कैसे मनुष्य को सुन्दर समझना चाहिए ? World of Question

 


प्राकृतिक सौंदर्य- प्रकृति में वास्तविक सुन्दरता है। आजकल के फैशन के भार से युक्त पुरुष या स्त्री को लोग सुन्दर समझते हैं उसकी प्रशंसा करते नहीं थकते। यह भ्रम-मात्र है। वास्तविक सौंदर्य तो पूर्ण रूप से विकसित, परिपुष्ट और स्वस्थ शरीर में है। प्रत्येक पुट्ठे (Muscle) और माँसपेशी में स्वाभाविक सौंदर्य है। जिस युवक या युवती के शरीर में लाल लाल रक्त प्रवाहित होता है, जिसके शरीर में स्वाभाविक लालिमा वर्तमान है, जिसका डीलडौल संतुलित है, न कोई अंग पतला है न कोई मोटा, न बादी चर्बी युक्त, न पेट ही बढ़ा हुआ है, नेत्र सुन्दर और चमकदार हैं, त्वचा कोमल और लाल है, फेफड़े परिश्रम सहन कर लेते हैं और गहरी नींद और आराम देते हैं, भूख खुलकर लगती है, स्वस्थ जल से (सोड़ा लेमन, शराब, चाय, शरबत से नहीं) जिसकी प्यास शान्त हो जाती है, चूर्ण चटनी पर जिसकी जिह्वा नहीं लपलपाती, जिसके स्वभाव में न चिड़चिड़ापन है, न क्रोध उतावलापन, उदासी या निरुत्साह-ऐसे स्वस्थ मनुष्य को ही पूर्ण सुन्दर कहना युक्ति संगत है।

 

पुरुष हो या स्त्री-यदि वह पूर्ण स्वस्थ और सुन्दर बना रहना चाहता है, या कुरूप से सुरूप होना चाहता है तो उसे प्रकृति का आश्रय ग्रहण करना होगा। प्रकृति के नियमों का पालन करना होगा। व्यायाम और प्राकृतिक भोजन के द्वारा शरीर की प्रत्येक माँसपेशी को संतुलित रूप में विकसित करना होगा, शक्ति का अर्जन करना होगा-तभी हम सुन्दर बन सकेंगे। प्रकृति में ही वास्तविक सुन्दरता विद्यमान है।

 

चेहरे पर लाल रंग, पाउडर, क्रीम पोतने से क्या लाभ? वह तो पानी से धुल जायगा। यदि शरीर में माँस, स्वस्थ रक्त, स्वास्थ्य और आरोग्य नहीं तो उसे रेशमी कपड़ों या आभूषणों से अलंकृत करने से क्या लाभ सौंदर्य प्राप्त हो सकेगा? वास्तविक सौंदर्य, जो चिरस्थायी है, जिसमें ईश्वरत्व प्रकट होता है, वह प्राकृतिक सौंदर्य ही है।

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