गुरुजनों को प्रतिउत्तर में कुछ देना भी सीखे| ~ Learn to give something to the Gurus too. ~ Motivation Hindi

दोस्तों आज हम सभी अपने गुरुजनों से सीखना चाहते है | गुरुजन कोई भी हो सकता है जो हमें ज्ञान दे | पर क्या हम भी प्रतिउत्तर में उनके लिए कुछ देना नहीं चाहिए | आप क्या दे सकते है, वह तो आपके ऊपर निर्भर करता है | पर मेरा यह कहना है आप सभी से, आपके अंदर गुरुऋण को उतरने की  निष्ठा और कृतज्ञता की भावना जरूर होनी चाहिए |

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मेरे भाई गुरुभक्ति का आदर्श उपस्थित करते हुए विश्वामित्र की प्रसन्नता के लिए राजा हरिश्चंद्र अपना राज-पाट ही उन्हें नहीं दे देते, वरन अपना शरीर और स्त्री-बच्चे बेचकर उनकी दक्षिणा भी चुकाते हैं। दलीप, गुरु की गौ पर सिंह द्वारा आक्रमण होने पर, अपना शरीर देकर भी गुरुधन की रक्षा करते हैं। मिट्टी की प्रतिमा बनाकर द्रोणाचार्य को गुरु बनाने वाले एकलव्य के सामने जब साक्षात द्रोणाचार्य उपस्थित होते हैं और वे गुरु दक्षिणा में दाहिने हाथ का अंगूठा माँगते हैं तो एकलव्य खुशी-खुशी अंगूठा काटकर उनके सामने रख देता है। समर्थ गुरु रामदास को सिंहनी के दूध की आवश्यकता पड़ने पर उनके शिष्य शिवाजी अपने जीवन को खतरे में डालकर चल देते हैं और गुरु की अभीष्ट वस्तु लाकर उनके लिए प्रस्तुत करते हैं। गुरु के खेत में पानी रोकने में असमर्थ हो जाने पर बालक आरुणि का स्वयं ही लेटकर पानी रोकना यह बताता है कि गुरुऋण से उऋण होने के लिए शिष्यों में कितनी निष्ठा रहती थी और वे कृतज्ञता की भावनाओं से प्रेरित होकर प्रत्युपकार के लिए क्या-क्या करने को तैयार नहीं रहते थे।

परन्तु आज कल के नौजवान को देखो तो उनके अंदर इस तरह का कोई भी गुण दिखाई नहीं देता है | यह बड़े ही दुःख की बात है |

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