सभी लोग एक संकल्पवान हों | Vedon ka Divya Gyan | Atmabal - 019 | Rigveda 10/191/4

 

भावार्थ:

सभी लोग एक संकल्पवान हों | सभी के ह्रदय एक हों मन एक हों ताकि कोई दुखी न रहे |

सन्देश:

मनुष्य सामाजिक प्राणी है | उसका संबंध समाज से है | वह समाज का एक अंग है | समाज के सहयोग से ही मनुष्य अपने जीवन के क्रिया-कलापों को समुचित रीती से चला सकता है | सामाजिक संगठन निर्बल को भी बलवान और शक्तिहीन को भी शक्तिशाली बना देता है | 'संघे शक्तिः कलियुगे' कलियुग में संगठन में ही शक्ति है |

 

सद्गुण युक्त थोड़े से व्यक्ति भी हों तो उनका संगठित होना समाज के लिए कल्याणकारी होता है | तिनके-तिनके को मिलकर मोटे रस्से बना लिए जाते है जिनसे मत्त हाथी भी बंधे जा सकते है | संगठन की महिमा अपर है | समाज में प्रतिष्ठित रूप से जीवित रहने के लिए ये आवश्यक है कि लोक कल्याण की भावना से ओट-प्रोत व्यक्ति संगठित होकर कार्य करें |

 

आसुरी व्यक्तियों के संगठन तो हर जगह दिखाई देते है | चोर, डकैत, भ्रष्टाचारी, व्यभिचारी व्यक्ति सदैव एक दूसरे को सहायता जी जान से करते है | तस्करों व अपराधियों के गिरोह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय रहते है और समाज में दूषित वातावरण का निर्माण करते रहते है | इस समस्या से निपटने के लिए प्राचीन ऋषि मुनि एकत्व के महत्त्व को समझकर सदैव संगठन पर ही बल देते थे |

 

संगठन के तीन मूल तत्व है - विचार साम्य, ह्रदय साम्य और मन साम्य | किसी भी संगठन के लिए सर्वप्रथम आवश्यकता है कि संगठित होने वाले समूह में विचारों की एकता हों | यदि विचारों में एकता नहीं है, विचार भेद है, मतभेद है, तो वह संगठन सुदृढ़ नहीं हो सकता | जहाँ विचारों की एकता होगी, वही लक्ष्य एक होगा, साध्य एक होगा | वह एक लक्ष्य सबको एकसूत्र में बांधे रहेगा |

 

दूसरी आवश्यकता है ह्रदय की एकता | लक्ष्य भले ही एक हो पर यदि हम उसमें ह्रदय से सहयोगी नहीं बनते, ह्रदय से साथ नहीं हैं, हार्दिक एकता नहीं हैं, तो लक्ष्य एक होने पर भी सफलता नहीं मिलेगी |

 

मन की एकता अत्यंत आवश्यक तत्व है | लक्ष्य एक है और ह्रदय में भी सहानभूति है पर यदि किर्यशीलता नहीं है, प्रेरणा नहीं है, प्रबुद्धता नहीं है तो वे संगठन दृढ़ नहीं होगा | आधे अधूरे मन से किया गया कार्य कभी भी पूर्ण नहीं होता हो पाता | मन रुपी लगाम को नियंत्रण में रखकर पूर्ण मनोयोग से जब कार्य को गति देंगे तभी संगठन सुव्यवस्थित और दृढ़ होगा | इस मन में हर समय उठने वाले विचारों का मानव जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है |

 

विचार ही मनुष्य को ऊपर उठा देते है और विचार ही नीचे गिरा देते हैं | मनुष्य जैसा सोचता है वैसा हो बन जाता है | मन का चिंतन हमारे समस्त क्रिया कलापों में अत्यंत महत्वपूर्ण है | इसलिए मन को सदैव कुविचारों से मुक्त रखने का प्रयास करना होता है | दृढ़ आत्मविश्वास के बलबूते पर गई उनके प्रलोभन से बचा जा सकता है |

 

स्वस्थ एवं सक्रिय समाज के लिए आत्मबल के धनी व्यक्तिओं के ऐसे संगठन ही ठोस आधार बन सकते है |

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ