क्या आत्मविश्वास संसार की सबसे बड़ी शक्ति है? | Vedon ka Divya Gyan | Atmabal -008 |


भावार्थ:

हे मनुष्यों ! तुम्हारी आत्मविश्वास की शक्ति बड़ी प्रबल है | तुम्हारे निश्चय को कोई मिटा नहीं सकता | साधारण विघ्नों की तो बात ही क्या बड़े-बड़े पर्वत तक तेरी राह रोक नहीं सकते | तू सूर्य से भी अधिक बलवान है |

सन्देश:

संसार में यदि कोई सबसे बड़ी शक्ति है, तो वह है आत्मशक्ति | आत्मशक्ति प्रसुप्त को जगाती है, अतिन्द्रिय क्षमताओं को उभरती है तथा भौतिक समृद्धि के अर्जन की क्षमता प्रदान करती है | उसी के बल पर जीवन निर्वाह के सारे क्रिया-कलाप होते हैं, सुविधा सामग्री को जुटाने तथा उनका सुनियोजन करने के मार्ग प्रशस्त होता है | अपना तथा औरों का भला करने की एक सीमित सामर्थ्य ही बुद्धि के सहारे करना संभव है, किन्तु आत्मबल के बलबूते ऊंचा उठने, आगे बढ़ने की ऐसी प्रखरता प्राप्त की जा सकती है, जिससे मात्र अपना ही नहीं, संसार भर का उत्थान-अभुदय भी संभव हो सके | साधन संपन्न व्यक्ति में भी यदि आत्मशक्ति का आभाव है तो वह सुख भोग नहीं पाते, किन्तु आत्मबल के धनी इसी जीवन में स्वर्ग-मुक्ति का परमानन्द प्राप्त करते है और परमात्मा के साथ तादात्म्य स्थापित करके  निरंतर जीवन लक्ष्य की और बढ़ते रहते है |

 

हम साधारणतः बाहरी द्रष्टि से इस शरीर को ही देखकर सबकुछ समझते हैं | परन्तु हमारा जीवन तो शरीर, प्राण, मन, बुद्धि, और आत्मा के पांच कोशों से निर्मित है | यह आत्मा उस परब्रह्म परमात्मा का ही अंश है और सदैव नर से नारायण की और बढ़ने में ही प्रयासरत रहती है | उस आत्मा की शक्ति अपरिमित है | उतनी ही जितनी इस संसार के रचने वाले विराट परमेश्वर में है |

इस तथ्य पर विश्वास  करने को ही आत्मविश्वास कहते है |  आत्मविश्वास की गरिमा से परिपूर्ण मनुष्य एक बार जो निर्णय कर लेता है तो संसार की कोई शक्ति उसे डिगा नहीं सकती है | आत्मविश्वास के बलबूते ही हनुमान समुद्र लाँघ गए थे | इसके जाग्रत हो जाने पर अर्जुन ने महाभारत में विजय प्राप्त की थी | वर्तमान में मानव की जितनी भी उपलब्धियां हैं सब दृढ़ इच्छा शक्ति का ही  हैं | मनुष्य हिमालय की चोटी पर पहुंच गया है, आकाश में उड़ता फिरता है, समुद्र  गहराई में खोज करता है | यह सब केवल उसके आत्मविश्वास की प्रबल शक्ति का ही चमत्कार है |

 

समस्या केवल यही है कि मनुष्य न तो आत्मा को पहचानता है और न ही परमात्मा को | वह सांसारिक मृग मरीचिका के पीछे भटकता फिरता है और दुःख पाता है पर उस परम सत्य को जानने का प्रयास ही नहीं करता है | आत्मा तथा परमात्मा का आभास भी प्रायः अधिकतर मनुष्यों को नहीं होता है | यह जागृति लाने का साधना क्या है ? अपनी आत्मा की प्रचंड शक्ति को पहचान कर उसकी ऊर्जा से अपनी व संसार की सुख समृद्धि में व्रद्धि करने का मार्ग क्या है ? वह हे केवल ईश्वरीय सत्ता में परम विशवास | इस विशवास के दृढ़ हो जाने पर हमें सदैव अपनी आत्मा में ही परमेश्वर की उपस्थिति का अनुभव होता रहता है | उसकी उपस्थिति हमें स्वतः ही सत्कर्मों में प्रेरित करती रहती है |

 

आत्मबल ही ईश्वरीय सत्ता का पर्याय ही है |

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ