Man Ki Ekagrata Se Hi Safalta Milti Hai | Concentration Ke Fayde | Knowledge Lifetime |

 


एकाग्रता बहुमूल्य गुण है | एकाग्रता एक ऐसी शक्ति है जो वेक्ति को किसी भी क्षेत्र में सफलता को सुनिश्चित करती है | अपने लक्ष्य किसे और से ध्यान को न भटकने देना ही एकाग्रता कहलाती है |

"मित्रो! पौराणिक काल से ही एकाग्रता के महत्व पर बल दिया जाता रहा हैं. जब कौरव और पांडव गुरुकुल में पढ़ते थे तो उनके गुरु भी उन्हें एकाग्रता का पाठ प्थाते थे. आपकों वह कहानी तो याद हैं न जब एक दिन गुरु द्रोण ने पेड़ पर लकड़ी की चिड़िया रखकर सभी शिष्यों को उस पर निशाना साधने के लिए कहा था | आँख पर एकाग्रता केन्द्रित करने के कारण अर्जुन ने उस पर सही निशाना लगाया और यही कारण था कि वे महान धनुर्धर बन पाए |

स्वामी विवेकानंद जी ने एकाग्रता के बारे में कहा है कि मस्तिष्क की शक्तियां सूर्य की किरणों के समान हैं, जब वह केंद्रित हो जाती है तो चमक उठती हैं।

"मित्रो! एकाग्रता के चमत्कार, एकाग्रता की शक्ति के बारे में भला मैं आपको क्या बताऊँ! ध्यान की एकाग्रता जिसमें आ जाती है, वह फर्स्ट डिवीजन में पास हो जाता है। यह ध्यान की एकाग्रता है। ध्यान की एकाग्रता कालिदास के पास थी, जो उनकी धरोहर थी। ध्यान की एकाग्रता विद्वानों के पास होती है। एकाग्रता से जब वे अपने मन को एक जगह इकट्ठा कर लेते हैं तो हजारों तरह के विचार चले आते है। साहित्यकारों से लेकर कलाकारों तक, जितने भी दुनिया में सफल हुए हैं, वे ध्यान की पहली वाली कला, जिसे हम एकाग्रता कहते हैं |

प्रत्येक उद्देश्य की पूर्ति के लिये जो उपक्रम किये जाते हैं, सफलता के लिये उनमें एकाग्रता बहुत जरूरी है। शिकारी तीर चलाने के पूर्व साँस रोक कर सारा ध्यान अपने शिकार पर जमा देता है। मनोयोग थोड़ा-सा भी अस्थिर हो जाय तो तीर कहीं का कहीं जा गिरे। बिना एकाग्रता के मनुष्य का जीवन भी खेल मात्र दिखाई देता है। उससे किसी प्रकार की सफलता की आशा नहीं की जा सकती।

 

जीवन का एक व्यवसाय निश्चित कर लें फिर उसमें तत्परता पूर्वक सारी शक्ति लगा दें। पूर्ण एकाग्रता के बिना सफलता नहीं मिलती। नित्य नये व्यवसाय बदलते रहना मनुष्य की अवनति का प्रमुख कारण है। काम की विशेष योग्यता और मार्गदर्शक अनुभव संलग्नता से ही प्राप्त होते हैं।

किसी व्यक्ति की बहुत बड़ी सफलता देखकर या किसी महत्वाकांक्षा से प्रेरित होकर लोग बहुत बड़े संकल्प कर लेते हैं। पर कुछ ही दिनों में उन्हें असफल हुआ पाते हैं, तो इसके कारण पर विचार करने की इच्छा होती है। सफल पुरुषों के जीवन से इसका आसानी से समाधान हो जाता है। सफलता प्राप्त करने के लिये आवश्यक है कि मनुष्य अपने तन, मन, धन की सारी शक्ति संकल्प को सफल बनाने में लगा दे। मनोवृत्तियाँ पल-पल पर बदलती रहें, शरीर से क्रियाशील न हों और उचित साधन न जुटायें तो सफलता कैसे मिल सकेगी। जिस मन की स्थिति डांवांडोल रहती है वह कभी एक काम, फिर दूसरा, फिर तीसरा इस तरह से इधर-उधर चक्कर काटता रहता है और जिस बात की प्रतिज्ञा की थी वह यों ही अधूरी रह जाती है।

युद्ध में लड़ने का काम सैनिक करते हैं। किन्तु विजय का श्रेय कमाण्डर को मिलता है। कोई अल्प बुद्धि का व्यक्ति ऐसी आशंका प्रकट कर सकता है कि ऐसा क्यों होता है। पर समझदार लोग जानते हैं कि युद्ध की सारी रूप-रेखा सेनापति ही बनाता है। वही यह निश्चित करता है कि किस टुकड़ी को कहाँ लगायें, कहाँ गोला, बारूद पहुँचे, कहाँ की संचार व्यवस्था कैसी हो? सेनापति लड़ने नहीं जाता पर सारा युद्ध उसके मस्तिष्क में film की भाँति घूमता रहता है। पूर्ण एकाग्रता से उस पर विश्लेषण करता रहता है तब कहीं विजय का श्रेय उसे मिल पाता है। एकाग्रता, लक्ष्य बुद्धि और तन्मयता के द्वारा ही सेनापति युद्ध का ठीक परिचालन कर पाते हैं। ठीक उसी तरह जीवन संग्राम में विजय प्राप्त करने के लिये मन की एकाग्रता व संकल्पशीलता आपेक्षित है।

बार-बार जो मन की स्थिति बदलती रहती है उसे सर्वप्रथम काबू करने की आवश्यकता है किसी लक्ष्य पर जब मन केन्द्रित रहता है तो सफलता की अनेक योजनायें सूझती रहती हैं। वैज्ञानिक शोध कार्यों में इतने एकाग्र होकर कार्य करते हैं कि उन्हें लैबोरेटरी के बाहर की दुनिया का भी ज्ञान नहीं होता। एक-एक सिद्धान्त के रहस्यों पर घुसते चले जाते हैं और कोई नई चीज ढूंढ़ कर निकाल लाते हैं।

एक ही बात जब तक मस्तिष्क में रहती है तब तक उसी के अनेक साधनों की सूझ होती रहती है। उनमें से उपयोगी बातों की पकड़ एकाग्रता से ही होती है। शरीर-मन की सारी क्रियाओं को साधकर बगुला एक प्रकार से निश्चेष्ट-सा हो जाता है, इसी धोखे में मछली बाहर आ जाती है। बगुला को तो इसी की ताक रहती ही है खट से उसे पकड़ लेता है। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता के लिये मनुष्य को भी इसी तरह को-ध्यानीबनना आवश्यक है।

एक ही दिशा में अपनी सारी चित्त-वृत्तियाँ आरोपित रखने से नये महत्व की बातों का ज्ञान तो होता ही है वह भूलें और त्रुटियाँ भी समझ में आ जाती हैं जिनसे काम में गड़बड़ी उत्पन्न होने की आशंका होती है। इसी अनुभव के आधार पर कठिनाइयों से पहले ही बच जाना सम्भव होता है। रोज एक नया काम बदलने से तो किसी तरह का भी ज्ञान प्राप्त नहीं होता, न अनुभव विकसित होते हैं।

आकाश में उड़ने वाले जहाज के कप्तान को बादलों से बचाव, हवा के कटाव आदि में पंखों को भी ऊपर नीचे करना पड़ता है। पाइलट यदि वहाँ कोई उपन्यास पढ़ना चाहे तो जहाज के गिर जाने का ही खतरा पैदा हो सकता है, इसलिये उसका सारा ध्यान जहाज को ठीक तरह चलाने में ही लगा रहता है। बिना लक्ष्य पर स्थिर हुये जहाज के कप्तान को थोड़ी दूर की यात्रा करने का साहस न कर सकेगा ।

यह मशीनों का युग है। अब मनुष्य का बहुत-सा काम कल-कारखाने पूरा करते हैं भारी उत्पादन के कारखानों के कल पुर्जे देखकर मस्तिष्क चक्कर काटने लगता है। इतनी सारी मशीनरी का नियन्त्रण कौन कर सकेगा। पर वह क्षमता इंजीनियर में होती है। इंजीनियर भी दूसरे मनुष्यों की तरह ही होते हैं पर उनमें यह विशेषता होती है कि काम करने के समय उनका सारा ध्यान मशीन के कल पुर्जों के साथ बँध जाता है। फरनेस में ईंधन जा रहा है, डायनेमो ठीक काम कर रहा है या नहीं, कोयला, पानी, तेल आदि पर्याप्त मात्रा में हैं या नहीं। एक-एक हिस्से पर पूरा-पूरा ध्यान रखकर ही सारी मशीनरी को वह अपने नियन्त्रण में रख पाता है। ध्यान इधर-उधर बँटा रहे तो रोज ही कारखानों में विस्फोट होता रहे।

 

यदि आपको काम करते हुये बहुत समय बीत जाय और पूर्ण संलग्नता के बावजूद भी यदि कोई सफलता न मिले तो समझना चाहिए कोई जबर्दस्त कमी है। यदि कारण इतना बलवान हो जिसे आसानी से न हटाया जा सकता हो, तो फिर उसे बदल ही देना चाहिये। संलग्नता का मतलब यह कदापि नहीं कि असम्भव कार्य के पीछे ही पड़े रहें।

पर यदि लक्ष्य स्थिर कर लिया जाय और जिस रास्ते में चल रहे हैं उसी में कुछ कमी दिखाई दे तो किसी दूसरे मार्ग से उसे प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए। मान लीजिये आप हाई-स्कूल पास कर चुके हैं और एम.ए. पास करने की इच्छा है। पर घर की आर्थिक कठिनाइयों के कारण स्कूल में नहीं पढ़ सकते। कुछ दिन कालेज गये भी पर फीस देने की व्यवस्था नहीं हो पाई तब आप अपना रास्ता बदल दीजिये। देखिये आपको कहीं शिक्षण-कार्य मिल सकता है क्या? यदि ऐसी व्यवस्था हो जाय तो आप घर की आर्थिक कठिनाई में भी कुछ सहयोग दे सकते हैं और बचे हुए समय का सदुपयोग अध्ययन में करके प्राइवेट परीक्षा भी दे सकते हैं। इस तरह की परिस्थितियों में केवल मार्ग बदलना पड़ता है बाकी सफलता की बुनियादी बातें ज्यों-की-त्यों बनी रहती हैं।

इसमें सन्देह नहीं है कि मनुष्य के कठिन श्रम, एकाग्रता और सतत अभ्यास से बड़े-बड़े काम हल हो जाते हैं पर उद्देश्य जो निश्चित किये जावें, उनके औचित्य पर भी गम्भीरतापूर्वक विचार कर लेना चाहिये। अपनी शारीरिक स्थिति, बुद्धि, योग्यता और परिस्थितियों के अनुकूल लक्ष्य निर्धारित करने से ही सफलता मिल सकती है। शक्ति से बहुत चढ़-बढ़ कर बनाये गये लक्ष्य असफल रहे तो इसमें सन्देह न होना चाहिये क्योंकि मनुष्य के पुरुषार्थ के साथ प्राकृतिक संयोग भी काम करते रहते हैं। असम्भव उद्देश्य न निश्चित करना ही मनुष्य की बुद्धिमानी है।

पर जिन्हें हम पूरा कर सकने की स्थिति में हों और उनसे मनुष्य जीवन सार्थक होता हो तो ऐसे लक्ष्य-जीवन में बनाकर उन पर पूर्ण लगन, एकाग्रता व संलग्नता के साथ तब तक लगे रहना चाहिये जब तक सफलता न मिल जाय। एकाग्रता और संलग्नता में ही सफलता का सारा रहस्य छुपा हुआ है। मनुष्य जीवन के ये दो भूषण हैं जिससे उसका व्यक्तित्व निखरता है और वह कुछ असामान्य कार्य भी सम्पन्न कर लेता है।

 

इच्छाशक्ति के बल से अपनी समस्त शक्तियों को केन्द्रित रखिए। जब हम शक्तियों को एक स्थान पर एकाग्र करते हैं तो अद्भुत शक्ति का प्रादुर्भाव होता है। सम्पूर्ण मानसिक संस्थान और शारीरिक शक्तियां जब मिल कर एक कार्य सिद्धि के लिए प्रयत्न करती हैं, तो वह अवश्य सिद्ध होता है।

उस मन, मस्तिष्क या शक्ति से तुम क्या विजय की साधना करोगे, जो पल-पल इधर-उधर भागा-भागा फिरता है। मनुष्य का मन बड़ा चंचल है, अस्थिर है। विषयों, प्रलोभनों, आसान चीजों की ओर दौड़ता है। अतः पहले चित्त संयम द्वारा मन को अन्तर्मुखी कर लीजिए। चित्त की चंचलता रोकने के लिए दृढ़ता से इन्द्रियों के विषयों की प्रवृत्ति और मन के वेग को रोकना पड़ेगा। मन को पुनः पुनः एक ही बात पर खींच-खींच कर लगाना होगा। मन मार कर एक ही कार्य निरन्तर करना होगा।

मन का वेग, भागना और चंचल होना, कम होते और उस विचार उच्च ध्येय में संलग्न होने से उन्मत्त इन्द्रियां चित्त को चलायमान न कर सकेंगी। स्मरण रखिए मन तुम्हारा है, तुम उसके दास नहीं हो। कभी उसे अपने ऊपर हावी मत होने दो। मन की चंचलता जीतने के लिए इच्छा शक्ति का उपयोग कीजिए।

स्वामी विवेकानंद जी (Swami Vivekananda) के अनुसार- एक विचार लो। उस विचार को अपना जीवन बना लो। उसके बारे में सोचो, उसके सपने देखो, उस विचार को जियो। अपने मस्तिष्क, मांसपेशियों, नसों, शरीर के प्रत्येक हिस्से को उस विचार में डूब जाने दो और बाकी सभी विचार को किनारे रख दो। यही सफल होने का तरीका है।

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