दोस्तों हमें जीवन में कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए | अहंकार से जितना बचा जाए उतना ही अच्छा है | तुम्हारे अहंकार का नाश करने के लिए भगवान हमेशा प्रयत्न करता रहता है | जो व्यक्ति अहंकार करता है उसके जीवन से सभी प्रकार के सद्गुण समाप्त होने लगते है | जैसे तालाब का पानी सूखने पर पक्षी कहीं ओर चले जाते है |
अहंकार आने से इंसान में बहुत प्रकार के दुर्गुण आने लगते है | घमंडी आदमी में वे सब बुराइयाँ उत्पन्न हो जाती हैं, जो गुंडों या असुरों में होती हैं।
असुर या गुंडों का अहंकार ही आरंभ में विकृत होता है
डाकू और हत्यारों में लोभवृत्ति उतनी प्रबल नहीं होती, जितनी अहंकार की होती है । अहंकार को ही असुरता का प्रतीक माना गया है। अहंकारी की महत्वाकांक्षाएँ संसार के लिए एक विपत्ति ही सिद्ध होती हैं। सिकंदर, तैमूरलंग, नादिर शाह, औरंगजेब, नेपोलियन आदि के अहंकार ने कितनी निरीह जनता को संत्रस्त किया इसका रोमांचकारी चित्र इतिहास पढ़ने वाले हर विद्यार्थी को याद है। अहंकार का मार्ग हर मनुष्य को इसी दिशा में ले जाता है। जितनी उसकी क्षमता और परिस्थिति होती है, उसी अनुपात से वह दूसरों के लिए परेशानी का कारण बनता जाता है।
मेरे भाई तुम सफलता प्राप्त करने का प्रयत्न करो, पर यह कभी नहीं भूलना कि तुम कभी अहंकारी मत बनना | अहंकार का अपने ऊपर आक्रमण मत होने देना । जब भी तुम्हें सफलता मिले अपने सहयोगियों और मार्गदर्शकों का शुक्रगुजार बने रहना | अपने ईश्वर को सच्चे हृदय से धन्यवाद देना | जिसकी कृपा से ही तुमने इतना श्रेय प्राप्त किया है । मित्रों, मनुष्य को अपनी महानता याद रखनी चाहिए, किंतु तुच्छता को भी भूल न जाना चाहिए। एक ही झटके में बड़े−बड़े किले जब चूर−चूर हो जाते हैं तो बेचारे तुच्छ मनुष्य की तो बिसात ही कितनी है। आज एक कार्य में सफलता मिली है तो यह आवश्यक नहीं कि कल भी— दूसरे काम में भी सफलता मिल जावेगी।
अहंकार की उद्धतता मनुष्य के ओछेपन का चिह्न है। हर सफलता प्राप्त करते समय हमें यह आत्मनिरीक्षण करते रहना चाहिए कि कहीं इससे हमारा अहंकार तो नहीं बढ़ा, यदि बढ़ा हो तो सोचना चाहिए कि लाभ की अपेक्षा हमारी हानि ही अधिक हुई है। मेरे भाई अहंकार को एक भारी हानि ही नहीं, विपत्ति भी मानना चाहिए। और अहंकार से हमेशा दूर ही रहना चाहिए |
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