मुसीबत आने पर किस प्रकार सोचना चाहिए? ~ How to Think in case of Trouble? ~ Motivation Hindi

 दोस्तों क्या आप जानते हैं कि मुसीबत आने पर इंसान को किस प्रकार सोचना चाहिए ? व्यक्ति को सोचना चाहिए कि जो मुसीबत सामने दिखाई पड़ती है, वह अधिक-से-अधिक कितनी हानि पहुँचा सकती है और उतनी हानि हो जाने पर भी अपना साधारण जीवनक्रम चलता रह सकता है या नहीं? यदि उस हानि को उठाकर भी जीवनक्रम का पहिया लुढ़कता रह सकता है तो फिर हताश, निराश और मायूस होने की क्या बात रह जाती है?

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मेरे भाई यदि कोई विद्यार्थी परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो जाता है। इसकी हानि अधिक-से-अधिक इतनी ही हो सकती है कि नौकरी एक वर्ष बाद लगे या एक वर्ष की फीस आदि का पैसा अधिक लग जाए। यह हानि मानव जीवन की पेचीदगियों को देखते हुए अप्रत्याशित नहीं है; जबकि 60 प्रतिशत अनुत्तीर्ण और 40 प्रतिशत उत्तीर्ण होने वालों की संख्या ही हर साल सामने आती है तो अनुत्तीर्ण होना कोई ऐसी बड़ी दुर्घटना होना नहीं माना जा सकता, जिसके लिए वह छात्र आत्महत्या जैसी बातें सोचे | अपने मन को बहुत छोटा मत बनाओ | फिर कोशिश करो जिंदगी बहुत बड़ी है |

यदि अपने ऊपर कोई मुकदमा चल रहा है। उसमें कुछ अर्थहानि या राजदंड हो तो आपत्ति आ सकती है। जब जेलों में रहने वाले कैदी आजीवन कारावास को हँसते−खेलते काट लेते हैं, तो उस मुकदमे में ही अपने ऊपर क्या वज्रपात होने वाला है, जिसके कारण आधीर बना जाए?

मेरे भाई, बीमारी किसे नहीं आती, यदि अपने को या किसी परिजन को बीमारी का सामना करना पड़ रहा है, तो मौत ही सामने खड़ी क्यों सूझनी चाहिए? असाध्य समझे जाने वाले रोगी भी तो अच्छे होते रहते हैं। फिर मान लीजिए किसी को मरना ही पड़े तो इसमें कौन अनहोनी बात है। आज नहीं तो कल सभी का अपने रास्ते जाना है, किसी के अभाव में इस दुनिया का कोई काम रुकता नहीं, प्रियजनों का विछोह भी तो लोगों को सहना पड़ता है, फिर अपने सामने भी यदि वैसी परिस्थितियाँ आने वाली हों तो उसके लिए चिंतातुर क्यों रहा जाए?

मित्रों व्यापार में दस दिन लाभ होता है तो एक दिन हानि का भी होता है। खेती में जहाँ अच्छी फसल उगा करती है, वहाँ अतिवृष्टि, अनावृष्टि से दुर्भिक्ष भी पड़ते हैं और लोग किसी प्रकार उस दुर्भिक्ष का मुकाबला करते हुए भी जीवित रहते हैं। चोरी, डकैती, अग्निकांड आदि में लोगों का सब कुछ चला जाता है, फिर कुछ दिन बाद पुनः काम-चलाऊ स्थिति बन जाती है और गाड़ी फिर लुढ़कने लगती है। जब दुर्घटना में एक टाँग कट जाती है तो वह सोचता है कि एक पैर से तो चलना क्या, खड़ा हो सकना भी कठिन है; पर कुछ दिन बाद उपाय निकलता है लकड़ी के सहारे वह लँगड़ा आदमी खड़ा होता है, चलता है और दौड़ने भी लगता है।

मेरे भाई समझो इस बात को ईश्वर की इस सृष्टि में ऐसी व्यवस्था मौजूद है कि तथाकथित विपत्ति आने के बाद उसका कोई हल भी निकलता है और बिगड़ी को बनाने वाला ईश्वर उस अव्यवस्था में भी व्यवस्था का कोई न कोई मार्ग निकाल ही देता है। फिर क्यों परेशान हुआ जाए |

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