मन की बुरे विचारों से बचाना है तो इसे बेकार न बैठने दो | Vedon ka Divya Gyan | Atmabal - 018 |

 

भावार्थ:

तुम्हारा मन किन्हीं बुरे विचारों में भटकने न पावे इसलिए उसे सदैव किसी न किसी काम में अटकाए रहो अर्थात उसे बेकार न बैठने दो |

 

सन्देश:

श्री कृष्ण भगवान ने अर्जुन को उपदेश देते हुए बताया था कि संसार में कुछ लोग तो देवी संपदा वाले होते है और कुछ आसुरी संपदा वाले | देवी संपदा वाले शुद्ध अन्तः करण से भय रहित होकर ध्यानयोग से तत्वज्ञान को जानने वाले होते है | वे सदैव सात्विक काम करते है, इन्द्रियों का दमन और स्वाध्याय करते है | मधुरभाषी तथा मन, वाणी और शरीर से किसी को कष्ट न देने वाले होते है | अभिमान उनके निकट नहीं आता है और वे संसार के सारे कार्य करते हुए भी अलिप्त रहते हैं तथा मानव जीवन के उदेश्य को पूरा कर लेते हैं | आसुरी स्वभाव के लोगों के बारे में तो कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं है | चारों ओर ऐसे ही स्वभाव के व्यक्ति दिखाई पद ही जाते है |

 

दैवी या आसुरी संपदा दो भावनाओं का ही नाम है | आसुरी वृति उन मनुष्यों में उत्पन्न होती है जो इस अनित्य संसार की अनित्य वस्तुओं को ही नित्य समझ कर उन्हीं का चिंतन करते रहते हैं | दैवी अथवा आसुरी वृति का मूल कारण अतः करण है, इसी के द्वारा मनुष्य विवश होकर न चाहते हुए भी आसुरी भावनाओं के गंभीर भंवर में फंसता है |

 

आज का मनुष्य तन से तो स्वस्थ दिखाई देता है पर मन से अशांत है | इसका कारण यही है कि उसके मन में सदैव कुविचारों का ही जमघट रहता है | मानसिक प्रदूषण इतना बढ़ता जा रहा है कि सोते-जागते, उठते-बैठते, दिन-रात अश्लील विचार ही हमारे मन को गहरे रहते हैं | इस दुखद स्थिति से अपने को बचाये रखने का एक मात्र उपाय यही है कि मन को सदैव शुद्ध और पवित्र विचारों में लगाए रखें | कभी भी उसे खाली न रहने दे | कहते है ' खाली दिमाग शैतान का घर ' अतः हमें कभी भी अपने मन मस्तिष्क को खाली नहीं छोड़ना चाहिए | हर समय उसे किसी न किसी रचनात्मक कार्य में व्यस्त रखने से मन में कुविचारों का प्रवेश नहीं हो पाता है |

 

मन को इस प्रकार कुविचारों से बचाये रखने का अभ्यास बचपन से ही करना आवश्यक है | बालपन के कोमल मन पर पड़ा हुआ प्रभाव स्थायी होता है | अतः बच्चों को सदैव ऐसे वातावरण में रखना चाहिए जिससे उन्हें सदैव शुभ विचार ही मिले | आँखों और कानों से सदा अच्छी बातें ही देखें और सुने तथा उच्च विचारों से परिपूर्ण ज्ञानवर्धक पुस्तकें ही पढ़ें | विदेशी प्रचार तंत्र के द्वारा हमारी उच्च संस्कृति पर जो कुठाराघात किया जा रहा है उससे स्वयं अपने को और विशेष रूप से बच्चों को बचाकर रखें चाहिए और दैवी संपदा की अभिवर्द्धि में सदैव प्रयासरत रहना चाहिए |

 

'व्यस्त रहो, मस्त रहो, स्वस्थ रहो' मनुष्य जब हर समय किसी न किसी कार्य में व्यस्त रहता है तो वह आनंदमय रहता है, मस्त रहता है | इससे उसका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य भी ठीक रहता है, आत्मबल भी बढ़ता है |

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