सूर्य पृथ्वी की तरह मनुष्यों को अपनी इन्द्रियों को नियमित बनाकर अपराध से बचना चाहिए | Vedon ka Divya Gyan | Atmabal - 026 |


 
भावार्थ:

जिस प्रकार सूर्य पृथ्वी एक नियम व्यवस्था से वर्षा, प्रकाश और अन्न द्वारा प्रजा का हिट करते है वैसे ही मनुष्यों को भी चाहिए कि अपनी इन्द्रियों को नियमित बनाकर लोक मंगल के कार्यों में लगें और स्वयं अपराधों से बचने का पर्यटन करें |

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सन्देश:

सारे ब्रह्मांड का संचालन करने वाले ईश्वर ने ऐसी व्यवस्था कर राखी है की सारा का सारा कार्य एक निश्चित गति से अपने आप चल रहा है | सूर्य, पृथ्वी, चाँद, तारे सभी अपनी गति से अपनी कक्षाओं में लाखों करोड़ों साल से चल रहे हैं और कभी भी कोई व्यवधान नहीं होता है | मौसम परिवर्तन, कृषि, जलवायु आदि भी अपने क्रम से ही होते रहते है |

 

गायत्री मन्त्र का जप करते समय हम भी सविता देवता का आवाहन करते है परन्तु उसके आदर्श को अपने जीवन  में उतरने के नाम पर आलस्य और प्रमाद हमें घेरे रहता है | अपने जीवन को हम नियमित नहीं कर पाते हैं | हम अपनी इन्द्रियों के दास बनकर कुविचारों और कुकर्मों में ही उलझे रहते है |

 

आध्यात्मिक और सुख संतोष युक्त जीवन जीने के लिए अत्यधिक आत्मसंयम और पवित्रता की आवश्यकता होती है | इन्द्रिय सुख की लालसा पूर्ती में हम लगे रहते हैं फिर भी हमें तृप्ति नहीं मिल पाती है | हम इस सत्य को भूल जाते है कि वास्तविक आनंद तभी संभव है जब हम असंयम का नहीं, आत्मसंयम का जीवन यापन करें |

 

पवित्र जीवन का तात्पर्य यह नहीं कि इन्द्रियों को कुचल दें या उनका दमन कर दें वरन उन्हें नियमित बनाकर नियंत्रित करें | शारीरिक प्रलोभनों द्वारा हमारे मन के अंदर जो अपवित्र अवगुण और विचार उत्पन्न होते है उन पर संयम के सद्गुणों से विजय प्राप्त करें |

 

हमें अपनी सभी इंद्रियों का विशेष ध्यान रखना चाहिए | सभी को समुचित प्रकार से निर्देशित करना चाहिए | किसी भी इन्द्रिय में किसी प्रकार की अशुद्ध प्रवृत्तियों को आने नहीं देना चाहिए | हमारे अंदर तो पहले से ही अनेक अशुद्ध प्रवृत्तियाँ विधमान हैं | हमें उनका विनाश करके उनके स्थान पर अच्छी प्रवृत्तियों को प्रतिस्थापित करना चाहिए | अपने मन में विधमान देवत्व का बार-बार चिंतन करना चाहिए | मन बहुत ही चंचल होता है उसके प्रति सदैव सतर्क रहना चाहिए | अपने मन पर एक क्षण के लिए भी कभी विशवास मत करों | कभी बुरे सूक्ष्म रूप में गन, दया अथवा मित्रता के रूप में धारण करके हमें मोहित कर सकती है | और हम आसक्ति में फंस सकते हैं हमें सदैव सतर्क रहना चाहिए |

 

पृथ्वी पर मनुष्य का जीवन प्रलोभनों से परिपूर्ण है | तरह-तरह की लालसाएं व वासनाएं उसे घेरे रहती है | प्रत्येक मनुष्य को इन प्रलोभनों से सतर्क रहकर सतत संघर्षरत रहना चाहिए जिससे वे हमारे मन पर अधिकार न जमा सकें | यदि मन के प्रशिक्षण और अनुशासन की तकनीक का विकास कर लेते हैं | तथा उपस्थित परिस्थितियों से ऊपर उठने की इच्छा रखते है और धैर्य और विनम्रता का अभ्यास करते है तभी इस प्रकार के प्रलोभनों से विजय प्राप्त कर सकते है |

आत्मबल से प्रलोभनों पर विजय प्राप्त होती है  

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