जीवन में परेशानियां क्यों आती है? Why are there Problems in Life?

 

साथियों बहुत से लोगों मैं रोते और परेशान होते हुए देखता हूँ | वो कहते है कि मेरा जीवन तो परेशानियों से भरा पड़ा है |  

मेरा तो उनको यही कहना है इस संसार में एक भी व्यक्ति ऐसा पैदा नहीं हुआ जिसे पूर्ण निश्चिंतता के साथ सरल और शांतिपूर्ण जीवनयापन करने की सुविधा मिली हो। भगवान राम को जीवन भर कितने कष्ट सहने पड़े | ईसामसीह को सूली पे लटका दिया गया | तुम्हारी तो औकात ही क्या है मेरे भाई | परेशानियाँ तो आती ही रहेंगी तो उनसे जूझने का हौसला पैदा कर | तू उन पर विजय पाने का साहस कर, परेशानियाँ हल हो न हों पर तो यह कह सकेगा की मैंने अपनी पूरी ताकत से प्रयास किया |

मेरे भाईओं अगर तुम्हारी माँ अपनी जान जोखिम में न डालती तो क्या तुम इस दुनिया में जनम ले सकते थे ? आजकल तो भाई नयी नसल ही आ गयी है बच्चे भी पैदा नहीं करना चाहती है बस मौज मस्ती करना चाहती है | मैं उनको कहना चाहता हूँ अगर हमारे पूर्वज भी ऐसा ही सोचते तो तुम पैदा ही न होते |

मेरे भाई इस बात पर गौर करों, यदि इस संसार में परेशानियां न होती, तो मानवीय बुद्धि का विकास ही संभव न हो पाता | आपने चाकू तो देखा होगा बोलो भाईओं, चाकू की धार तभी तेज होती है, जब पत्थर पर उसे घिसा जाता है, बेकार पड़े रहने पर तो उस पर जंग ही लग जाता है। कठिनाइयों और समस्याओं से रहित जीवन निर्जीव और आनंदरहित ही बनेगा, उसमें जड़ता आ जाएगी, उसमें अनुत्साह पैदा हो जायेगा और वह जीवन अवसाद से ही घिरा रहेगा। किसी भी वस्तुओं के घिसने और टकराने से शक्ति उत्पन्न होती है, यह वैज्ञानिक नियम है।

ईश्वर अपने प्रिय पुत्र मनुष्यों को शक्तिमान बनाना चाहता है, प्रगतिशील बनाना चाहता है, विकास की ओर उन्मुख करना चाहता है, उन्हें चतुर बनाना चाहता है, उनको साहसी बनाना चाहता है,  उनको पराक्रमी बनाना चाहता है, इसीलिए मेरे भाईओं उसने समस्याओं और कठिनाइयों का एक बड़ा अंबार प्रत्येक मनुष्य के सामने खड़ा किया होता है।

क्या आपने देखा है बिल्ली अपने बच्चे को शिकार करना कैसे सिखाती है ? बोलो भाईओं, बिल्ली अपने छोटे बच्चों को चूहे का शिकार करना स्वयं सिखाती है। पकड़े हुए घायल चूहे को वह बच्चों के सामने छोड़ती है, बच्चे उस पर आक्रमण करते हैं, मारते और खाते हैं। इस प्रकार उन्हें शिकार करने का अनुभव हो जाता है।

मेरे भाई परमात्मा बिल्ली की तरह मनुष्यरूपी बच्चों को समस्याओं से घायल चूहे सामने छोड़ता और पराक्रम-पुरुषार्थ की, विचार और विवेक की शिक्षा का साधन प्रस्तुत करता है। यह घायल चूहे तो अधमरे पहले से ही थे। चूहे मारने में कोई कठिनाई नहीं है। उन्हें तो बिल्ली स्वयं ही मारकर दे सकती थी, पर बच्चों को शिकार खेलना सिखाना तो बड़ा प्रश्न था, इसके बिना बच्चे अपने पैरों पर खड़े ही न हो पाते। ईश्वर आसानी से हमारी समस्याएँ हल कर सकता है, वह करता भी है, पर हमें भी तो अपनी चेतना का विकास करना सीखना है; इसलिए अधमरे चूहे की तरह गुत्थियाँ भी सामने आती ही रहती हैं। एक के बाद दूसरी का ताँता लगा ही रहेगा इस बात को हमेशा याद रखो मेरे भाई ।

फिल्म की तस्वीरें एक के बाद दूसरी न आवें तो सिनेमा देखने का मजा ही मिट्टी हो जाए। पूरे खेल में एक ही तस्वीर सामने खड़ी रहे तो उसे देखना कौन पसंद करेगा? अनेकों हलचल भरे दृश्य होने से ही तो मनोरंजन का आनंद मिलता है, जिसने जितनी अधिक गुत्थियाँ सुलझाई होंगी, उसका साहस उतना ही बढ़ेगा, उसका अंतःकरण उतना ही खिलेगा, उसका चेतन उतना ही विकसित होगा। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए ही परमात्मा ने अपनी समस्त सृष्टि में ऐसी व्यवस्था की है कि समस्याओं से रहित कोई भी प्राणी रह न पावे। ऐसा एक भी जीव न बचे, जिसे अपने दैनिक जीवन में अगणित प्रकार की गुत्थियाँ न सुलझानी पड़े, यदि ऐसा न होता तो वहाँ जो गतिशीलता दिखाई पड़ रही है, वह कब की समाप्त हो गई होती, सब कुछ निर्जीव हो गया होगा।

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