जीवन में शिष्टाचार को अपनाएं? ~ Adopt Etiquette in life? ~ Motivation Hindi

दोस्तों दो सुधार हमारे पारिवारिक जीवन में अब चल ही पड़ने चाहिएं।

(1) बड़ों का नित्य अभिवादन−चरणस्पर्श

(2) तू शब्द का पूर्ण निषेध।

बहुत कम परिवार ऐसे होंगे जिनमें बड़ों का अभिवादन करने की प्रक्रिया चलती होगी। चरण स्पर्श में तो बड़े बड़ों तक को झिझक लगती है। बाहर के संत महात्माओं के पैर तो लोग छू लेते हैं पर घर में माता−पिता, बड़े भाई, भावज को नित्य अभिवादन करने और पैर छूने में संकोच करते हैं। पाप कर्म में झिझक तो समझ में आती है पर सत्कर्म में झिझकना और संकोच करना बहुत ही विचित्र लगता है। इस झूठी झिझक को हमें अपने घर से बिलकुल उखाड़ फेंकना चाहिए और प्रातः उठते ही अभिवादन की पद्धति आरंभ करानी चाहिए। यह सुधार हमें आज ही अपने से आरंभ कर देना चाहिए। घर में जो बड़े हों उनके नित्य प्रातः उठते ही पैर छुआ करें। जो छोटे हैं उन्हें भी अपनी ओर से नमस्कार के लिए जो शब्द अपने क्षेत्र में प्रचलित हो उसके द्वारा अभिवादन करना चाहिए। वैसे देशव्यापी अभिवादन एकता के लिए नमस्कार या नमस्ते शब्द अधिक उपयुक्त रहेंगे।

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मेरे भाई एक और दूसरी बात नाम के अन्त में जी लगाकर आप या तुम के साथ बोलने की है। तू शब्द साधारणतया अशिष्टता को दर्शाता है। व्यक्ति को व्यक्ति का आदर करना चाहिए और यह आदर मन तथा व्यवहार में ही नहीं, वाणी से भी प्रकट होना चाहिए। छोटों को भी, स्त्री बच्चों को भी हमें आप या तुम कहकर बोलना चाहिए और हो सके तो उनके नाम के आगे जी भी लगानी चाहिए। इससे उनकी वाणी मधुर हो जाती है और शिष्टाचार का सभ्यता और संस्कृति का प्रचार होता है।

इसलिए इस प्रकार का प्रचलन करना ही चाहिए। आरंभ में एक दो दिन मजाक बन सकता है, अपने को भी अटपटा लग सकता है और कुछ दिन नये अभ्यास के कारण आधा तीतर, आधा बटेर भी हो सकता है।

पर यदि दृढ़ता से कुछ दिन इसका अभ्यास चलाते रहा जाय तो अभिवादन और शिष्ट संबोधन की दोनों ही प्रक्रियाऐं अपने परिवार में चल सकती हैं और फिर उनकी देखा−देखी प्रसार दूर−दूर तक हो सकता है।

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