हमारे मन की शक्ति अनंत है | Vedon ka Divya Gyan | Atmabal - 020 | Yajurveda 34/1 |

 भावार्थ:

हमारे मन की शक्ति अनंत है | वह जाग्रत और सुप्त अवस्था में भी क्रियाशील रहता है | वह ज्योतिस्वरूप है किन्तु मलावरण से ग्रसित है | इसलिए हमारा मन शुभ एवं कल्याणकारी विचारों वाला हो |

सन्देश:

हमारा मन दिव्य शक्ति रूप है | यह बड़ा ही बलवान और क्रियाशील है | सोते जागते कभी भी इसका कार्य रुकता नहीं है | हर समय कुछ न कुछ सोचता और यहाँ वहां भटकता रहता है | कभी भूतकाल की घटनाओं का चिंतन करता है कभी भविष्य के कल्पना लोक में विचरण करता है | प्रतिछण किसी न किसी विषय पर संकल्प-विकल्प, चिंतन-मनन, तर्क-कुतर्क में उलझा रहता है | एक पल के लिए भी रुकता नहीं | जाग्रत अवस्था में तो यह स्थिति चलती ही रहती है पर जब हम सो जाते है तब भी इस मानक कार्यवृत्ति बंद नहीं होती और भांति-भांति के स्वप्न देखता फिरता है | चौबीसों घंटे कुछ न कुछ करता रहता है और थोड़ी देर में ही प्रकाश की गति से भी अधिक वेग से न जाने कितनी दूर जा पहुँचता है |

 

मनुष्य जो मन में विचार करता है वही वाणी से कहता है, जो वाणी से कहता है कर्म से करता है और जो कर्म से करता है उसी का फल प्राप्त करता है | मन के विचार ही अंततः उसके चरित्र का निर्माण करते है | यदि मनुष्य का चिंतन भद्र एवं शुभ है तो वचन और कर्म भी शुभ होंगे तथा उनके फल भी शुभ होंगे | इसी प्रकार यदि चिंतन अशुभ होगा तो वचन, कर्म और फल भी अशुभ होंगे | मन का चिंतन सबसे महत्वपूर्ण तत्व है |

 

बुरे विचारों का प्रभाव हमारे भीतर वृतियों को जनम देता है | मन तो लगाम के सामान है जो इन्द्रियों को घोड़े के सामान नियंत्रण में रखती है | मन में जब कुविचार होंगे तो इन्द्रियां भी गलत रास्ते पर चलने वाली बन जाएगी | जिसका मन वश में होता है, उसकी इन्द्रियां भी रथवान के सुधरे हुए घोड़े की तरह वश में होती है | जो विवेक रहित, मन के पीछे चलने वाला, सदा अपवित्र विचारों से ग्रसित रहता है वे जन्म-मरण के चक्र में भटकता रहता है और दुःख भोगता है | और जो विवेक संपन्न, मन को वश में करने वाला, निरंतर शुद्ध एवं पवित्र विचार करता है वह अपने सत्कर्मों के फलस्वरूप मोक्ष प्राप्त करता है | मनुष्य के मन का अज्ञान और ज्ञान शुभ और अशुभ विचार ही उसके बंधन या मोक्ष का मूल कारन होते है |

 

हमें सदैव यह प्रयास करते रहना चाहिए कि कुविचारों के कारण हमारे मन की ज्योति धीमी न पड़ें पाए | मन में उठने वाले संकल्प प्रवाह में एक भी अशुभ संकल्प हमारे मन में न उठने पाए | मन द्वारा सदा दिव्य, शुभ एवं कल्याणकारी संकल्पों का प्रवाह ही चलता रहे | विचारों की यह दिव्यता हमारे कर्मों में भी परिलक्षित होती है और उन्हीं के आधार पर समाज हमारा मूल्यांकन करता है | हमारे कर्मों के आधार पर ही हमें यश-अपयश, मान-अपमान मिलता है | मन की पवित्रता ही हमारे कर्मों को पवित्र बना सकती है |

प्रचंड आत्मबल के संपन्न व्यक्तियों के लिए यह कार्य असंभव नहीं है |

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