उत्कृष्ट ज्ञान, चिंतन शीलता तथा धैर्य आदि सद्गुणों स्रोत हमारा मन है | वह अन्धकार में अर्थात दुष्कर्मों की और न बढ़े इसलिए हमारा मन शुभ एवं कल्याण करक विचारों वाला हो |
सन्देश:
दैहिक या पारलौकिक उन्नति का सबसे बड़ा साधन शरीर है | उसके भीतर जो सर्वशक्तिमान मन है वह शरीर की समस्त इन्द्रियों का संचालन करता है | उसमें शुभ अशुभ हर प्रकार के विचार उत्पन्न होते है और वहीं से चिंतन-मनन के आधार पर ज्ञान की उत्कृष्ट धारा प्रवाहित होती है | धैर्य, संयम, सुचिता, म्रदुता आदि सद्गुणों का स्रोत भी यह मन ही है | अनुशासन प्रियता, योजनाबद्धता, प्रत्येक काम में एक व्यवस्था रखने का अभ्यास, दूसरों के प्रति आदर, अपने द्वारा किसी को कष्ट न हो ऐसी इच्छा, इन सब बातों के कारण लोगों का जीवन प्रायः शांत, सोमय और म्रदु दिखाई देता है | इस सबके लिए हमें सत्वगुण की उपासना करनी होगी | कठोरता, क्रूरता, अनास्था अनादर, अस्नेह आदि तमोगुण से परिपूर्ण बातों को अपने मन से निकलना होगा |
'तमसो मा ज्योतिर्गमय' हमारा बोध वाक्य है | हमें अपने मन में ज्ञान की ज्योति प्रज्वलित करके अज्ञान के अँधेरे को दूर करना चाहिए | इससे मन शुद्ध और पवित्र बनता है और त्याज्य कर्म उसमें प्रवेश नहीं कर पाते |
त्याज्य कर्म वे हैं, जो समाज और राष्ट्र के लिए अहितकर हैं | उनको छोड़ देने से कोई भी समाज या राष्ट्र उन्नति के पथ पर अग्रसर हो सकता है | सबकी उन्नति में ही हमारी स्वयं की भी उन्नति है | प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है कि वे सभी दुर्गुणों और दुष्कर्मों का परित्याग करे | असत्य भाषण से मनुष्य नैतिक पतन हो जाता है | जो दूसरों पर झूठे आरोपी लगता है, वह स्वयं अपना नाश कर लेता है, अतः असत्य भाषण सभी लोगों को त्याग देना चाहिए | पाप से मनुष्य का नाश हो जाता है अतः पाप को हमेशा के लिए त्याग ही देना चहिये | वेदों में लिखा है कि जो कुछ काम नहीं करते और ईश्वर को नहीं मानते है ऐसे लोग अपने पापों से ही मर जाते है | उन लोगो का ऐश्वर्य दूसरों के पास चला जाता है | मनुष्य दो प्रकार से पाप करता है एक तो अपने शरीर के द्वारा और दूसरा अपने मन द्वारा जिसे मानसिक पाप कहते है | दूसरी स्त्री का चिंतन, अश्लील साहित्य का अध्ययन, अश्लील चित्र या फिल्म देखना, अश्लील गीतों को गाना, दूसरी औरतों का नृत्य देखना आदि मानसिक पाप हैं | मन में उठने वाले कुविचार मनुष्य को पाप कर्मों में प्रेरित करते है | पाप कर्मों के प्रलोभन से अपने को बचाने के लिए दृढ़ आत्मशक्ति ही एकमात्र सहारा है | वही हमें दुष्कर्मों के अंधे कुए में गिरने से बचाती है |
अपने मन को सभी प्रकार के पापयुक्त विचारों से मुक्त करके सात्विक विचारों को जाग्रत करते रहना आत्मबल की निशानी है और ऐसे मनुष्य ही जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते है | हमें अपने मन की अपूर्व शक्ति को पहचान कर अपने विकास का मार्ग सुनिश्चित करना चाहिए |
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