दोस्तों एक बात बताओ हमारे आनंद में सबसे बड़ा शत्रु कौन है? क्या सोचने लगे? मैं आपको बताता हूँ आनंद का सबसे बड़ा शत्रु है हमारा असंतोष। हम प्रगति के पथ पर उत्साहपूर्वक बढ़े। हम परिपूर्ण पुरुषार्थ करें। हम आशापूर्ण सुंदर भविष्य की रचना के लिए व्यस्त रहें |
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मेरे भाई पर साथ ही यह भी ध्यान रखें कि असंतोष की आग में जलना छोड़ दे । इस दावानल में आनंद ही नहीं
, मानसिक संतुलन और सामर्थ्य का स्रोत भी समाप्त हो जाता है। इस असंतोष से प्रगति का पथ प्रशस्त नहीं, अवरुद्ध होता है। जल्दी कामना पूर्ण हो, इस हड़बड़ी में ही चित्त उलझा रहता है।प्रगति-पथ पर व्यवस्थापूर्वक बढ़ चलने के योग्य धैर्य और शांत चित्त द्वारा बन सकने वाली योजना भी उससे कहाँ बन पड़ती है? ऐसा व्यक्ति कोई ठोस सफलता प्राप्त कर सकेगा, इसमें संदेह ही बना रहेगा।
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