जीवन में सफलता पाने के लिए क्या करना चाहिए | Safalta Pane ke Liye Kya Karna Chahiye |

जीवन में सफलता पाने के लिए क्या करना चाहिए

सफलता हर कोई पाना चाहता है| क्या आप जानते है? जीवन में सफलता पाने के लिए किसी भी इंसान को क्या करना चाहिए? आज में आपको वो चार चीजों के बारे में बताने जा रहा हूँ| अगर ये आपके पास है तो, अप्प जीवन में कुछ भी हाँसिल कर सकते हो है।

कार्य में मन का होना

सबसे पहली चीज है किसी भी कार्य करते समय मन का होना | अगर व्यक्ति का मन है तो वह बड़े से बड़ा काम कर सकता है|

कार्य में लगन का होना

दूसरी चीज है किसी भी कार्य में लगन का होना | कोई भी कार्य सच्ची लगन के बिना पूर्ण नहीं हो सकता है| व्यक्ति को काम के प्रति सच्ची लगन से ही सफलता मिल सकती है।

कार्य में उत्साह का होना

तीसरी चीज है किसी भी कार्य को करते समय उत्साह का होना बहुत ही आवश्यक है| ऊंचे लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मनुष्य के भीतर ललक के साथ उत्साह आवश्यक है। ललक सब में होती है, लेकिन उत्साह के अभाव में अधिकांश लोग उलझ जाते हैं। सफलता के लिए किए जा रहे परिश्रम को ठीक से क्रियान्वित करना हो तो ललक के साथ उत्साह बनाए रखना चाहिए।

कार्य में एकाग्रता का होना

चौथी और सबसे महत्वपूर्ण चीज है, कार्य को करते समय एकग्रता का होना |

एक बाण बनाने वाले के शस्त्रों की प्रशंसा दूर-दूर तक थी। दत्तात्रेय ने सोचा कि इसके बारे में जानना चाहिए कि वह इतने उत्तम बाण कैसे बनाता है। वे उसके द्वार पर पहुँचे और देखा कि चारों ओर बड़ा कोलाहल हो रहा है, बाजे और बरातें सामने से निकल रहे हैं, पर वह अपने काम में पूरे उत्साह से लगा हुआ है, किसी की ओर निगाह उठा कर भी नहीं देखता है | तो उन्हें आभास हुआ की इसी एकग्रता के कारण वह इतने उत्तम हथियार बनाने में सफल होता है। उसकी एकाग्रता से शिक्षा लेते हुए उन्होंने उसे अपना गुरु बना लिया|

ऐसा ही एक उदाहरण सुभाष चन्द्र बोस का है|

नेताजी सुभाषचंद्र बोस के बचपन में एक दिन अध्यापक ने सभी छात्रों को बंगाली में निबंध लिखने को कहा। सुभाष के निबंध में बाकि छात्रों की तुलना में अधिक कमियाँ निकली, तो सभी छात्र उनका मजाक उड़ाने लगे। एक विद्यार्थी सुभाषचंद्र बोस से बोला- “वैसे तो तुम बड़े देशभक्त बने फिरते हो मगर अपनी ही भाषा पर तुम्हारी पकड़ इतनी कमजोर क्यों है।”

यह बात सुभाषचन्द्र बोस को बहुत बुरी और यह बात उन्हें अन्दर तक चुभ गई। सुभाषचंद्र बोस ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि वह अपनी भाषा बंगाली सही तरीके से जरुर सीखेंगे। सुभाष ने बंगाली पढ़ने में अपना ध्यान केन्द्रित किया और कुछ ही समय में उसमे महारथ हासिल कर ली। धीरे धीरे वार्षिक परीक्षाये निकट आ गई। जब वार्षिक परीक्षाएं रिजल्ट आया तो सुभाष सिर्फ कक्षा में ही प्रथम नहीं आये बल्कि बंगाली में भी उन्होंने सबसे अधिक अंक प्राप्त किये। यह देखकर विद्यार्थी और शिक्षक सभी दंग रहे गये।

उन्होंने सुभाष से पूछा – यह कैसे संभव हुआ?

तब सुभाष विद्यार्थियों से बोले – यदि मन, लगन, उत्साह और एकग्रता हो तो, इन्सान कुछ भी हाँसिल कर सकता है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ