विवेकपूर्ण तप से विद्या, धन आदि की प्राप्ति होती है | Vedon ka Divya Gyan | Atmabal - 028 | Samveda 565 |

 



भावार्थ:

यह संसार शुभ मंगलदायक और मधुर पदार्थों से भरा पड़ा है किन्तु मिलता उन्हीं को है जो तप के द्वारा उनका मूल्य चुकाने को तैयार रहते है | विवेकपूर्ण तप से विद्या, धन आदि की प्राप्ति होती है |

 

सन्देश:

सृष्टि रचना में परमेश्वर ने जिस कौशल का परिचय दिया है उसके हजारवें-लाखवें भाग की भी कल्पना नहीं कर सकते | जीव जंतुओं की चौरासी लाख योनियों के लिए हर प्रकार के पदार्थों से यह संसार भरा पड़ा है | वनस्पतियां, औषधियां, धन धान्य, हीरे, मोती सभी कुछ हैं प्राणी जगत के लिए शुभ एवं मधुर फलदायक है |

 

जिस प्रकार ईश्वर सभी जगह मौजूद है | उसका प्रकाश चारों ओर फैल रहा है, उसी की ज्योति से सूर्य-चंद्र आदि चमक रहे है, उसी प्रकार ईश्वर की महान सत्ता अपनी पूरी शक्ति के साथ सभी के जीवन के रोम-रोम में व्याप्त है | फिर भी उसकी कृपा सहज ही प्राप्त नहीं होती है | चारों ओर हर प्रकार के मंगलदायक पदार्थों के रहते हुए भी मनुष्य हर समय अभावग्रस्त ही दिखाई पड़ता है | परमात्मा की कृपा के आनंद रास से वह वंचित रहता है | जल में रहकर भी प्यासा है | इसका कारण यही है कि उसने तपस्या के द्वारा अपनी पात्रता विकसित नहीं की है | उसका मन दोष-दुर्गुणों से भरा हुआ है | चारों ओर से कष्ट उसे घेरे रहते है |

 

अज्ञान के कारण कुएं के मेंढक के तरह कुंए से बाहर देखने की उसमें न तो सामर्थ्य है और न ही उत्साह दिखाई देता है | ब्रह्मचर्य, व्यायाम, आसन, प्राणायाम, संयम, योग, मनोयोग, एकाग्रता आदि में उसका मन ही नहीं लगता है | वह तो हर समय इन्द्रियों के जाल में उलझा रहता है |

 

जीवन में कुछ पाने के लिए तप सबसे आवश्यक है | तप का अर्थ अकारण ही नहीं अपने शरीर को कष्ट देकर सूखा देना नहीं है, अपितु जीवन के मार्ग पर आगे आने वाली कठिनाईओं से विचलित हुए बिना अपनी पूरी क्षमता व प्रतिभा से उन्हें पार कर लेना ही है | इस उद्देश्य के लिए किये गए पुरुषार्थ को ही तपस्या कहते है | परमात्मा कठोर परिश्रम करने वाले की ही सहायता करता है और उसे हर प्रकार के धन-धान्य के अनुदान और वरदान दिया करता है |

 

वेद का निर्देश है कि तपस्या के द्वारा विद्या और धन को प्राप्त करो | तप करने के लिए दृढ़ आत्मबल की आवश्यकता होती है | आत्मबल से ही मनुष्य संयम पूर्वक इन्द्रियों के प्रलोभनों से बचकर एकाग्रता पूर्वक सत्य के मार्ग पर चल सकता है | इन्द्रियों के प्रलोभन से बढ़कर धन की लालसा होती है | मनुष्य किसी भी प्रकार से अधिक से अधिक धन कमाने के चक्कर में रहता है और उसके लिए नीति-अनीति, उचित-अनुचित कुछ भी नहीं देखता है | परन्तु जब वह तप के द्वारा अपने मन को पवित्र करके ईश्वरीय ज्ञान को प्राप्त कर लेता है तो विवेकपूर्ण आचरण करता है और ईमानदारी से धन कमाने का ही पुरुषार्थ करता है |

 

ईमानदारी के लिए प्रचंड इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है और वही हमें जीवन में सफलता के मार्ग पर ले जाने में सक्षम है |

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