भावार्थ:
हम कुटिलता को त्यागकर सदैव अच्छे मार्ग पर चलकर धन की प्राप्ति करें |
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सन्देश:
संसार में मनुष्य के सामने मनुष्य श्रेय मार्ग और प्रेय मार्ग दोनों ही खुले हैं और यह उसके ऊपर है किस मार्ग को चुनता है | ईमानदारी के सत्य मार्ग पर चले जो भले ही कठिनाईओं से भरा हो पर श्रेय को देने वाला हो या प्रिय लगने वाले अधोपतन के मार्ग पर चले | धनोपार्जन के क्षेत्र में तो यह निर्णय करना अत्यंत आवश्यक है | आज हर कोई एक दूसरे से अधिक धन कमाने की स्पर्धा में लगा है | वर्तमान भ्रष्टाचार का यही मुख्य कारण है | आर्थिक अपराधों में द्रुतगति से बढ़ोतरी इसी से हो रही है |
आज भौतिकता का अर्थशास्त्र हम पर हावी है उसके मुख्य आधार हैं - इच्छा, आवश्यकता और मांग | इच्छाओं की पूर्ति पर पाना तो असंभव है क्योंकि इच्छा की कोई सीमा नहीं होती हैं | इच्छा बढ़ने से आवश्यकता अपने आप बाद जाती है और फिर मांग अधिक होने से छीना झपटी, लूट खसोट की स्थिति आ जाती है | आज का मनुष्य अपनी सुविधा, आसक्ति, विलासिता प्रतिष्ठा के लिए कुछ भी करने को तैयार है | दूसरों का कितना अहित हो रहा है, देश की कितनी हानि हो रही है, यह सब देखने का उसके पास समय ही नहीं है | अपनी जरूरत से अधिक धन संग्रह करके मनुष्य फिर विलासिता की ओर भागता है जो न तो उसकी आवश्यकता है और न ही अनिवार्यता | यह केवल भोग व्रती का उच्श्रृंखलता स्वरूप है जो मनुष्य को अंततः पतन के मार्ग में ढकेल देता है |
आज की दुनिया की सबसे बड़ी आवश्यकता यही है कि लोगों को यह समझाया जाए कि जिस सम्पदा के तुम पुजारी बने बैठे हो वह सम्पदा ही तुम्हें दुखी कर रही है और इससे भी अधिक दुःख के सागर में डुबो देगी | नाना प्रकार के दुखों, झगड़ो और आपत्तियों से यदि बचना है तो मनुष्य को पहले तत्वज्ञान प्राप्त करना होगा | तत्वज्ञान से मनुष्य में मनोनिग्रह एवं इन्द्रिय संयम का आत्मबल जाग्रत होता है | तभी वह अपनी इच्छाओं, कामनाओं और लालसाओं पर उचित पुरुषार्थ रखने में समर्थ हो सकता है | इस प्रकार वह उचित पुरुषार्थ करते हुए ईमानदारी से जो धन कमाता है वह शुभ फलदायक होता है | यह धन पोषण करता है और आत्मशक्ति को बढ़ाता है | ऐसा धन मन को प्रसन्नता प्रदान करता है और व्यक्तित्व का विकास करता है |
अग्नि के समान हमें सदैव अपनी पापव्रतियों को जलाते हुए उन्नति के मार्ग पर बढ़ना चाहिए और धर्म के अनुसार कमाए हुए धन पर ही संतोष करना चाहिए | अग्नि की ज्वाला सदैव ऊपर की और ही जाती है | कितनी ही प्रचंड अढ़ाई या तूफ़ान हो, वह ऊपर की गति को छोड़कर नीचे को नहीं जाती, भले ही उसका अस्तित्व समाप्त हो जाए | इसी प्रकार दृढ़ आत्मशक्ति का व्यक्ति टूट भले ही जाये पर अनीति के आगे नहीं झुकता है | कोई भी प्रलोभन उसे ईमानदारी के मार्ग से डिगाने में समर्थ नहीं होता |
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