दुर्ग रक्षिता राजकुमारी रत्ना - Bharat ki Mahan Virangna - 009 | Knowledge Lifetime |

 

दुर्ग रक्षिता राजकुमारी रत्ना

मरुप्रदेश के महाराजा रतन सिंह के सदा खिले रहने वाले मुख मंडल पर आज चिंता की रेखाएं पड़ी हुई थी | वे किसी गहन चिंतन में निमग्न थे | कोई समस्या ग्रंथि बन कर उनके मस्तिष्क को चुनौती दे रही थी | उन्हें अपने भरे-पूरे जीवन में एक आभाव खटक रहा था | जब वे समस्या को सुलझा नहीं सकें तो उनके मुंह से लम्बी सांस निकल गयी |

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उसी समय उनकी एकमात्र पुत्री रत्ना ने उनके कमरे में प्रवेश किया | अपने पिता के मुख से निकला यह दीर्घ श्वास और चिंतित मुख मुद्रा देखकर रत्न गहरे सोच में पद गयी | उसने अपने पिता से पूछा - "महाराज किस सोच में डूबे हैं आप | क्या मुझे उस समस्या का सुनने का अधिकार नहीं है जो आपको परेशान किये हुए है |

कुछ नहीं राजकुमारी |

नहीं महाराज कुछ तो है, आपको मेरी सौगंध जो आपने मुझसे कुछ छिपाया |

हमारे गुप्तचरों ने सूचना दी है कि हमारे राज्य पर दिल्ली के सुलतान अलाउद्दीन खिलजी का सेनापति मालिक काफूर आक्रामक करने वाला है | वह जोधपुर के महाराज का सेनापति को परास्त कर जैसलमेर राज्य की ओर बढ़ रहा है | उसके पास विशाल वाहिनी है | आमने-सामने युद्ध की स्थिति में हमारी पराजय निश्चित है | यहाँ जैसलमेर दुर्ग में रहकर लोहा लें तो खाद्यानो की समस्या सामने आएगी | अभी हमारा अन्न भण्डार बहुत काम है | और फिर इस विकट मरू प्रदेश में अन्न का एक दाना उपलब्ध होना भी कठिन है | तुरंत ही तो ऐसी व्यवस्था नहीं हो सकती | दुर्ग में जो सामग्री है वह सौ सैनिकों के लिए ही पर्याप्त है | यदि सारे सैनिक को दुर्ग में रखा जाये तो हम भूख से मर जायेंगे क्योंकि मलिक काफूर आसानी से घेरा नहीं उठाएगा |

राजकुमारी रत्ना अपने पिता की समस्या सुनकर कुछ क्षण चिंतन में डूबी रही फिर बोली - "तो इसमें चिंता करने की क्या बात है ? आप अपने सैनिकों के साथ दुर्ग से बहार निकल जाइये और दुर्ग अपने किसी नायक को सौंप दीजिये | दुर्ग की रक्षा के लिए सौ सैनिक छोर दीजिये |

यही मेरी भी योजना है किन्तु वह नायक मुझे नजर नहीं आ रहा है जो दुर्ग की रक्षा करने की वीरता व बुद्धिमानी दोनों रखता हो | काश ! मेरे कोई पुत्र होता | "

मैं दुर्ग की रक्षा करूँगी महाराज ! आपकी रत्न आपके पुत्र की तरह ही दुर्ग की रक्षा करेगी | उसकी धमनियों में भी वही राजपूती रक्त बह रहा है जो राजपूत वीरांगनाओं को समरगण में शत्रु से लोहा लेने के लिए और समय पड़ने पर हँसते-हँसते जोहर करने के लिए प्रेरित करता है | आप ही तो कहते थे मेरी रत्न बेटी नहीं बेटा है | पालन-पोषण भी तो आपने उसी ढंग से किया है | क्या आप मुझ पर विश्वास नहीं करते |

करता हूँ बेटी ! सचमुच मैं तुम्हारा उचित मूल्यांकन नहीं कर सका था | तुमने मेरी परेशानी समाप्त कर दी है | मैं कल ही दुर्ग से प्रस्थान करता हूँ |

दूसरे दिन सूरज की पहली किरण के साथ ही रणबाकुरे राजपूतों की वाहिनी जैसलमेर दुर्ग से निकलकर मरू प्रदेश की ओर बढ़ रही थी | रत्ना ने वीर वेश में सजे अपने पिता के मस्तक पर चन्दन का टीका लगाकर आरती उतारी और उन्हें युद्ध क्षेत्र में जाने के लिए विदा कर दिया | महाराज रत्न सिंह आज बड़े प्रसन्न दिखाई दे रहे थे | अपनी पुत्री की नारी सुलभ ममता, सरसता और पुरुष सुलभ दृढ़ता, बुद्धिमत्ता ने उनके पुत्रभाव के गड्ढे को पूरा कर दिया था | उनके जाते ही रत्ना ने दुर्ग की रक्षा का भार अपने कंधों पर संभाल लिया |

इस घटना को एक सप्ताह भी नहीं बीता था कि जैसलमेर के पूर्वाकाश में धुल का एक बवंडर उठता दिखाई पड़ा | मरुभूमि में आँधियाँ उठती ही रहती है, इसलिए दुर्ग वासियों ने उस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया | यह धूल मलिक काफूर के नेतृत्व में जैसलमेर विजय के लिए आ रही सेना के कारण उड़ रही थी | सेना ने आते ही दुर्ग को घेर लिया | जैसलमेर का विकट दुर्ग यों ही उसके अधिकार में आ जाना संभव नहीं था | अतः मलिक काफूर को विवश हो घेरा डालना पड़ा | वह उसे जीतने का उद्योग करने लगे |

मलिक काफूर अपनी वीरता व कूटनीति के कारण सारे भारत में प्रसिद्ध हो गया था | साधारण से गुलाम से सेनापति वह उन्हीं गुणों के कारण बना था | उसने कई राजाओं को हराया था | मदोन्मत्त काफूर ने अपने सैनिकों को दुर्ग पर प्रबल आक्रमण करने की आज्ञा दी |

किन्तु राजकुमारी रत्ना भी काम नहीं थी | वह पुरुष वेश में कमर में तलवार बाँधे, हाथ में धनुष बाण लिए, पीठ पर तरकश बांधे किले में घूमती रही | अपने थोड़े से सैनिकों से ही ऐसी मोर्चा बंदी की थी कि टिड्डियों की तरह उमड़ कर आने वाले शत्रु दाल को हर बार पीछे हटना पड़ता |

एक दिन शत्रु के सैनिक किले की दीवारों पर चढ़ने लगे | ऊपर से बरसने वाले तीरों की परवाह न करते हुए वे ऊपर ही चढ़े आ रहे थे | उसी समय ऊपर से गर्म तेल, पत्थर, मिर्ची से खोलता हुआ गर्म पानी गिराया गया | फलस्वरूप वे अपने इस दुःसाहस में सफल न हो सके |

मलिक काफूर को घेरा डाला कई दिन हो गए | उसे दुर्ग विजय के कोई आसार नजर नहीं आ रहे थे | उसकी हर चाल का उत्तर राजकुमारी रत्ना इस कुशलता व तत्परता से देती थी कि वह अपना सा मुंह लेकर रह जाता था | उसने देखा कि उसे यों युद्ध करते हुए तो दुर्ग पर अधिकार करने में कई साल लग जाएंगे | तब उसने दूसरा रास्ता अपनाया | वे कूटनीतिक चालें चलने लगा |

साँझ धीरे-धीरे मरुभूमि पर उतर रही थी | सूरज किस अज्ञात प्रदेश की यात्रा पर जा रहा था मरू धरती को छोड़कर | ऐसे ही समय एक मनुष्य की छाया दुर्ग की और अग्रसर हुई और दीवार पर चढ़ने लगी | राजकुमारी रत्ना बुर्ज पर कड़ी उसके क्रियाकलाप देख रही थी | उसने कड़क कर पूछा - कौन है वहां |

आपके पिता का सन्देश वाहक |

क्या सन्देश लाये हो, बोलो

नहीं, वहीं आकर बताऊंगा |

बताओ, नहीं तो प्राणों से हाथ धोना पड़ेगा |

उसकी यह चेतावनी अनसुनी करके वह दीवार कर चढ़ने लगा | राजकुमारी रत्ना ने ऊपर से निशाना साधकर तीर छोड़ा | वह धरती पर गिर पड़ा और मर गया | सबने देखा, वह शत्रु का सैनिक था |

मलिक काफूर ने एक द्वार रक्षक को घूस देकर अपनी ओर मिलाने का प्रयास किया | उसे काफी सोना दिया गया | द्वार रक्षक पूरी तरह ईमानदार व कर्तव्यनिष्ठ था | उसने राजकुमारी के सामने जाकर सभी बातें कह दीं -"मलिक काफूर ने यह सोना मुझे इसलिए दिया है कि में रात्रि में द्वार खोल दूँ जिससे  काफूर अपने चुने हुए सैनिकों के साथ दुर्ग में प्रवेश कर सकें |"

राजकुमारी रत्ना ने उसकी कर्तव्यनिष्ठा की सराहना करते हुए कहा कि तुम उस समय द्वार खोल देना और मालिक काफूर और उसके चुने हुए सैनिकों को भीतर लेकर द्वार बंद कर देना और गुप्त द्वार से मेरे पास आ जाना | उसने ठीक वैसा ही किया जैसा राजकुमारी ने आदेश दिया था | मलिक काफूर व उसके सैनिकों को भीतर लेकर उसने द्वार बंद करके ताला लगा दिया ओर अँधेरे में ऐसा लोप हुआ कि उन्हें कुछ पता ही न चला | इस प्रकार काफूर अपने सैनिकों सहित चूहेदानी में फंस कर रह गया |

जैसलमेर का घेरा डाल महीनों बीता गए और किला हाथ नहीं आया वरन उसका चतुर और वीर सेनापति एक लड़की से मात खाकर बंदी हो गया है - यह समाचार जब अलाउदीन खिलजी तक पहुंचा तो उसने जैसलमेर विजय करने का इरादा छोर दिया | जिस देश में ऐसी वीर और बुद्धिमान कन्याएं हों, उसे जीत पाना उसके बस में नहीं था | अतः उसने महाराज रत्न सिंह के पास दूत भेजकर संधि कर ली |

मलिक काफूर जो एक गुलाम था, उसे ऐसा सहानुभूति व मानवता पूर्ण व्यवहार  कहीं नहीं मिला था | इसी कारण वे क्रूर हो गया था | उसने राजकुमारी रत्ना का दुर्ग की रक्षा करते समय जो रूप देखा था उससे कुछ भी स्वरूप अपने बंदी काल में देखा | बंदी होते हुए भी उसके व उसके सैनिकों के साथ अच्छा व्यवहार होता, उन्हें वही भोजन दिया जाता था जो दुर्ग के अन्य सैनिकों को दिया जाता था | राजकुमारी रत्ना ने उसके शरीर को ही बंदी बना पराजित नहीं किया था वरन उसकी मन को भी पराजित कर दिया | तलवारों की भाषा वाले इस सेनापति ने यहाँ आकर यह देखा की मनुष्यता में, मानवीय व्यवहार व भावनाओं में भी एक शक्ति होती है जो शास्त्रों से कई गुना श्रेठ होती है |

एक दिन राजकुमारी रत्ना  ने दुर्ग की प्राचीर से देखा कि सुलतान की सेना अपने तम्बू उखाड़ रही है | सुदूर मरू प्रदेश में भगवा ध्वज फहराती हुई राजपूती सेना दुर्ग की ओर चली आ रही है | निकट आने पर देखा महाराज रत्न सिंह सबसे आगे चपल अश्व पर बैठे गर्व से सीना फुलाए जैसलमेर लौट रहे थे | राजकुमारी रत्ना के हर्ष का ठिकाना नहीं रहा उसने जो वचन अपने पिता को दिया था, वह पूरा हो चूका था |

दुर्ग में स्वागत सूचक तुरही बज उठी | दुर्ग के द्वार खोल दिए गए | राजकुमारी रत्ना ने अपने पिता को प्रणाम किया तो उन्होंने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा- "सचमुच तूने देश की लाज रख ली | तू बेटी भी है और बेटा भी | आज मेरा मस्तक गर्व से ऊँचा हो गया | लोग व्यर्थ ही पुत्र के लिए आग्रह रखते है जबकि पुत्री पुत्र से किसी तरह काम नहीं होती है |

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