आत्मदर्शन से ही जीवन लक्ष्य की प्राप्ति होती है? | Vedon ka Divya Gyan | Atmabal -013 |


भावार्थ:

हे मनुष्यों ! तुम्हारी आत्मा सूर्य के समान तेजस्वी, प्रकाशमान एवं महान है | अपनी शक्ति को तो पहचानो | देखो तुम्हारी महिमा कितनी विशाल है |

 

सन्देश:

आत्मा और परमात्मा के बीच बड़ा ही घनिष्ठ संबंध है | यह जो आत्मा हमारे शरीर में विराजमान है उस परब्रह्म परमेश्वर का ही अंश है | उसी की सत्ता सभी प्राणियों में विधमान है | हम यह भी कह सकते है कि भगवान् ने अपने प्रतिनिधि के रूप में आत्मा को भेजा है जो इस शरीर के माध्यम से सदैव देवत्व की और अग्रसर होती रहती है | यह हमारा दुर्भाग्य ही है कि अज्ञानवश हम अपनी आत्मा को ही भुला बैठे हैं और कषाय कल्मषों के ढेर में उसे दबा रखा है |

 

जिस प्रकार सूर्य सारे संसार का तेज, प्रकाश, ऊर्जा व जीवन प्रदान करता रहता है उसी प्रकार हमारी आत्मा की महानता भी काम नहीं है | आत्मा को इंद्र भी कहा गया है , ' अहमिंद्रो न परा जिग्ये ' मैं इंद्र हूँ और कभी पराजित नहीं होता | आत्मा की शक्ति अपरिमित है | जिसमें आत्मिक बल है वह कभी पराजित नहीं होता | आत्मबल की सत्ता में ही विजय है और उसके आभाव में पराजय | मनुष्य जब अपनी आत्मा और परमात्मा के सम्बन्ध को श्रद्धा व विश्वासपूर्वक स्वीकार करता लेता है तब वह अपने को सर्वशक्तिमान अनुभव करने लगता है और उसकी हीन भावना दूर हो जाती है | वह फिर किसी कार्य में पराजित नहीं हो सकता | आत्मबल मनुष्य को म्रत्युन्जय बना देती है |

 

आत्मबल एक आंतरिक ज्योति है | आत्मा की शक्ति रोग, शोक आदि दोषो को जलाकर नष्ट कर देती है | पवित्र कर्मों के फलस्वरूप आत्मा के दोष दूर हो जाते है और अन्तः करण की ज्योति प्रकट हो जाती है | यह ज्योति आत्मिक शक्ति के रूप में प्रकट होती है जो दोषो को नष्ट करती है | इसके कारण ह्रदय में दुर्गुणों का प्रवेश बंद हो जाता है | यह एक महान शक्ति है जो मनुष्य में स्फूर्ति और ओज लाती है | तथा बड़े से बड़े कार्य करने की सामर्थ्य उत्पन्न करती है | बज्र के समान यह बड़े से बड़े विघ्नों को नष्ट करके असंभव को भी संभव बना देती है |

 

आत्मिक बल को कहा गया है की यह मेरा पत्थर का कवच है | इस अटूट, अक्षय आंतरिक शक्ति की उपमा वेद ने पत्थर से दी है क्योंकि यह बड़े से बड़े प्रहारों को रोक सकती है | आत्मिक शक्ति अजेय और अघर्षणीय है | यह पाप और पापी दोनों को नष्ट कर देती है | आत्मबल वाला व्यक्ति कभी जीवन में दास या पराधीन नहीं हो सकता है | मनुष्य यशस्वी होता है और समाज में सबसे अग्रणी बनता है |

 

यह हमारा कर्तव्य है कि अपनी आत्मा की प्रचंड शक्ति को पहचाने | सतत आत्मनिरीक्षण करते हुए आत्मा के ऊपर छाए कषाय कल्मषों को दूर करते रहें जिससे हमारा जीवन आत्मप्रकाश से आलोकित होकर तेजस्वी और वर्चस्वी बने | आत्मा की यह शक्ति संसार के असंभव कार्यों को भी संभव बना देती है | परमात्मा की शक्ति के बाद यदि कोई शक्ति है तो वह हमारी आत्मा की ही है | अपनी शक्ति को पहचानना ही ईश्वर की उपासना है |

 

आत्मदर्शन से ही जीवन लक्ष्य की प्राप्ति होती है?

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