दोस्तों क्या आप आलस में समय बर्बाद कर रहे हो? यदि हाँ तो यह वीडियो आपके लिए है? क्या आप जानते हो कि हीरा मूल्यवान होते हुए भी उसकी ठीक कीमत जौहरी की दुकान पर ही प्राप्त होती है। बच्चों के खेल-खिलौनों में वह काँच के एक टुकड़े की तरह पड़ा रह सकता है पर उसका कोई गौरव और महत्व वहाँ प्रकट नहीं होता। मनुष्य का जीवन मूल्यवान होते हुए भी उसकी कदर तब खुलती है जब उसका मूल्यांकन किये हुए कार्यों के आधार पर किया जाता है। किसी प्रकार दिन काट लेना और साँसें पूरी कर लेना एक बात है, और जीवन का पूरा लाभ उठा लें तो दूसरी। यदि तुम अपना जीवन व्यर्थ नहीं गवाँना चाहते हो, यदि तुम भार की तरह जिन्दगी का बोझ किसी प्रकार यूँ ही ढोते नहीं रहना चाहते हो, तो उसके लिए तुम्हें यह प्रयत्न करना होगा कि तुम्हें अपने मानव जीवन के बहुमूल्य क्षणों का समुचित सदुपयोग करना होगा।
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मेरे भाई हथियारों की धार तब तेज होती है जब शान के पत्थर पर घिस कर उन पर धार धरी जाती है। रगड़ के बिना चमक नहीं आती। मैले कुचैले बर्तनों को मिट्टी से माँजकर स्वच्छ और चमकदार बनाया जाता है। मनुष्य का जीवन भी परिश्रम की धार धरने से ही चमकदार बनता है। लोहे के मामूली टुकड़े खराद पर खरादे जाने से बहुमूल्य उपयोग पुर्जे बन जाते हैं जो किसी मशीन के अंग बन कर बहुत उपयोगी सिद्ध होते हैं।
मनुष्य जीवन लोहे का टुकड़ा कहा जाय तो परिश्रम को खराद मानना पड़ता है। जो जितना परिश्रमी है वह उतना ही अपने जीवन को सार्थक बना लेता है।
तामसिक प्रकृति का प्रधान लक्षण क्रोध नहीं आलस है। क्रोध को तमोगुणी कहते हैं। पर गहराई से विचार किया जाय तो क्रोध की अपेक्षा आलस की हानि अधिक है। क्रोध से रक्त सूखता है, द्वेष बढ़ता है, अस्त-व्यस्तता उत्पन्न होती है आदि अनेकों हानियाँ हैं, पर सजीवता बने रहने का एक उपयोग तो उसमें भी है। किन्तु आलस में तो वह भी नहीं है। जिसे श्रम से अरुचि है उसे क्या कहोगे मेरे भाई, वह तो एक प्रकार का मुर्दा ही कहा जायेगा। जीवन के चिह्न है प्रेरणा, स्फूर्ति, उत्साह, लगन, प्रसन्नता आदि। जिसमें से यह तत्व घट गये हैं, काम करने की बात सुनकर जिसका जी दुखी होता है, जिसे पड़े रहना और किसी प्रकार वक्त गुजारते रहना प्रिय है उस आलसी मनुष्य को जीवित होते हुए भी मारा हुआ ही कहा जायेगा।
इसलिए मेरे भाई आलस में अपना समय बर्बाद मत करो | उठो परिश्रम करो और तब तक मत रुको जब तक अपनी मंजिल हासिल न कर लो |
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