6 महान योग्यताएँ - पंडित मदन मोहन मालवीय ~ 6 Great Qualities ~ Prernadayak Video

 


6 Great Qualities: सत्येन ब्रह्मचर्येण व्ययामेनाथ विद्यया। देशभक्त्यात्मयागेन समभाईः सदा भव॥  सत्य वचन, ब्रह्मचर्य धारण, व्यायाम, विद्याध्ययन, देशभक्ति और आत्म त्याग के द्वारा सम्मान के योग्य बनो। मैं चाहता हूँ, प्रत्येक छात्र इस श्लोक को अपने इस हृदय पर अंकित करें और उसी के अनुसार आचरण भी रखे।

Summary:
1—सत्य
सत्य से बढ़कर कोई धर्म नहीं, ‘सत्यान्नास्ति परो धर्मः’ ‘सत्यमेव जयते, नानंत’ सत्य की ही विजय होती है, झूठ की नहीं। महाभारत, रामायण और पुराणों के पढ़ने से पता चलता है कि राजा हरिश्चंद्र, रामचन्द्र, युधिष्ठिर आदि अनेक सम्राटों ने सत्य के पीछे नाना प्रकार के सीमातीत कष्ट उठाये, पर सत्य से नहीं डिगे। आर्य जाति की विशेषता को संसार के समस्त ऐतिहासिकों ने श्रद्धा भरे शब्दों में माना है। मैं आशा करता हूँ कि हमारे देश के प्राणरूप हिन्दू बालक अपने पूर्वजों की इस पवित्र और आदर्श धरोहर की रक्षा करेंगे।

2—ब्रह्मचर्य
ब्रह्मचर्य की महिमा को कौन बखान सकता है।  देवताओं ने ब्रह्मचर्य के द्वारा मृत्यु को जीत लिया! एक ब्रह्मचारी अपने ब्रह्मचर्य के बल पर अधिक से अधिक समय तक जीवित रह सकता है, असाध्य से असाध्य कार्य को कर सकता है। ‘भीष्म-पितामह’ का दृष्टान्त प्रसिद्ध है उनकी ‘इच्छा मृत्यु’ हुई थी। ब्रह्मचर्य बल, बुद्धि और विद्या का परम सहायक है। चिन्ता और भय, ये ब्रह्मचारी का कुछ बिगाड़ नहीं सकते। हिन्दू जाति के इतिहास का पन्ना-पन्ना ब्रह्मचर्य के ज्वलन्त आदर्शों से भरा पड़ा है। ब्रह्मचर्य के लिए एक स्थान पर कहा गया है।
ब्रह्मचर्य, स्वधर्म में दृढ़ता और विश्व-प्रेम इन तीनों का मूलमन्त्र महावीर हनुमान में है। उचितता यह है कि ब्रह्मचर्य की भावना को पूर्ण रूप से व्याप्त करने के लिए भारत के गाँव-गाँव में महावीर दल और अखाड़े स्थापित किये जायं; जिससे अटक से कटक तक तरुणाई का समुद्र उमड़ पड़े। दीन-दुखियों, असहाय अबलाओं, मन्दिरों गौओं, ब्राह्मणों-गरज यह कि हिन्दुत्व की मान-रक्षा हो। बहू-बेटियों पर कोई आँख न उठा सके। हिन्दू जाति के बच्चे और युवक मालिक की तरह चलें; गुलाम की तरह नहीं।

3—व्यायाम
मैं प्रत्येक भारतीय युवक, विशेषकर हिन्दू समाज, से प्रार्थना करता हूँ कि वह व्यायाम की प्रथा को फिर से गाँव-गाँव में चला दे। शरीर में स्वास्थ्यरुपी सोने को चमकाने के लिए व्यायाम एक कसौटी है। व्यायाम करने से शरीर तगड़ा, हृष्ट-पुष्ट होता है और व्यायामी पुरुष अपने उद्देश्यों को दृढ़ संकल्प होकर पूरा-पूरा कर सकता है |
 ‘दूध पियो कसरत करो नित्य जपो हरिनाम हिम्मत से कारज करो पूरेंगे सब काम।
दूध पीने और व्यायाम करने से मनुष्य पराक्रमी बनता है, वीर्यशाली बनता है। पराक्रम और वीर्य से हीन पुरुष, सब गुणों से युक्त होकर भी कुछ नहीं कर सकता इस भाव का श्लोक भी है—
‘सर्वेर्गुणेः सुयुक्तोऽपि निवीर्य्यः किं करिष्यति गुणीभूता गुणाः सर्वे तिष्ठन्ति हि पराक्रमे।
यह भी कहा गया है कि नित्य नियम से व्यायाम करने वाले और तलवे में तैल लगाने वाले पुरुष से रोग वैसे ही भागते हैं जैसे सिंह के भय से क्षुद्र मृग। इस भाव का श्लोक यह है—
व्यायाम कुर्वतो नित्यं पद्भ्यामुद्वर्त्तितस्य च। व्याघयो नोपसप्न्ति सिंहात् क्षुद्र मृगा इव।

4—विद्या
विद्या का महत्व भी क्या बतलाना पड़ेगा? लिखा है— विद्या ददाति विनयं, विनयाद्याति पात्रताम्। पात्रत्वाद् धनमाप्नोति धनार्द्धम, तत सुखम्।
विद्या मनुष्य को विनय देती है, विनय से योग्यता मिलती है, योग्यता के द्वारा धन प्राप्त होता है, धनादि से धर्म और फिर धर्म से सुख मिलता है, यह है विद्या का चमत्कार! विद्या से हीन मनुष्य पशु के तुल्य है; विद्या पढ़ने से पशुता छूट जाती है। ‘यह बुरा है, यह भला है’ की विवेचक बुद्धि हो जाती है। वेदों में विद्वानों को देव स्वरूप कहा गया है।

5—देशभक्ति
अगर मनुष्य में विश्व के समस्त गुण आ जायं और देश भक्ति न हुई तो कुछ नहीं हुआ। अपने देश के प्रति मान भाव न रखने वाले मनुष्य के लायक नीच से भी उपाधि देना कम है। आदर्श मर्यादा पुरुषोत्तम रामचन्द्र ने जननी-जन्मभूमि को स्वर्ग से बढ़कर बतलाया है। अब कहना क्या शेष रहा?
जो देशभक्ति आ जावै, तब सब स्वारथ भग जावें। ’
देशभक्ति से बढ़कर कोई पुण्य नहीं है। पुराने समय की बात को जाने दीजिये। इधर के इतिहास में भी शिवाजी, गुरुगोविन्द सिंह, राणा प्रताप आदि देशभक्ति ही के कारण अजर-अमर हो गये हैं।  उठो। देशभक्ति की दीक्षा लो। भगवान् सब मंगल करेंगे।

6—आत्मत्याग
यह अन्तिम छठा गुण है। लेकिन सबसे अधिक महत्व रखता है, कोई भी काम करो, तन-मन-धन से करो, यही आत्म त्याग या आत्मसमर्पण है। निस्वार्थ, निरालस्य और निश्चिन्त होकर देश के, धर्म के और समाज के हित के लिए काम करना मनुष्य की शोभा का बढ़ाता है।

ये ही छः गुण हैं। भारत के प्रत्येक बालक बालिका और तरुण-तरुणी जनों के लिए मेरा सन्देश है कि वे इन गुणों से युक्त होने का व्रत लें। इससे वे अपना ही नहीं अपने देश की काया पलट सकने में सर्वथा समर्थ होंगे; यह मेरा दृढ़ विश्वास है। आजमा कर देखिए। दीन मत बनो। ‘हिन्दू गऊ होते हैं’ इस अपवाद को साबित करो। अब तो साँड़ भाँति बलिष्ठ निर्भीक और साहसी बनो।

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Time Stamp:
00:01:42 सत्य: सत्य से बढ़कर कोई धर्म नहीं।
00:04:22 ब्रह्मचर्य: ब्रह्मचर्य की महिमा को कौन बखान सकता है।
00:06:54 व्यायाम:  व्यायाम करने से मनुष्य पराक्रमी बनता है।
00:09:11 विद्या: विद्या का महत्व भी क्या बतलाना पड़ेगा?
00:10:19 देशभक्ति:  जननी-जन्मभूमि को स्वर्ग से बढ़कर है।
00:11:59 आत्मत्याग:  सबसे अधिक महत्व रखता है।

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