क्या हमें असंतोष और उतावलेपन से दूर रहना चाहिए? ~ Should we stay away from Dissatisfaction and Rashness? ~ Motivation Hindi

दोस्तों हमें हमेशा असंतोष और उतावलेपन से दूर ही रहना चाहिए | अगर ये दोनों तुम्हारे जीवन में है तो जल्दी ही इन्हें दूर करने का प्रयास करना चाहिए | तभी आप उन्नति कर सकते हो |

मित्रों, उन्नति की आकांक्षा एक बात है और असंतोष बिलकुल दूसरी। उन्नतिशील व्यक्ति आशा, उत्साह, धैर्य और साहस को साथ लेकर प्रसन्न मुखमुद्रा और स्थिर चित्त के साथ आगे बढ़ते हैं। गहरे पानी में उतरते हुए हाथी जिस प्रकार अपना एक-एक कदम बहुत सँभाल-सँभालकर रखता है और जहाँ गड्ढा दीखता है वहाँ से तुरंत पैर पीछे हटा लेता है, उसी प्रकार प्रत्येक उन्नतिशील व्यक्ति सँभल-सँभलकर अपना प्रत्येक कदम आगे बढ़ाता है। स्वस्थ चित्त एवं उद्वेग रहित व्यक्ति ही वर्त्तमान कठिनाइयों का सही कारण ढूँढ़ सकने और उसका उपाय खोज निकाल सकने में समर्थ हो सकता है। उसी की सूझ-बूझ ठीक तरह काम करती है और वही कठिनाइयों और बाधाओं का निराकरण कर सकने में समर्थ होता है और वही प्रतिकूल परिस्थितियों में देर तक दृढ़तापूर्वक खड़ा रह सकता है। जिसमें इतनी दृढ़ता न होगी, वह अधीर व्यक्ति कभी किसी महत्त्वपूर्ण सफलता का अधिकारी न हो सकेगा। 

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मेरे भाई जिन व्यक्तिओं में उतावलापन होता है, उन्हें एक प्रकार के ‘अधपगले’ कहे जा सकता हैं। वे जो कुछ चाहते हैं, उसे तुरंत ही प्राप्त हो जाने की कल्पना किया करते हैं। यदि जरा भी देर लगती है तो अपना मानसिक संतुलन खो बैठते हैं और प्रगति के लिए अत्यंत आवश्यक गुण मानसिक स्थिरता को खोकर, असंतोषरूपी उस भारी विपत्ति को कंधे पर ओढ़ लेते हैं, जिसका भार लेकर उन्नति की दिशा में कोई आदमी देर तक नहीं चल सकता।

मेरे भाई, असंतोष एक प्रकार का मानसिक बुखार है। जिस प्रकार बुखार का रोगी शारीरिक और मानसिक दोनों ही दृष्टियों से अशक्त हो जाता है, खड़े होते ही उसके पैर लड़खड़ा जाते हैं, कुछ ही देर पढ़ने, बोलने या सोचने से सिर दर्द करने लगता है, उसी प्रकार असंतोष से ग्रसित मानसिक रोगी भी कुछ कर-धर नहीं सकता। उसे कुढ़न ही हर घड़ी घेरे रहती है। क्षुब्ध और उत्तेजित मन से वह अंट-शंट बातें ही सोच सकता है। दूसरों पर दोषारोपण करके अपने द्वेष और क्रोध को बढ़ाते रहना ही उससे बन पड़ता है।

अपनी मानसिक स्थिति जिनने इस प्रकार की असंतुलित बना ली है, वे व्यक्ति अपने उद्वेग की उलझन में ही उलझे पड़े रहते हैं। उनकी सारी शक्तियाँ कुढ़न, असंतोष, प्रतिशोध, निंदा, ईर्ष्या आदि में ही नष्ट होती रहती हैं।

प्रगति के पथ पर बढ़ने के लिए जिन सद्गुणों की आवश्यकता है, वह इन असंतुष्ट व्यक्तियों को तिलांजलि देकर अपने आप पलायन कर जाते हैं और ऐसे व्यक्ति एक के बाद दूसरा, दूसरे के बाद तीसरा दुर्भाग्य अपने सामने उपस्थित होते देखा करते है।

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