकता रहता है कि उसकी भट्टी की आग ठीक प्रकार जलती रहे। बुद्धिमान मनुष्य सत्पुरुषों के सत्संग इसलिए करता है कि उसका विवेक सदैव दीप्तिमान रहे।

गिर्द्ध ऊँचे आकाश की स्वच्छ वायु में उड़ता हैं, परन्तु उसकी आंखें सड़े हुए मृत माँस को ढूँढ़ती रहती हैं। पाखंडी मनुष्य बातें तो आत्मज्ञान की बहुत करते हैं, पर मन उनका स्वार्थ साधन में लगा रहता है।

तोता वैसे तो सीता रात-सीता राम रटता रहता है पर जब बिल्ली उसे पकड़ लेती है, तो सीता राम भूल कर टें टें करने लगता है। बकवादी मनुष्य रोज-रोज बहुत ज्ञान विज्ञान की बातें करते हैं, पर जब परीक्षा का समय आता है, तो अपनी बुरी आदतों को ही प्रकट करते हैं।

काजल की कोठरी में कितनी ही सावधानी के साथ रहिए, पर कहीं कहीं दाग लग ही जायेगा। इसी प्रकार दुष्ट स्वभाव के मनुष्यों के साथ रहने से मन में कुछ कुछ दुर्भाव पैदा हो ही जाते हैं।

दर्पण के ऊपर मिट्टी चिपकी हो तो उसके ऊपर सूर्य की किरणें चमकेंगी, जिसका हृदय कलुषित है, उसे ईश्वरीय सत्ता का आभास मिलेगा।

लोहे की कील मिट्टी में तो आसानी से गड़ जाती है, पर पत्थर में नहीं गड़ती। सदुपदेश सज्जनों पर तो प्रभाव करते हैं, पर दुष्टों पर उनका असर नहीं होता।

लोहा जब तक गरम रहता है, तब तक लाल रहता है और जब ठंडा पड़ जाता है, तो उसका रंग काला हो जाता है। सत्पुरुषों के सत्संग से मनुष्य उज्ज्वल रहते हैं, परन्तु अकेले पड़ जाने पर मलीनता जाती है।

कच्ची दवा जैसे स्प्रिट में घुल जाती है, उसी तरह ईश्वर में घुल जाओ।

जिस तरह एक ही बीज से वृक्ष पर नारियल खोपड़ा और गिरी निकलती है, ऐसे ही ईश्वर से स्थावर, जंगम, आधिभौतिक, अध्यात्मिक सृष्टि रची गई है।

जैसे पानी पर खींची हुई लकीर थोड़ी देर भी नहीं ठहर सकती है, उसी तरह सज्जनों का क्रोध शीघ्रातिशीघ्र गायब हो जाता है।

जैसे सफेद वस्त्र में काला निशान हो जाने से बुरा मालूम होता है, उसी तरह सज्जन मनुष्य कोई बुरा काम कर डाले तो उसकी सज्जनता में हानि पहुँचती है।

जैसे चीनी और बालू को मिला देने से चींटी केवल चीनी को ही खाती है, उसी तरह ज्ञानी मनुष्य के दुराचारों की तरफ ध्यान देकर ज्ञान ही प्राप्त करना चाहिए।

पिचकारी एक मालूम पड़ती है पर उसके भीतर का डंडा अलग है। शरीर को मनुष्य समझा जाता है, पर वास्तव में आत्मा उससे अलग है।

दाद को जितना-जितना अधिक खुजाओगे, उतनी ही उसमें खुजली अधिक बढ़ेगी। विषयों को जितना अधिक भोगोगे, भोगेच्छा उतनी ही अधिक तीव्र होगी।

बरसात का पानी ऊंची जगह पर ठहर कर बहकर नीची जगह पर जाता है। उसी तरह ईश्वर की कृपा अहंकारियों पर होकर नम्रों पर ही होती है।

जैसे चलनी से बारीक अन्न नीचे गिर जाता है और मोटा अन्न ऊपर ही रह जाता है। उसी प्रकार दुर्जन मनुष्य भलाई को छोड़कर बुराई ग्रहण कर लेते हैं।

जैसे कि एक स्त्री एक राजा से प्रेम करती है, तो वह एक भिक्षुक से कदापि नहीं कर सकती है। उसी तरह जिस जीवात्मा ने दिव्यानन्द की चुसकी ले ली, तो उसे संसार के दूसरे सुख नहीं रुचते।

जो मनुष्य मूली खाता है, उसके मुँह से मूली की महक निकलती है। इसी तरह मनुष्य के हृदय में जो होता है वही उसके मुँह से निकलता है।

जैसे तालाब से काई को हाथ से हटाने में फिर उसी जगह जाती हैं और किसी खप्पच इत्यादि से हटाने में दे तो फिर उसी जगह नहीं जाती है। उसी तरह माया यदि किसी प्रकार दूर कर दी जाये, तो उसकी फिर से इच्छा होती है, परन्तु हृदय भक्ति और ज्ञान से भर लिया जाये, तो वह फिर नहीं सकती, निश्चय ही इस तरह करने से ईश्वर के दर्शन हो ही जाते हैं।

गाय का दूध उसके सब शरीर में व्याप्त होता है। परन्तु अगर चाहो कि उसके सींगों से निकाल लिया जाये तो ऐसा नहीं कर सकते, दूध स्तनों से ही निकलता है। उसी तरह ईश्वर सब जगह मौजूद है किन्तु मिलता है पवित्र मन्दिरों में ही।

खाज खुजाने के समय तो बड़ा आनन्द आता है, पीछे बड़ा दर्द होता है और घाव पड़ जाते हैं। विषय भोगते समय तो बड़े अच्छे मालूम होते हैं, पर पीछे से वे नारकीय यातना में जलाते हैं।

नाव पानी में रह सकती है, पर पानी नाव में रहेगा, तो उसे ले बैठेगा। मुमुक्षु साँसारिक मनुष्यों में रह सकता है, पर यदि उसके मन में साँसारिक विषय रहेंगे, तो वह पतन की ओर चला जाएगा।

सोने से अनेक प्रकार के आभूषण , लोग अपनी रुचि के अनुसार बना लेते हैं, पर सोना-सोना ही रहता है। मनुष्य अपनी बुद्धि के अनुसार ईश्वर के विभिन्न स्वरूपों की कल्पना कर लेते हैं। वह सभी भावों में समान रूप से रहता है।

घड़े में एक बार पानी भरकर यदि फिर उसे कहीं यों ही रखा रहने दो तो कुछ दिन में पानी सूख जायेगा; किन्तु यदि पानी के भावर ही वह घड़ा रखा रहे तो पानी कभी सूखेगा। यदि एक बार सत्य मार्ग का अवलम्बन करके फिर उस ओर से उदासीन हो जाओ तो परिश्रम व्यर्थ चला जाएगा; किन्तु यदि उस पथ पर सदैव आरुढ़ रहो तो जीवन उसी तत्व से ओत-प्रोत हो जायेगा।

मक्खियाँ किसी स्वच्छ स्थान पर बैठी हों उन्हें कहीं मैले का टोकरा दिखाई पड़ जाए, तो वह उस स्वच्छ स्थान को छोड़कर मैले पर ही बैठेंगी; परन्तु शहर की मक्खियाँ ऐसा नहीं करतीं, वे फूलों को छोड़कर दूषित वस्तुओं पर दृष्टिपात नहीं करतीं। विषयी पुरुष सत्कर्मों को छोड़कर वासनाओं की गन्दगी में भटकते फिरते हैं; किन्तु धैर्यवान् पुरुष प्रभु-प्रेम के अमृत को पाकर दूसरी ओर आँख भी नहीं उठाते।

गुबरैला कीड़ा गोबर में ही रहना पसन्द करता है। कोई उसे अच्छे स्थान पर बिठा दे, तो भी वह उड़कर वहीं पहुँचेगा! दुष्ट मनुष्यों की सत्संग में रुचि नहीं होती, वे तो पाप कर्मों में ही खुश रहते हैं। निराशा नास्तिकता है।


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