मनुष्य की इन्द्रियाँ कभी एक दिशा में स्थिर नहीं रहतीं | Vedon ka Divya Gyan | Atmabal - 016 |

 

                                         

भावार्थ:

मनुष्य की इन्द्रियाँ कभी एक दिशा में स्थिर नहीं रहतीं | अवसर मिलते ही अपने विषयों की ओर दौड़ती हैं इसलिए मनुष्यों को चाहिए की वे इन्द्रियों की विषय लोलुपता के प्रति सदैव सावधान रहे |

 

सन्देश:

मन का निग्रह सभी के लिए आवश्यक है | आत्मोन्नति चाहने वाले प्रत्येक वयक्ति से इसका गहन संबंध है | आंतरिक जीवन के अनुशीलन के लिए और धर्म के वेवहारिक क्षेत्र में सफलता के लिए, इस समस्या से जूझना ही पड़ता है | मन का नियंत्रण किए बिना व्यक्ति अथवा समाज के गुणात्मक विकास का बुनियादी काम कभी भी सुचारु रूप से संपन्न नहीं हो सकता |

 

धार्मिक क्षेत्र में तो मन का एकाग्र रखना बड़ा ही मुश्किल होता है | आंख बंद कर के जप या ध्यान के लिए बैठते ही सभी इन्द्रियां मानो विद्रोह करने को मचलने लगती है | आंख, कान, नाक, जरा सा संकेत पाते ही विचलित होकर इधर-उधर भागने लगते हैं | और मन तो न जाने कहाँ-कहाँ के विचारों को अपनी पिटारी से निकाल कर बैठ जाता है | भगवान् का नाम लेने में जरा भी ध्यान नहीं लगता | यही हाल हमारा वेवहारिक क्षेत्र में भी होता है | कोई भी कार्य ढंग से कर ही नहीं पाते | मन चारों और भागता रहता है और काम बिगड़ जाने पर दुःख व पश्चाताप होता है |

 

मन की चंचलता अवस्था भय, वासना और अपवित्रता के कारण होती है | इसी से हमारे अन्तः करण में एकाग्रता व तन्मयता की ज्योति इधर-उधर हिलती है, कांपती है और बुझने लगती है | मन को भोगो के पीछे दौड़ने देकर और इन्द्रियों का गुलाम बनकर हम ऐसी स्थिति ला देते है जिसमें आत्मा की स्वाधीनता नष्ट हो जाती है | इन्द्रिय संयम और पवित्रता का जीवन ही मुक्ति प्रदान करता है | आध्यात्मिक जीवन संघर्ष और परिश्रम का एक कठोर जीवन है | हम मुक्ति और निर्भयता चाहते है, शरीर और मन की सीमाओं से छुटकारा पाना चाहते है, किन्तु जब तक हम अपनी इच्छाओं और लालसाओं से चिपके रहेंगे, तब तक यह संभव नहीं है |

 

मन की इस चंचलता को एक नियमित दिनचर्या के पालन द्वारा बहुत हद तक कम किया जा सकता है | सुव्यवस्थित ढंग से सोचने की और उसके अनुसार चलने की आदत डालनी चाहिए | व्यक्तित्व के सभी अंगों में पूर्ण सामंजस्य होना चाहिए | उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण है चित्तशुद्धि | सबसे पहले संयम द्वारा और अधिक गंदगी जमा नहीं होने देनी चाहिए | साथ ही विवेक द्वारा पुरानी भ्रांत धारणाओं तथा कषाय कल्मषों को दूर करना चाहिए | चित्तशुद्धि की प्रक्रिया बहुत धीमी होती है पर अभ्यास से यह संभव हो सकता है |

 

मनोनिग्रह एक बहुत ही मजेदार भीतरी खेल है | हारने की संभावना के बावजूद भी एक खिलाडी की मनोव्रती से इस खेल का भरपूर मजा लेना चाहिए | यह खेल हमसे पर्याप्त मात्रा में कौशल, सतर्कता, विनोदप्रियता, सह्रदयता, रणचतुर्य, धीरज और शौर्य की अपेक्षा रखता है जो सैकड़ों असफलताओं के बाद भी हमें टूटने से बचता है | यह आत्मबल का ही कमल है |

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