हम दूसरों के अशुभ संकल्पों को ग्रहण नहीं करेंगे, हम स्वतन्त्र चिन्तन करेंगे, हम स्वतन्त्रता पूर्वक निज मार्ग का भरोसा कर चलते रहेंगे, कोई हमारे अन्तर्मन में दुष्ट विचार नहीं डाल सकता, क्योंकि हम अपने विचारों के प्रति सच्चे हैं | इस प्रकार के शुभ संकेतों में रमण कर उन्हें कार्यान्वित करने से मनुष्य में मानसिक आत्म-निर्भरता का विकास होता है। व्यक्तित्व के विकास में आत्म–निर्भरता प्रधान अंग है।
सब प्रकार की पराधीनता से भी बुरी पराहीनता |
दूसरों के विचारों और सम्मतियों और संकेतों पर निर्भर रहना।
जरूरत से ज्यादा दूसरों की सहायता पर निर्भर रहने की आदत|
जैसे कोई छोटा बच्चा गिरने के डर से चलने से मना कर दे, तो कुछ समय पश्चात् वह अपंग हो जाता है। यदि इसी प्रकार तुम दूसरों पर निर्भर रहेंगे, तो नैतिक रूप से अपंग व विकृत होते जाओगे।
इससे तुम्हारी शक्ति और आत्म उद्योगी भावना का ह्रास होता जायेगा।
इससे तुम्हारे अंदर हीनता की भावना उत्पन्न होती जाएगी।
सब तरह की पराधीनता दुख का मूल कारण है।
आत्मनिर्भर होने से व्यक्ति में आत्म-विश्वास पैदा होता है|
आत्म-विश्वासी पैदा होने पर व्यक्ति बहादुर और संकल्पवान जाता है।
आत्म-विश्वासी व्यक्ति मुसीबतों से संघर्ष कर पाता है|
आत्मनिर्भर व्यक्ति पृथ्वी और स्वर्ग दोनों जगह सम्मान पाता है |
आत्मनिर्भर व्यक्ति में नेतृत्व करने की क्षमता पैदा होती है|
आत्मनिर्भर व्यक्ति अपने समय का सदुपयोग भली-भांति कर पाने में सक्षम होता है|
तुम्हारा परम सुख स्वयं तुम्हारे भीतर है। उस सुख और आनन्द की प्राप्ति में कोई मनुष्य, पदार्थ और परिस्थिति बाधा नहीं डाल सकती।
तुम स्वयं अपने बुरे भले को सोच सकते हैं।
तुम्हारे सम्बन्ध में तुम्हारे खुद के निर्णय अधिक दूरदर्शी हो सकते हैं।
फिर क्यों तुम दूसरों के सामने हाथ फैला रहे हो |
उनकी योजनाओं के गुलाम बन रहे हो?
तुम्हे स्वयं स्वतन्त्रतापूर्वक विचार करना सीखना होगा |
तुम्हे अपने विचारों पर दृढ़ता के साथ चलना होगा|
तुम्हे स्वयं अपनी समस्याएं हल करनी होंगी|
इसी में तुम्हारा भला हो सकता है|
विजय अपने ही बल से मिलती है|
लक्ष्य पर वही पहुँचता है,|
जो अपनी राह पर ही चल रहा होता है।
जहां तक संभव हो अपना कार्य स्वयं सम्पन्न करने की आदत डालें|
अपने पैरों पर खड़े होने का प्रयास करो|
तुम्हारे अंदर एक नयी शक्ति का संचार हो जायेगा।
तुम जल्दी ही आत्मनिर्भर हो जाओगे|
तुम जीवन की दौड़ में सफलता के कीर्तिमान स्थापित करेंगे|
तुम समुंद्र और पर्वतो का सीना चीर सकोगे।
संसार में सबसे शक्तिशाली मनुष्य वही है जो आत्मनिर्भर है|
यदि तुम्हे किसी का सहारा लेना भी है, तो अपने अन्दर छिपी योग्यता, अपने मनोबल और अपने आत्मविश्वास का सहारा लेना चाहिए|
इससे तुम आत्मनिर्भर बनते जाओगे और आत्मनिर्भर व्यक्ति के लिए सफलता के दरवाजे हमेशा खुले होते हैं।
सारी जिंदगी मेहनत करके आत्मनिर्भर रहना अच्छा होता है, क्युकी कोई तुमसे ये ना कह सके, कि मैं नही होता तो तुम्हारा क्या होता|
0 टिप्पणियाँ