आत्मकल्याण की इच्छा करने वाले पुरुष को पहले तप की दीक्षा दी जाती थी | Vedon ka Divya Gyan | Atmabal 014 |

भावार्थ:

आत्मकल्याण की इच्छा करने वाले पुरुष को पहले तप की दीक्षा दी जाती थी | इससे शरीरबल, मनोबल तथा पद-प्रतिष्ठा मिलती है और सुख प्राप्त होता है |

 

सन्देश:

संसार के सभी महापुरुषों ने तप करने पर बड़ा बल दिया है | जीवन में अधिक से अधिक सुख और आनंद प्राप्त करने के लिए तप आवश्यक है | परन्तु तप है क्या ? आजकल तप के नाम पर पाखंड बहुत हो रहा है | तप का अर्थ है धर्म, सत्य और न्याय-मार्ग पर चलते हुए जो विघ्न बाधाएं और कष्ट आये उन्हें सहते हुए आगे ही बढ़ते जाना | तप का अर्थ है भूख-प्यास, गर्मी-सर्दी, सुख-दुःख, हर्ष-शोक और मान-अपमान को संभव से सहन करना | तप का अर्थ है भोजन वस्त्र, व्यायाम, विश्राम, अध्ययन आदि सभी बातों में आवश्यकता के अनुकूल आचरण, जिससे शरीर पूर्ण स्वस्थ रह सके |

 

गीता के अनुसार तप तीन प्रकार का है - शारीरिक तप, वाणी का तप और मानसिक तप | शरीर से हम गुरु, ब्राह्मण, विद्वान आदि का पूजन करे; जिव्ह्या आदि सभी इन्द्रियों को वश में रखें; किसी भी प्राणी को कष्ट न पहुंचाए | वाणी से हम दूसरों को कष्ट देने वाली और चुभने वाली बात न कहें | सदा सत्य बोलें पर कटु-सत्य न बोलें, प्रिय और मीठा ही बोलें | उत्तम ग्रंथों का अध्ययन और चिंतन-मनन करें | मन से हम प्रसन्न रहें, शांत रहें, मौन रहें, मन का निग्रह करें और अंतःकरण को पवित्र रखें, यह मानस तप है |

 

मनुष्य के क्षुद्र स्वार्थ इस उच्च भावना के विरोधी है अतः ऋषियों को मनुष्यों में इस भावना के ज़माने में बड़े कष्ट सहने पड़े, बड़ी-बड़ी तपस्याएं करनी पड़ीं | परन्तु वे द्रढ़ संकल्प का व्रत ग्रहण किये हुए थे, दीक्षित थे, मानो इसी प्रयोजन से जन्मे थे, अतः उन्होंने अपना व्रत पूर्ण किया | उनका कुछ भी स्वार्थ न था | केवल लोक कल्याण के लिए ही तप का अनुष्ठान किया था |

 

अधिकांश लोगों में यह भ्रम है कि तपस्या घोर घने जंगलों में ही होती है जिसमें भूखे प्यासे रहकर शरीर की सूखा दिया जाता है | यह विचार पूरी तरह असत्य और आधारहीन है | सत्य तो यह है कि संसार में रहते हुए विपरीत परिस्थितियों से जूझने का नाम ही तपस्या है | इससे शरीर, मन व आत्मा की शक्ति बढ़ती है |

 

तप का वास्तविक अर्थ यही है कि मनुष्य अपने वक्तिगत स्वार्थों को त्याग दे, सब एक दूसरे का भला चाहें और उनमें सामुदायिक भले की भावना उत्पन्न हो | सब व्यक्तिओं में उत्पन्न इस भावना की मूर्ति ही राष्ट्र है | ऐसे तपस्वी नागरिकों की ऊर्जा ही राष्ट्र को बलवान और तेजस्वी बनती है | भागीरथी जैसे ऋषियों के तप के प्रभाव से यह भारत राष्ट्र ' स्वर्गादपि गरीयसी ' कहलाता था और संसार में  सोने की चिड़ियाँ की उपधि से विभूषित हुआ | समाज और राष्ट्र के हित में अपना सर्वस्व निछावर कर देना ही तप है |

 

हम भी तप के वास्तविक अर्थ को अपने दैनिक जीवन में उतार कर उन्नति के शिखर पर विराजमान हो सकते हैं |

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