पत्नीव्रता के गुण भी सीखिये| ~ Learn the virtues of Wifehood. ~ Motivation Hindi

दोस्तों हर आदमी यह चाहते है कि मेरी पत्नी पतिव्रता हो | पर आप कभी पत्नीव्रता नहीं बनोगे | ऐसे ही सांड की तरह घूमते रहोगे |

पतिव्रत धर्म के सबसे बड़ा उदाहरण है गांधारी का, अंधे पति के साथ विवाह होने पर धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी ने अपनी आँखों पर जीवन भर के लिए पट्टी बाँध ली। पति की मर्यादा की रक्षा के लिए शैव्या ने अपने बच्चे का तथा अपना बिकना स्वीकार किया और दासी का निकृष्ट जीवन शिरोधार्य कर लिया। सीता वन-वन मारी-मारी फिरीं। सुकन्या ने अस्थि-पिंजरमात्र च्यवन ऋषि के साथ हुए अपने विवाह को प्रसन्नतापूर्वक निवाहा। दमयंती ने अपने पति के लिए क्या-क्या कष्ट नहीं सहे। चित्तौड़ की रानियाँ अपने पतियों की प्रतिष्ठा रखने के लिए जीवित चिताओं में जल गईं। चूड़ावत की पत्नी हाडी रानी ने अपने पति को वासनाग्रस्त होकर रणक्षेत्र में जाने से इंकार करने पर अपना सिर काटकर ही उसके सामने रख दिया और उसके यश पर आँच आने देना स्वीकार न किया।

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पतियों ने भी पत्नीव्रत को नारी के पतिव्रत से कम महत्त्व नहीं दिया। यज्ञ के समय पत्नी की आवश्यकता अनुभव होते हुए भी राम, एक पत्नी के रहते दूसरी से विवाह करने को किसी भी प्रकार तैयार न हुए, उन्होंने सोने की सीता बनाकर काम चलाया।

एक बार अर्जुन इंद्रलोक में गए | वहां रहने वाली अप्सरा उर्वशी ने उसके सामने काम प्रस्ताव किया और उसी के समान पुत्र प्राप्ति की कामना प्रकट कर दी | दोस्तों आप अगर होते तो क्या करते आप खुद ही बताओं आपके मन में तो लडडू फूट रहे होते | परन्तु अर्जुन ने यही उत्तर दिया कि मैं विवाहित हूँ, पत्नीव्रत नष्ट नहीं कर सकता, आप मुझे ही कुंती माता की तरह अपना पुत्र मानकर अपनी पुत्र प्राप्ति की कामना पूर्ण करें। ऐसा होता है पत्नीव्रत धर्म, क्या करोगे आप ऐसा | बोलो भाई चुप क्यों हो ?

मेरे भाई एक और वाक्या है छत्रपति शिवाजी का | एक बार छत्रपति शिवाजी के सामने जब एक सुंदर यवन युवती पेश की गई तो उनने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए इतना ही कहा—"काश! मेरी माता भी इतनी ही सुंदर होती तो मैं कुरूप क्यों जन्मता।"

संत तुकाराम का नाम तो सुना ही होगा आपने क्या किया था उन्होंने क्या पता है आपको | नहीं तो सुनो, संत तुकाराम कहीं से मिले हुए सारे गन्ने रास्ते में ही बालकों को बाँटकर जब केवल एक गन्ना  लेकर घर पहुंचे, तो उनकी कर्कशा पत्नी आग बबूला हो गयी और वह गन्ना लेकर तुकाराम की पीठ पर दे मारा; वह गन्ना बीच से टूट जाता है। अगर तुम्हारे साथ ऐसा होता तो तुम क्या करोगे मेरे भाई | संत तुकाराम क्रुद्ध नहीं हुए , वे जानते हैं कि पति के अपमान की तरह पत्नी का अपमान भी पाप है। जिस प्रकार पत्नी के लिए 'अंध, वधिर, क्रोधी अति दीना' पति का अपमान न करना धर्म है, उसी प्रकार पति के लिए भी कर्कशा एवं दुर्गुणी पत्नी को निबाहना और क्षमा करते रहना कर्त्तव्य है।

संत तुकाराम इस अपमान को क्षमा कर देते हैं और हँसते हुए केवल इतना ही कहते हैं—"देवि ! गन्ना एक था और खाने वाले हम दो। तुमने पीठ पर मारकर इसका ठीक बँटवारा कर दिया। लो एक तुम खाओ एक मैं खाता हूँ।"

इसलिए मेरे भाई अपनी पत्नी से पत्नीव्रता धर्म सिखाने से पहले, पत्नीव्रत कैसे बने यह भी सीखना बहुत जरूरी है |

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