क्या बुढ़ापा आराम करने के लिए है? ~ Is old Age to Rest? ~ Motivation Hindi

दोस्तों बहुत से लोग कहते है बुढ़ापा आराम करने के लिए होता है | अगर कोई ऐसा सोचता है तो यह सोच गलता है | बुढ़ापा अकर्मण्यता के लिए नहीं होता है |

बुढ़ापे का बहाना लेकर काम से जी चुराना यह बहुत बुरी और भोंड़ी आदत है। बुढ़ापे में कठोर काम करने में बेशक कठिनाई होती है पर हलके काम तो मरते दम तक करते रहा जा सकता है।


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मेरे भाई क्या तुम्हें पता है कि गाँधी जी की मृत्यु 80 वर्ष की आयु में हुई है, वे उन दिनों भी पूरे समय काम करते थे। आचार्य विनोबा भावे जी जीवन भर देश के कोने−कोने में नैतिक क्रान्ति का सन्देश लिए घूमते रहे। प्रायः संसार में सभी विचारशील व्यक्ति जिन्हें जीवन का मूल्य और महत्व मालूम है बिना जवानी-बुढ़ापे का ख्याल किये निरन्तर कार्य रहते थे |

श्रम किस प्रकार का हो यह शारीरिक और मानसिक स्थिति को देखते हुए बदला जा सकता है पर नियमित रूप से कुछ उपयोगी काम तो मरते समय तक करते ही रहना चाहिए। बेकारी से बड़ी विपत्ति दूसरी नहीं है। यह सोचना नितान्त मूर्खता है कि जो बैठे रहते हैं, जिनके दिन आराम से कटते हैं, वे भाग्यवान हैं। वस्तुतः उन्हें अभागे ही कहना चाहिए क्योंकि समय और सामर्थ्य रहते हुए भी वे श्रम जैसे मित्र का तिरस्कार करके जीवन के बहुमूल्य क्षणों को व्यर्थ गँवा रहे हैं, उनका कोई भी लाभ नहीं उठा पा रहे हैं।

मित्रो एक बात याद रखना जीवन में तीन चीज़ें तुम्हें भगवान ने दी है | और इनको बर्बाद करना तुम्हारे लिए पाप के सामान है | पहली चीज़ है तुम्हारा शरीर, दूसरा है तुम्हारी बुद्धि, तीसरा है समय | इन तीनों का उपयोग तुम्हें जीवन यापन के बाद यदि खर्च करना है तो भगवान के कार्य में करना है | इस दुनिया को अच्छा बनाने में करना है | लोगों की सेवा के लिए करना है | आलस्य में बर्बाद नहीं करना है |

आमतौर से हमें जितना काम करना पड़ता है यदि उसे उत्साह और व्यवस्था के वातावरण में किया जाय तो वह अब की अपेक्षा आधे समय में पूरा हो सकता है। उत्साह और मनोयोग के साथ जो कार्य किया जाता है वह मनोरंजन ही बन जाता है और उसमें थकान नहीं आती।

आजीविका उपार्जन के लिए नियमित समय के अतिरिक्त हर आदमी के पास काफी समय बचता है। उसे अध्ययन में, अपनी योग्यता बढ़ाने में, व्यवस्था में, सफाई में, सेवा कार्यों में परमार्थ में या ऐसे ही अन्य उपयोगी कार्यों में लगाया जा सकता है। एकमात्र आजीविका कमाना ही समय का सदुपयोग नहीं है।

अपने में वे अन्य विशेषताऐं भी उत्पन्न करनी चाहिए जो आत्मिक दृष्टि से हमें उच्च कोटि के सत्पुरुषों की श्रेणी में पहुँचाती हैं। निरालस्य होकर हमें उस प्रकार के कार्यों में भी अपना समय लगाते रहना चाहिए। समय ही मानव जीवन की सच्ची सम्पत्ति है। जिस प्रकार हम अपना एक आना भी व्यर्थ नहीं खोते उसी प्रकार समय की भी पूरी सँभाल रखनी चाहिए और हर क्षण का उचित लाभ उठाने के लिए उसे श्रम के साथ संलग्न रखे रहना चाहिये।

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