नमस्कार दोस्तों आज की यह वीडियो आपको आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए मोटीवेट करेगी |
हे सौम्य! हे सत्यकाम! ‘मैं कौन हूँ’ यह मालूम कर। अपने भीतर टटोल। इस संसार व शरीर की वास्तविकता को समझ। जैसे ही तू जाग जाता है तेरा स्वप्न झूठा हो जाता है।
इसी प्रकार जब तुझे आत्म ज्ञान हो जायगा तब यह संसार असत्य हो जायगा- अदृश्य हो जायगा। संसार केवल मन की उपज है। इसका अस्तित्व केवल सम्बन्ध रखता हुआ, परिवर्तनशील एवं परतन्त्र तथा दृष्टि विषयक और निर्भर रहने वाला है। यह ब्रह्म से निकला है, उसी में रहता है तथा अन्त में उसी में मिल जाता है।
हे सत्यकाम! तेरा प्रथम कर्त्तव्य अपनी आत्मा को पहचानना है। यह आत्मा अनन्त है तथा आत्मप्रकाश है। इस तुच्छ अपनेपन को नष्ट कर दें और सच्चिदानन्द आत्म से संपर्क रख। शरीर, स्त्री, सन्तान, तथा धन में जो आसक्ति है उसका त्याग कर दे। इच्छाओं स्वार्थ व ‘अपनेपन’ को तिलाँजलि दे दे तथा उस पूर्णज्ञान ‘निर्विकल्प समाधि’ को प्राप्त कर जिसमें न कोई विषय है, न उद्देश्य, न प्रसन्नता है, न दुःख, न सर्दी है न गर्मी, न भूख है न प्यास। तब तू सर्वश्रेष्ठ आनन्द, अनन्त शान्ति, असीम ज्ञान तथा अमर गति का भोग करेगा।
तू अज्ञान के आवरण से कृत्रिम निद्रा के वशीभूत है। तू आत्म ज्ञान द्वारा कृत्रिम निद्रा से जाग और ‘अमर गति’ को जान। तू कब तक माया के फन्दे में फंसा रहना चाहता है। बहुत हो चुका। अब तू इन बन्धनों को तोड़। अविधा की जंजीर को तोड़ दे-उन पाँच पर्दों को फाड़ दे और इस हाड़-माँस के पिंजरे से विजयी होकर निकल आ। मेमने की भाँति ‘मैं-मैं’ न कर, बल्कि ओऽम्-ओऽम्-ओऽम् की गर्जना कर, ओऽम्-ओऽम्-ओऽम् का स्मरण कर, स्वीकार कर, सिद्ध कर और पहचान। अपनी आत्मा को पहचान और इसी क्षण बन्धन से मुक्त हो जा। तू ही सम्राटों का सम्राट है- तू ही सर्वश्रेष्ठ है। उपनिषदों के अन्तिम शब्द ध्यान में ला। ‘तत् त्वं असि’- ‘तू’ ही ‘वह’ है। मेरे प्रिय सत्यकाम! ‘उसे’ जान- ‘उसे’ जानना ही ‘वह’ बन जाना है।
अपने भीतर टटोल। अपने को समस्त विचारों से विमुक्त कर ले। विचार शून्य बन जा। सत्य और असत्य की पहचान कर। अनन्त और अदृश्य में भेद कर। इस बहते हुए मन को बार-बार केन्द्रित करने की चेष्टा कर। विपरीत की द्वन्द्वता से ऊपर उठ। नेति-नेति, के पाठ का अध्ययन कर। धोखे के चक्रों का नाश कर दे। अपने को सर्वव्यापक आत्मा से मिला। आत्म ज्ञान प्राप्त कर और उस सर्वश्रेष्ठ आनन्द का भोग कर।
यह जान ले कि मन में उठने वाले क्षणिक विचार तथा संकल्प धोखा देने वाले हैं। तू मन तथा विचारों का दर्शक है परन्तु तू अपने उन विचारों में मग्न मत हो। अपने को ब्रह्मज्ञान के बीच में स्थित कर। अपने को सर्वश्रेष्ठ और उच्च स्थिति में रख। अपने आप को संदेह रहित, दुःख-रहित, निर्भय एवं क्लेश-रहित, और भ्रम-रहित बना तथा निर्मल सुख में स्थित होना सीख। काल और मृत्यु तेरे निकट नहीं आ सकते। तेरे लिए कोई बन्धन या रुकावट नहीं है। तू यह अनुभव करेगा कि तू इस ब्रह्माण्ड की समस्त ज्योतियों से सर्वश्रेष्ठ ज्योति है। अपूर्व सुख की यह स्थिति अवर्णनीय है। इसे अनुभव कर और प्रसन्न रह।
तू वह अमर आत्मा है जो समय, स्थान और उत्पत्ति से भी परे है। तू इसमें तनिक भी संदेह न कर। समय, स्थान और उत्पत्ति मन की उपज है। वह केवल मन में ही रहते हैं। दूरदर्शिता को प्राप्त कर। ढूँढ़ने वाले को ढूँढ़, जानने वाले को जान, सुनने वाले को अनुभव कर। इन नामों और आकारों में जो एकता है उसको पहचान। उद्देश्य विषय से भिन्न नहीं है, तू सर्वदा ही विषय को समझता रहा है।
अज्ञान की इस दीर्घ निद्रा से जाग। जन्म-मरण तथा उसके साथ के पापों से मुक्ति प्राप्त कर। आकारों के भ्रम से छुटकारा पा ले। मोह, ममता, मेरा तथा अपनेपन का त्याग कर। अपने को सर्वव्यापक जाग्रति जान। आत्म-ज्ञान के साम्राज्य के सिंहासन पर आरुढ़ हो जा। यही तेरा सर्व प्रथम घर है-अनन्त प्रकाश तथा असीम घर का अमिट स्थान है।
इस “मैं” को क्रूरता के साथ नष्ट कर दे। अगर “मैं” अदृश्य हो जाएगा तो तेरे लिए ‘वह’ और ‘तू’ अथवा ‘यह’ और ‘वह’ नहीं रहेंगे। यह एक अभूतपूर्व असाधारण एवं अवर्णनीय अनुभव होगा। तब तू संसार की अन्तिम सुन्दरता को पा लेगा। तू तब ‘जीवन मुक्त’ हो जाएगा- एक स्वतंत्र पुण्यात्मा हो जायेगा। इस ज्ञान को दूसरों के साथ बाँट कर उन्हें भी ऊपर उठा। सत्य का सूर्य बन कर प्रकाश को चारों ओर फैला। इस अमित आनन्द और शाश्वत शाँति को जन-जन में बाँट, तू अमर हो जायगा।
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