मानसिक शक्ति बढ़ाएं निराशा से बाहर निकले ~ Best Motivational Video in Hindi


Summary:
शक्ति, बल का सूचक है। बल या शक्ति मूलतः एक ही है|
मानसिक शक्ति बढ़ाने के दो उपाय हैं:—एक वर्तमान शक्ति को विनष्ट होने से रोकना और दूसरा नई शक्ति की प्राप्ति की चेष्टा करना। वर्तमान मानसिक शक्ति का विनाश मन को रचनात्मक काम में लगाने के अभ्यास से रोका जा सकता है।
अज्ञान वश जो व्यक्ति कुछ दिनों तक ऐसे विचारों के पंजे में फँस जाता है फिर उनसे छूटना बहुत मुश्किल मालूम देता है। वास्तविकता का पता लगने पर वह सोचता है। व्यर्थ ही इन बुरे विचारों में मैंने अपना समय गँवाया और अपने को अवनति के गड्ढे में धकेला। वह इन बुरे विचारों से छूटना चाहता है, पर ऐसी आदत पड़ गई है कि गाड़ी आगे बढ़ती नहीं।
जरा हिम्मत बाँधी, उत्साह आया किन्तु थोड़ी ही देर बाद विचार न जाने कहाँ चले गये। और पुनः निराशा ने आ दबोचा। ऐसे व्यक्ति किसी काम को पूरा नहीं कर पाते। या तो वे किसी काम को करते ही नहीं, करते हैं तो अधूरा छोड़ देते हैं। अनेक अधूरे और असफल कार्य उनके जीवन में यों ही पड़े रहते हैं।
ऐसे लोगों की इच्छा शक्ति बहुत निर्बल होती है। लगन और दृढ़ता के अभाव में किसी कार्य पर चित्त नहीं लगता।
एक ही समय में एक ही प्रकार का व्यापार करने वाले दो व्यक्तियों में से एक को लाभ होता है एक को हानि। एक के पास नित्य सैकड़ों ग्राहक आते हैं किन्तु उसका पड़ौसी दुकानदार मक्खियाँ मारता रहता है। ऐसा क्यों होता है?
सब लोग इच्छित रहते हैं कि हमारी मानसिक शक्तियाँ बलवान हों किन्तु वे मानसिक शक्तियों को बढ़ाने के नियमों से परिचित न होने के कारण मन के लड्डू खाया करते हैं।
कुछ ऐसे ही नियम बताते है जिनका उपयोग करके आप अपनी मानसिक शक्ति बढ़ा सकते हो|
चित्त जगह- जगह भटकने की अपेक्षा जब एक जगह स्थिर होता है, तो उसकी शक्ति सैकड़ों गुनी बढ़ जाती है और उसके बल से सारी मानसिक शक्तियाँ जग पड़ती हैं।
आतिशी शीशे को साधारणतः धूप में रख दो तो कोई खास असर न होगा, किन्तु उसके द्वारा यदि सूर्य की किरणों को किसी एक बिन्दु पर एकत्रित करो तो आग पैदा हो जायेगी।
बारूद को खुली जगह में रखकर आग लगा दो तो भक से जल जायेगी। कोई खास कार्य उसके द्वारा न होगा, किन्तु उसी को बन्दूक में भरकर एक ही दिशा में उसका प्रवाह जारी कर दिया जाय तो गोली को बहुत दूर तक फेंकने की शक्ति उसमें हो जाती है।
मन जब तक संयमित नहीं है तब तक वह इधर- उधर उछलता रहता। ताँगे का घोड़ा जब इधर- उधर उछल कूदता है, तब तक रास्ता तय करने में बड़ी कठिनाई पड़ती है किन्तु जब वह चुपचाप ठीक प्रकार सरपट दौड़ने लगता है तो जरा सी देर में निश्चित स्थान पर पहुँचा देता है।
मन की स्थिरता, प्रसन्नता, दृढ़ता और ईमानदारी यह सद्गुणों की खान, विकास के साधन और सफलता की सीढ़ियाँ हैं। इन चारों के आते ही सब प्रकार की मानसिक शक्तियाँ जाग्रत हो जाती हैं। गूँगे, वाचाल और पंगे पहाड़ पर चढ़ने वाले हो जाते हैं।
पर यह भी ध्यान रखना चाहिए अच्छे विचार अच्छे शरीर में ही रहते हैं, इसलिए शरीर को स्वस्थ रखना भी आवश्यक है। इन्हीं पाँच नियमों के आधार पर उक्त पन्द्रह नियम बने हैं। चाहे जब आजमा कर देख लें लाभ उन्हें अवश्य होगा।
उपनिषद् में कहा है—मन जिसका मनन नहीं कर पाते, पर स्वयं मन ही जिसके द्वारा मनन कर लिया जाता है, वही ब्रह्म है।
यही ब्रह्म सर्व शक्तियों का धाम है। जितना ही शान्त, नीरव, एकाग्र और स्थिर हम अपने मन-प्राण शरीर का रख सकेंगे, उतना ही मात्रा में हम उनसे शक्ति ग्रहण कर सकेंगे। पर सर्वोच्च दशा में तो अपने शरीर-प्राण-मन को उसी में विलीनित कर हम स्वयं सर्वशक्ति धाम परब्रह्म बन जाते हैं।

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