आत्मबल में प्रचंड शक्ति होती है | Vedon ka Divya Gyan | Atmabal - 015 |

 भावार्थ:

मैं अकेला ही दस हजार के बराबर हूँ | मेरा आत्मबल, प्राणबल, देखने और सुनने की शक्ति भी दस हजार मनुष्यों के बराबर है | मेरा अपान और व्यान भी दस हजार के बराबर है मैं सारा का सारा दस हजार मनुष्यों के बराबर हूँ | 

 

सन्देश:

आत्मबल और प्राणबल की पुष्टि के लिए जीवन में आनंद और प्रसन्नता अत्यंत आवश्यक है | पर यह तभी संभव है जब देखने सुनने की शक्ति तथा श्वास, प्रश्वास एवं श्री की सभी इन्द्रियां व शरीर का प्रत्येक अंग प्रत्यंग आनंदित हो |

 

यह आनंदित और प्रसन्न होना क्या है ? संयम और मर्यादा में रहते हुए संसार में सबकी भलाई के कार्य करना ही हमें सच्चा आनंद और आंतरिक प्रसन्नता प्रदान कर सकता है | नैतिक साधना द्वारा जब शरीर बलवान हो, मानसिक समरसता हो, कामनाओं का अध्यात्मीकरण हो और ईश्वर के प्रति आत्मसमर्पण के द्वारा एक निश्चित मानसिक स्थिति पैदा हो जाए तो फिर सर्वत्र आनंद ही आनंद रह जायेगा और अंततः परमानन्द की प्राप्ति में सहायक होगा |

 

आनंद और प्रसन्नता से प्रफुल्लित मनुष्य ऐसे सूर्य के सामान होता है जिसकी किरणें अनेक ह्रदयों के शोक रूपी अन्धकार को दूर करती है | मनुष्य को सदा  प्रसन्न रहना चाहिए | प्रसन्नता स्वास्थ्य के लिए भी उत्तम है और आत्मा को भी अपूर्व बल और शक्ति से भर देती है | जो व्यक्ति सदा प्रसन्न रहता है उसके सारे दुःख दूर हो जाते है |

 

सुख में तो सभी हंस सकते है पर जो दुःख में भी प्रसन्न रहना जनता है, हमेशा प्रफुल्लित रह सकता है वही आदर्श व्यक्ति है | जो व्यक्ति विपत्तियों और संकटों में घबराता नहीं अपितु हँसता और मुस्कराता है, वह मानव नहीं देवता है | संसार में जितने भी महापुरुष हुए है सभी बड़े विनोदी रहे हैं | प्रसन्न और आनंदित रहने से आत्मिक बल हजारों गुना बढ़ जाता है | परिस्थितियों से जूझने की प्रचंड शक्ति एवं ऊर्जा अंतः करण में उत्पन्न होती है | मनुष्य दीप्तिमान, श्रेष्ठ, ओजस्वी, तेजस्वी और पराक्रमी बनता है |

 

भगवान राम और योगेश्वर श्री कृष्ण के जीवन को देखो | कितनी विकट परिस्थितियों और विपत्तियां आयी परन्तु हंसते हुए सब कुछ झेला और अग्नि परीक्षा में से  कुंदन के सामान चमकते हुए बाहर आये | महृषि दयानन्द, स्वामी विवेकानंद, श्री बल गंगाधर तिलक, महामना पं. मदन मोहन मालवीय आदि वर्तमान योग में महापुरुषों ने भी इस आंतरिक प्रसन्नता से प्राप्त ऊर्जा के आधार पर ही वह कार्य किये है जो हजारों-लाखों व्यक्तिओं के लिए भी संभव नहीं थे |

 

आज मनुष्य स्वार्थ के वशीभूत है तथा उसमें दिव्यता की इस भावना का लोप हो गया है | जीवन को सदैव प्रसन्नता और आनंद से परिपूर्ण रखो तो आत्मबल हजारों गुना बढ़ जायेगा और एक अकेला व्यक्ति भी दस हजार के बराबर हो जावेगा |

 

आत्मबल में प्रचंड शक्ति होती है

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