चाय तो हम सभी रोज पीते ही है, पर क्या आप जानते है कि चाय पीने के नुकसान क्या होते है | दोस्तों आज की इस वीडियो में हम आपको बताने जा रहे है चाय पीने के नुकसान क्या होते है |
चाय पीने वालों का ऐसा अनुभव है कि चाय पीने से स्फूर्ति आती है, सुस्ती दूर होती है और काम करने की शक्ति बढ़ जाती है | लेकिन इसके अलावा एक अनुभव और है वह है, वक्त पर चाय न मिले तो शरीर की सारी मशीनरी ढीली पड़कर काम करना बन्द कर देती है फिर तो आगे बढ़ने के लिए चाय के प्याले को पीने की इच्छा तीव्र रहती है और जब तक चाय का प्याला न मिल जाय, कोई भी काम किया ही नहीं जाता।
आमतौर से देखा जाता है कि मनुष्य को जो समय कि उसके भोजन का
होता है, भूख लग आती है। उस
समय कुछ भी खा लेने से आदमी फिर अपना काम पूर्ववत् ही करने लग जाता है।
लेकिन चाय पर यह बात नहीं लगती। चाय पीने के समय पर जब मनुष्य में शिथिलता
आ जाती है तो चाय के सिवाय अन्य किसी चीज का उपयोग करने पर वह शिथिलता
दूर नहीं होती। उसके लिए तो चाय पीना ही आवश्यक हो जाता है।
इन सारी बातों को देखने से पता चलता है कि चाय में ऐसे पदार्थों का मिश्रण है जो कि
शरीर के मज्जा तन्तुओं-ज्ञान तन्तुओं-पर तुरन्त प्रभाव डालकर मनुष्य को
उसकी वास्तविक स्थिति से भुला देते हैं।
वैज्ञानिकों ने चाय के पर खोज करने में पाया है, कि
चाय में मादक द्रव्यों का समावेश है, साथ ही धीरे-धीरे प्रभाव
डालने वाले विष भी इसमें मिले हुए हैं। ये विष शरीर पर अपना प्रभाव एकाएक नहीं
करते बल्कि धीरे-धीरे शरीर के भीतरी
अवयवों को घेर लेते हैं। जिनके कारण उसके विषाक्त होने का हाल तुरन्त नहीं मालूम होता।
हम जो कुछ खाते हैं वह भोजन प्रणाली द्वारा शरीर में पहुँचता
है। पाचन
प्रणाली में जगह-जगह छोटी-छोटी ग्रन्थियाँ होती हैं और खुरदरापन होता है। जिसके द्वारा
अन्न रस सोख लिया जाता है और जो रक्तादि उपयोगी धातु तैयार करने के स्थान
पर भेज दिया जाता है। चाय का सबसे पहला कार्य रक्त प्रणाली पर होता है।
अन्न प्रणाली की ग्रन्थियाँ और खुरदरा भाग अन्न रस को चूसने में शिथिल हो
जाता है। आमाशय से लेकर अंतड़ियां तक इसके कारण बेकार हो जाती हैं, यह काम चाय में रहने वाला टैनिन एसिड नामक विष करता है। चाय का पेपीन नामक विष भी
टैनिन जैसा ही असर कारक होता हैं।
एक दूसरा विष चाय में कैफीन
नाम का रहता है जो कोष्ठ बद्धता को
उत्पन्न करता है। अक्सर देखा जाता है कि चाय के पीने वालों को तब तक टट्टी नहीं होती जब तक कि
वे चाय न पीलें। वास्तव में चाय टट्टी नहीं करती। गरम-गरम पानी जो चाय में मिला होता है शरीर की अपान वायु को हल्का करता
है और
उसी के कारण मल का निस्सरण होता है, चाय पीने वाले उसे चाय का गुण समझते हैं
जो कि खयाली है।
कैफीन का जहर दिल की धड़कन को
बढ़ा देता है कभी-कभी
तो दिल की धड़कन अधिक बढ़कर आदमी मर तक जाता है। इस जहर से गठिया आदि वात रोग भी उत्पन्न हो जाते हैं। कुछ
डाक्टरों का कहना है कि
गुर्दे पर इस विष का प्रभाव पड़ता है जिसके
कारण पेशाब की मात्रा बढ़ जाती
है। पेशाब की मात्रा में तिगुनी तक वृद्धि हो जाने का लोगों को अनुभव मिला है। चाय के अन्दर रहने वाला यह विष ही मनुष्य को चाय के लिए छटपटाते रहने के लिए बाध्य
करता है, यहाँ
तक कि चाय के अतिरिक्त अन्य किसी चीज द्वारा इस छटपटाहट को बन्द नहीं किया जा सकता।
चाय पीने से शरीर में
स्फूर्ति का जो भान होता है उसका कारण उसमें रहने वाला थीन नामक विष है। यह पहले पहले शरीर में स्फूर्ति और
ताजगी लाता है
पर चूँकि वह स्वाभाविक नहीं होता, उसे
तो वात के स्थान को मूर्छित करके प्राप्त
किया जाता है इसलिए उसका प्रभाव कम होते ही क्रान्ति बढ़ जाती है और खुश्की पैदा हो
जाना आरम्भ हो जाता है।
चक्कर आना, आवाज
बदल जाना, रक्त
विकार उत्पन्न हो जाना, लकवा
लग जाना, वीर्य के अनेक विकार, मूर्छा आ जाना, नींद कम हो जाना आदि
ऐसे रोग हैं
जो चाय के अन्दर रहने वाले साइनोजेन, स्ट्रिक नाइन, साइनाइड आदि विषों के कारण उत्पन्न
होते हैं।
चाय जैसी विषैली और
उत्तेजक वस्तु चीन के पड़ोसी होने और अंग्रेज व्यापारियों के भारत
पर शासन करने के कारण इस देश को मिली है। लार्डकर्जन ने इसके प्रचार में
काफी मदद की है। अन्य रोगों की तरह भारत इस रोग से भी पीड़ित है। जो रोग
से मुक्त होना चाहते हैं, उन्हें
इस रोग से मुक्त होने का
प्रयत्न करना चाहिए।
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