एक सैनिक वह है जो एक सेना के हिस्से के रूप में लड़ता है। सैनिक दुश्मनों को गोली मारने से लेकर रक्षात्मक खाइयों को खोदने तक कई काम करते हैं। उनका उपयोग अपने देश की रक्षा करने, या किसी दूसरे देश की सेना पर हमला करने के लिए किया जाता है। यह कठिन कार्य है, इसलिए सैनिकों को शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से मजबूत बनाया जाता है | दोस्तों आज मै आपको वो 2 आदतों के बारे में बताने जा रहा हूँ, जो सेना के जवान से सीखनी चाहिए |
सैनिकों के जीवन में दो महान गुण होते है | पहला संयम और दूसरा अनुशासन
1- संयम अर्थात् आत्म नियंत्रण की स्थिति है। जीवन में सफलता के लिए इसे अनिवार्य माना गया है। आध्यात्मिक दृष्टि से संयम आत्मा का गुण है। संयम अर्थात् व्यक्तिगत स्वार्थों का सबके लिए त्याग, अपनी इच्छाओं का संयम, भाषा का संयम, क्रोध पर संयम, आवेश पर संयम होता है |
2- अनुशासन — एक सैनिक किसी भी कठोर से कठोर कार्य को नित्य समय पर डिकटेटर की भांति करने वाला होता है। प्रत्येक गलती पर सजा का भय होता है, जिसके कारण उनके जीवन में अनुशासन और समय के पालन आदतें डवलप होती है।
अच्छे शूटर होने के लिए मस्तिष्क को एकाग्रता की आवश्यकता है, जो संयम तथा अनुशासन से ही आती है | संसार का सैनिक इतिहास बताता है कि संयम और अनुशासन की वजह से अत्यन्त थोड़ी सी सेना के सम्मुख बहुसंख्यक साधारण सैनिक सदैव हारते रहे हैं।
संसार में जितने महान सैनिक हुए हैं सभी का जीवन संयम और कठोर अनुशासन का जीवन रहा है। जिन्होंने संसार को जीता है उन्होंने पहले अपने आपको जीता है। दिग्विजयी होने के लिए प्रथम आत्म विजयी होना अनिवार्य है। देश तथा राष्ट्रों के विषय में भी यह कथन पूर्णतः लागू होता है।
मजबूरी चाहिये—
मनुष्य स्वभावतः ही आलसी है। जब तक खिंचा तना रहता है कोई इससे काम कराने के लिए सर पर सवार होता है, तब तक पर्याप्त कार्य करता है। जब कोई नियन्त्रण नहीं रहता, तो उसको आलस्य भावना उसे दबा लेती है और वह अपना किया कराया नष्ट कर देता है।
हम देखते हैं कि लोग भांति-भांति की सुन्दर योजनाएं पढ़ाई लिखाई, व्यापार, वा व्यायाम की प्राप्ति के लिए उत्साह से कामों में लगते हैं। कुछ दिन तक तो उनका जोश चलता है, किन्तु कुछ काल पश्चात् धीरे-धीरे जोश समाप्त हो जाता है, और उनका महान् कार्य बीच ही में पड़ा रह जाता है।
जरूरी यह है कि किसी कार्य को करने के लिये हमें कोई मजबूर करता रहे। हमें सिपाही की भांति डरा धमका या अनुशासन संयम द्वारा कोई महत्वपूर्ण कार्य करने के लिए बाध्य किया जाय। यदि न करें तो कोई हमें मिलिट्री की तरह सजा दे।
किसी कार्य को करने की प्रेरणा दो प्रकार की हो सकती है|
(1) अन्तर से हृदय या आत्मा को दिव्य प्रेरणा। इसका उदय सात्विक मन में तर्क तथा कर्तव्य भावना से होता है। मनुष्य किसी कार्य के औचित्य के विषय में सोचता है, तथा उसे पूर्ण करने में संलग्न होता है।
(2) बाह्य परिस्थितियों या किसी बड़े व्यक्ति द्वारा शासन या सजा का भय। प्रायः अशिक्षित, अविकसित व्यक्तियों में यह दूसरी प्रकार की प्रेरणा ही काम करती है। वे दण्ड के भय से किसी कार्य के करने को मजबूर किये जाते हैं। छोटे बच्चे जो अपने भले बुरे को नहीं समझते दण्ड के भय से उन्नति करते हैं।
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