क्या हमें जीवन में स्वच्छता और व्यवस्था अपनाना चाहिए? ~ Should we Adopt Cleanliness and Order in Life? ~ Motivation Hindi

दोस्तों सफाई और व्यवस्था को हमें अपनी आदत में सम्मिलित करना ही चाहिए।

मेरे भाई जैसे तुम आत्मा का सम्मान करते हो, जैसे तुम ईश्वर का सम्मान करते हो, जैसे तुम दूसरों का सम्मान करते हो, उसी प्रकार तुम्हें अपने साधनों, उपकरणों और वस्तुओं का भी आदर करना चाहिए।

कपड़े, जूते बिस्तर, पुस्तकें, कलम, दवात, बर्तन, खाद्य−पदार्थ आदि सभी वस्तुएं साफ सुथरी और यथा स्थान सुसज्जित रूप से रखनी चाहिये। कला और सौन्दर्य रूप से रखनी चाहिये। जिसे सफाई से प्रेम नहीं, जहाँ-तहाँ गंदगी और अव्यवस्था वगैरह रहती है वह फूहड़ प्रकृति का आदमी अध्यात्मवादी होने का दावा नहीं कर सकता।

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मेरे भाई गंदगी से तुम उसी प्रकार जानी दुश्मनी रखो जिस प्रकार साँप, बिच्छू, पाप और कुकर्म से घृणा करते हैं। गंदगी पैदा होती ही रहती है। उससे बचा नहीं जा सकता, पर उसे तुरन्त स्वयं साफ करना चाहिये। गंदगी से घृणा उसी की सार्थक है जो उसे हटाने की प्रक्रिया में उत्साह रखता है।

मित्रों जो गंदगी साफ करने से जी चुराता है वह सफाई पसंद नहीं, वरन् गंदगी को प्रेम करने वाला है। प्रेमी ही अपनी प्रिय वस्तु को हटाने में संकोच कर सकता है। जो चीज यथास्थान नहीं रखी गई है वह महत्वपूर्ण और कीमती होते हुए भी कूड़ा बन जाती है और कूड़ा भी अपने नियत स्थान पर रखा होने से सुरुचि का परिचायक होता है।

इसलिए हमें अपनी हर वस्तु का आदर करना चाहिए। मकान का, पलंग का, बिस्तर का, कपड़ों का, पुस्तकों का, बर्तनों का भी। इस आदर का एक ही चिन्ह है कि उन्हें यथास्थान रखा गया है या नहीं। साबुन और बुहारी से हमें सच्ची दोस्ती करनी चाहिए।

मेरे भाई कपड़े धुले हुए साफ रहें, स्नान में शरीर का मैल पूरी तरह छुड़ाया जाय, मंजन करने में चूक न की जाय। घर की नालियाँ साफ रहें, छतों पर मकड़ी के जाले कहीं भी दिखाई न पड़ें, हर चीज अपने स्थान पर सुसज्जित रूप से रखी और साफ सुथरी हो तो अपनी झोंपड़ी भी देव मंदिर से सुन्दर लग सकती है और अपने व्यक्तित्व, संस्कृति, सुरुचि कलात्मक दृष्टिकोण और सुधरे हुए स्वभाव का प्रमाण मिल सकता है। यह सब हमें करना ही चाहिए।

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