स्वयं को कैसे बदलें? ~ How to change Yourself? ~ Motivation Hindi

दोस्तों बहुत सारे व्यक्ति पूछते हैं कि हम स्वयं को कैसे बदलें? कैसे हम अपनी बुराइयों और कमियों का सुधार करें | अपने आप को बदलने का सब आसान तरीका है आत्म−निरीक्षण |

मेरे भाई एक बात अपने जीवन में जोड़ लो वो यह कि सायंकाल को चारपाई पर पड़ने से लेकर सोने तक का समय आत्म−निरीक्षण में लगाना शुरू करिये । यही वो विधि है जो आपका जीवन बदल देगी आजमा कर देखो |

बिस्तर पर पड़े पड़े यह आत्म−निरीक्षण करो कि आज के दिन हमने क्या−क्या भूलें और बुराइयाँ कीं इस पर बहुत बारीकी से सोचना शुरू करो। भूलें वे हैं जो अपराधों की श्रेणी में नहीं आतीं पर व्यक्ति के विकास में बड़ी बाधक होती हैं।

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जैसे चिड़चिड़ापन, ईर्ष्या, आलस, प्रमाद, कटुभाषण, अशिष्टता, निंदा, चुगली, कुसंग, चिन्ता, परेशानी, व्यसन, वासनात्मक कुविचारों एवं दुर्भावनाओं में जो समय नष्ट होता है उसे स्पष्टतः समय की बर्बादी ही कहा जायेगा। प्रगति के मार्ग में यह छोटे−छोटे दुर्गुण ही बहुत बड़ी बाधा बनकर प्रस्तुत होते हैं इसलिए सायंकाल को आत्म−निरीक्षण के समय यह विचार करो  कि आज इस प्रकार की भूलों में हमारा कितना समय बर्बाद हुआ।

मेरे भाई यह भूलें प्रत्यक्षतः अपराध नहीं मानी जातीं तो भी यह अपराधों के समान ही हानिकारक हैं। बुराइयों में नैतिक बुराइयाँ गिनी जाती हैं झूठ, हिंसा, नशेबाजी, व्यभिचार, बेईमानी, चोरी, जुआ, ठगी, क्रूरता, गुण्डागर्दी, अशिष्टता आदि की मोटी बुराइयाँ तो स्पष्टतः त्याज्य हैं। इनके विचारों का मन में प्रवेश करना भी मानसिक पाप कहा जाता है। उससे भी बचना चाहिए।

मेरे भाई आज दिन में जो बुराइयाँ और भूलें बन पड़ी हैं उनका आत्मा द्वारा मन से उसी प्रकार लेखा−जोखा लिया जाना चाहिए जिस प्रकार कोई उद्योगपति अपने कारखाने के मैनेजर से रोज के कार्य और हिसाब का लेखा−जोखा लिया करता है। दोषों की कमी होते चलना और गुणों की बढ़ोत्तरी होना आत्मिक प्रगति के व्यापार में लाभ होने का चिन्ह है।

यदि जीवन में बुराइयाँ बढ़ रही हैं और अच्छाइयाँ घट रही है, तो समझना चाहिए आपकी कंपनी दिवालिया होने जा रही है। पूर्ण निर्दोष कोई नहीं, और न कोई पूर्ण गुणवान ही इस दुनिया में है। फिर भी प्रयत्न करते रहा जाय तो हमारी बुराइयाँ और भूलें दिन−दिन घटती और श्रेष्ठताऐं बढ़ती चली जाती हैं।

इसलिए मेरे भाई आज का लेखा−जोखा समझने के बाद कल के लिए ऐसी योजना सोचनी चाहिए कि श्रेष्ठता की अभिवृद्धि और क्षुद्रता की कमी होने लगे। रोज−रोज यह कार्यक्रम ठीक तरह बनाया जाता रहे और उस पर अगले दिन चला जाता रहे तो आत्म−सुधार का कार्य निरन्तर गतिवान रह सकता है। यही वो विध्या है जो आपको बदलें में सहायक सिद्ध हो सकती है |

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