Summary:
नियम का पालन एक मानसिक बंधन है। जब आप मन में यह दृढ़ निश्चय करते हैं कि अमुक नियमों से रहेंगे या अमुक-अमुक नियमों का जीवन में पालन करेंगे, तो आप मन ही मन एक गुप्त शक्ति से अपने जीवन और कार्यों को बँधा हुआ पाते हैं। नियमों के पालन का निश्चय ही एक साधन है। इसमें प्रारम्भ में मन और शरीर को कुछ कठिनाई अवश्य पड़ती है, पर बार-बार नियमों का पालन करने से मन का नियंत्रण हो जाता है।
नियम हमें संयम की शिक्षा देने वाले अमूल्य अंकुश हैं, जो हमें उच्च प्रकार के साँस्कृतिक जीवन की ओर ऊँचा उठाते हैं। नियम की जंजीरों में बंध कर मनुष्य व्यर्थ के निरुपयोगी कार्यों से छूट जाता है। मन व्यर्थ की क्रियाओं से बच जाता है। मन की स्वतन्त्रता की एक विशेष सीमा निर्धारित हो जाती है। इसकी मर्यादा के बाहर जाते ही हम चौंक जाते हैं। गुप्त मन हमें नियमोल्लंघन करने पर प्रताड़ित करता है। वस्तुतः, हम फिर मन की लगाम को खींचकर उसकी निर्बाध स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा देते हैं।
नियमों में बंध कर मनुष्य की शक्ति का विकास होता है। व्यर्थ-चिंतन, व्यर्थ के कार्य और इन्द्रियों के प्रलोभनों से बचकर आहार-विहार में संयम लाने से मनुष्य का शरीर श्रमी, बुद्धि विवेकवती और मन शक्तिशाली बनता है। जितेन्द्रियता व्यक्ति के निर्माण में सर्वाधिक महत्व रखती है।
प्रकृति अपने नियम नहीं छोड़ती। इस संसार की प्रत्येक गति कुछ गुप्त नियमों के अनुसार चल रही है। ऋतुओं का आना-जाना, वृक्षों के फल-फूल, पत्तियों का उद्भव; जीव विज्ञान के नाना कार्य, भौतिक विज्ञान के अनेक नियमों पर चल रहे हैं। सृष्टि अपने नियम नहीं छोड़ती। समस्त विज्ञान हमें नियमों का महत्व स्पष्ट कर रहे हैं। फिर, मनुष्य अपने नियमों को छोड़कर कैसे उन्नति कर सकता है? मनुष्य की अपरिमित शक्ति समस्त मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक नियमों के पालन में ही हो सकती है।
तः, अपने आप को कठोर नियमों के बंधन में बाँधे रखिए। इससे आप की सभी शक्तियाँ बढ़ती रहेंगी और अपव्यय न होगा। नियम टूटते ही संयम नष्ट हो जाता है और शक्तियाँ नष्ट हो जाती हैं।
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