Aap Safalta Prapt Karke Rahoge |

 आप विजय प्राप्त करेंगे यदि आप अपने समय का उपयुक्त मूल्य समझ सकेंगे। कितना समय कार्य करें, खेलें, विश्राम करें, मनोरंजन करें, निद्रा लें यह विवेक आवश्यक है। आठ घंटे विश्राम, 2 घंटा मनोरंजन और 4 घंटे नित्य कर्मों के निकाल कर 10 घण्टे सच्चाई के परिश्रम के होने चाहिए। इन दस घंटों का सच्चा कार्य आपको निश्चय ही ऊंचा उठाने वाला है।
 


आप विजय प्राप्त कर सकेंगे यदि आप दूरदर्शी हैं। अर्थात् आगे आने वाले अवसर, दूसरों की जरूरतें, बाजार का हाल, घटनाएं दूरदर्शिता से अनुमान लगा लें। भविष्य दृष्टा बनें। यह कोई अलौकिक शक्ति नहीं है। तीव्र बुद्धि, संसार का ज्ञान, स्वयं अपना अनुभव और समाचार-पत्र आपको भविष्य दृष्टा होने में पर्याप्त सहायता करेंगे। आगे बढ़ने वाली जरूरतों के लिए अभी से अपने आपको तैयार रखना, मानसिक, शारीरिक उत्कृष्टताएं पहले ही बढ़ा लेना विजय का मूल मन्त्र है।
 

आप संसार को बदल सकते हैं यदि आपको अपनी अन्दर की शक्तियों के प्रति विश्वास है। अपने अन्दर विश्वास रखने वाला व्यक्ति ही सदैव आगे चलता है। डरता, शरमाता, या बुज़दिल की तरह लज्जाशील कैसे आगे बढ़ेगा?
तुम हीन नहीं हो। असमर्थ नहीं हो। कायर नहीं हो। दुर्बल नहीं हो। निस्तेज नहीं हो। अमृत संतान हो, आत्मा तेज के केन्द्र हो। तुम मोह और संशय के आवेश में आकर अपने को दुर्बल, पापी, कायर, डरपोक पा रहे हो। तुम अपने को क्षुद्र समझ कर भयभीत हो गये हो। हृदय की दुर्बलता त्यागो, संकटों का सामना करो और हष्ट पथ पर डटे रहो।
 

अपनी शक्तियों, योग्यताओं के प्रति सच्चे रहो। अपने अन्दर पूर्ण विश्वास रख कर आगे बढ़ो। जो मनुष्य जरा सी विघ्न-बाधाओं के आने पर अपने मन की शान्ति खो देता है उसमें आत्मिक बल तो कहां, साधारण मानुषी बल भी नहीं कहा जा सकता। उसका दूसरों पर कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ सकता जो आप में और लोभ में और संकट में या क्रोध की उत्तेजना में अन्धा हो जाता है।
 

समय पर सुयोग से लाभ उठाने के लिए मानसिक स्फूर्ति, विचार, बुद्धि, परिकल्पना, शक्ति और प्रेरणा आदि की आवश्यकता है किन्तु यदि असीम, अपरिमेय ईश्वर और अपनी शक्तियों के ऊपर निर्भर बना रहे, तो चरम लक्ष्य की आसानी से प्राप्ति हो जाती है। आत्म श्रद्धा हमारी आन्तरिक शक्तियों को प्रदीप्त कर देती है। श्रद्धा बुद्धि से पृथक नहीं रहती, किन्तु बुद्धि को अनुप्राणित करती है, उच्चतर ज्ञान के प्रकाश से प्रकाश करती है। यह बुद्धि को उच्च से उच्च सम्भावनाओं से प्रफुल्लित करती है।
 

कुछ महानुभाव पूछते हैं—‘‘अपना मौजूदा काम हम ठीक तरह नहीं कर पा रहे हैं? क्या हम इसे छोड़ दें?’’ हमारा उत्तर है कि पहले इस कार्य की अच्छाई-बुराई पर विचार कर लीजिए। यदि आपका अन्तःकरण कहता है कि वह अच्छा काम है और आपको करना उचित है, तो उसे कदापि न त्यागिये। धीरे-धीरे शान्ति से कार्य करने से आप अवश्य उसके योग्य हो सकेंगे, निश्चय मानिये। 

एक के बाद दूसरा, फिर तीसरा काम करने वाले सदैव असफल रहते आये हैं। कई व्यक्ति लिखते हैं—‘‘कृपा कर बताइए कि हमें कितने दिन यह मामूली सूखा कार्य करने की चक्की पीसनी पड़ेगी?’’ हमने उन्हें सूचित किया है कि वे जिन कार्यों के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलें, घृणा के स्थान पर उसे प्रेम करें, उसमें दिलचस्पी लें, रुचि पैदा करें और तब वे स्वयं कार्य मजे में करेंगे। प्रतिदिन अच्छाई और श्रेष्ठता आती जायगी—यह हमारा विचार है।

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