सबसे बड़ा दुख किस कारण होता है? ~ What causes the Greatest Suffering? ~ Motivation Hindi

दोस्तों क्या आप जानते हैं कि इंसान को सबसे बड़ा दुख किस कारण होता है?  चिंता, भय, निराशा, शोक, अपमान आदि अनेकों कारणों से मनुष्य का मन दुःखी रहता है, पर उन सबको मिलाकर भी उतना दुःख मन को नहीं होता जितना द्वेष के कारण होता है।

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एक सांप को आपने देखा है जब वह किसी पर क्रोधित हो जाता है तो इतना उग्र बन जाता है कि छेड़ने वाले की जान लिए बिना संतुष्ट नहीं होता। कई बार तो वह अपने छेड़ने वाले को वर्षों तक याद रखता है और जब भी उसे अवसर मिलता है, तभी अपने बैर का प्रतिशोध लेकर जी की जलन मिटाता है।


मेरे भाई, मनुष्य तो और भी अधिक संवेदनशील है। क्रोध उसे पागल ही बना देता है। चाणक्य का नाम तो आपने सुना ही होगा | जब उस जैसा विद्वान, जरा-से अपमान से क्रुद्ध होकर इतना असंतुलित हो गया कि उसने नंद वंश का सर्वनाश करके ही चैन लिया।

मित्रों, द्रौपदी के जरा-से व्यंग्य से दुखी होकर दुर्योधन इतना क्रूर बन गया कि उसने पांडवों से बदला लेने के लिए महाभारत जैसी विभीषिका को स्वीकार कर लिया। चंबल घाटी के दुर्दांत दस्युओं की समस्या जिसने लाखों मनुष्यों का नागरिक जीवन अस्त−व्यस्त किया है, डाकुओं के प्रारम्भिक जीवन में किसी साधारण बात से उत्पन्न द्वेष और प्रतिशोध से आरंभ होती है और अब तक वह समाज को भारी क्षति पहुँचा रही है।

मेरे भाई अगर इतिहास पर दृष्टि डालकर देखोगे तो पता चलेगा कि भयंकर संघर्षों और आक्रमणों के बीच द्वेष को ही प्रधान कारण पाते हैं। अन्य सभी कारण बहुत छोटे नजर आते है । शांत भाव से जंगलों में जीवनयापन करने वाले पशु, जिनके बीच कोई समस्या नहीं है, कभी क्रोध और द्वेष के वशीभूत होकर ऐसे असंतुलित होकर लड़ पड़ते हैं, कि एक दूसरे की जान लेकर ही पीछे हटते हैं। सिंह, व्याघ्र, रीछ और भैंसों में ऐसी ही लड़ाई होती है। कुत्तों को लड़ते हुए तो हम रोज ही देखते हैं। तीतर, बटेर और मुर्गों की लड़ाई भी कराई जाती है। कुत्ता-बिल्ली के बीच अकारण बैर है। कोई किसी का माँस भी नहीं खाता फिर भी द्वेषवश एक दूसरे की जान के ग्राहक बने रहते हैं। द्वेष से क्रोध उत्पन्न होता है और क्रोध में उन्मत्त होकर मनुष्य पागलों की तरह वह कुकर्म कर बैठता है, जिसके लिए उसे सदा पश्चात्ताप-ही-पश्चात्ताप करते रहना पड़ता है।

द्वेष का प्रधान कारण गलतफहमी होता है। आमतौर से हम उन सबको अपना शत्रु या विरोधी मान लेते हैं, जो हमारे विचारों से सहमत नहीं होते, हमारी पसंद की गतिविधियाँ नहीं अपनाते। हर आदमी यह सोचता है कि बाकी सब लोग मेरी इच्छानुसार सोचें और करें। यह आकांक्षा बहुत ही गलत, अहंकारपूर्ण और नासमझी से भरी हुई है।

द्वेष के कारण जो क्रोध और प्रति हिंसा का भाव उत्पन्न होता है, उससे प्रतिपक्षी को जितनी हानि पहुँचती है, उससे अनेकों गुनी हानि अपनी होती है।

इसलिए मेरे भाई एक दूसरे से द्वेष करना छोड़ दो | मिलजुलकर कर रहना सीखों इस संसार में, स्वर्ग यहीं पर है |

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