मेरे भाइयो! प्रकृति की शरण में लौटकर आओ। दोस्तों आपको जानकार हैरानी होगी कि आज दवाई का इतना प्रचार हमारे अप्राकृतिक जीवन का ही परिणाम है। पहले तो तुम प्रकृति के नियमों को तोड़ते हो। जब प्रकृति तुम्हे रोग रूप में सजा देती है तो तुम तरह-तरह की दवाइयाँ खाते हो। इस प्रकार क्या युवक और क्या युवतियाँ रसातल के मार्ग में नहीं जा रही हैं। जरा सोचों मेरे भाई कबतक
, आखिर कबतक गुप्त रोगों, मूत्र रोगों तथा अन्य निन्दनीय रोगों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ाते रहोगे।अब तो सुधर जाओ मेरे भाई, तुम प्रकृति की शरण में लौटकर आओ।.
तुम्हारा
भोजन अप्राकृतिक हो चला है, तुम्हारी जीवन जीने का तरीका
अस्वाभाविक हो चला है। तुम दिन में
सोते हो और रात में सिनेमा,
होटलों,
नाचघरों
में मजेदरियाँ करते फिरते हैं। अप्राकृतिक रोशनी में पढ़ते लिखते हैं और असमय ही आँखों
के रोगों से पीड़ित होते जा रहे हो। तुम्हारे चेहरे पर मोटे-मोटे गलास का चश्मा लड़ता
जा रहा है |
मेरे भाई,अतिगर्म चाय, और अति शीतल बर्फदार शर्बत या सोडालेमन पीकर तुम्हारे दांत रोगों के शिकार बनते जा रहे हैं जिसकी वजह से गली गली में डेंटल क्लिनिक खुलते जा रहे है। आज के नब्बे प्रतिशत फैशन परस्त नवयुवक आँख और दांत के रोगों से पीड़ित हैं।
आजकल नौजवान अस्वाभाविक मैथुन करते है, अपना वीर्यपात बड़ी मात्रा में करते है, और व्यभिचार के चक्कर में फंसकर अपनी जिंदगी बर्बाद कर रहे है इसका पता हमें गुप्तरोगों के बढ़ते हुए विज्ञापनों और चिकित्सकों से लगता है। आज शहर की गली गली में स्वप्नदोष या धातुक्षय का इलाज होता है।
मेरे भाई अप्राकृतिक रीतियों से कच्ची आयु में वीर्यपात का दुष्परिणाम बड़ा भयंकर होता है, शरीर की हालत जर्जर होता है। युवक भी वृद्ध सा दिखता है। भले ही हम कितनी ही चालाकी से पाप करें किन्तु यह प्रकृति बड़ी सतर्कता से सब कुछ देखती रहती है। मेरे भाई उसके दरबार में माफी नहीं होती है।
क्या बड़ा क्या छोटा सभी को वह समान रूप में दण्ड देती है। मेरे भाई तुम उसकी आंखों को धोखा नहीं दे सकते हो। प्रत्येक नीच और गलत कर्म के लिए सजा का विधान है। इसे हमेशा याद रखो |
स्वामी शिवानन्दजी ने कहा है- “प्रकृति माता अपने हाथ में डंडा लिए तुम्हारे मर्म स्थानों पर कठोर डंडा प्रहार करने के लिए तैयार रहती है। ज्यों-ज्यों तुम वीर्य नाश करोगे। त्यों-त्यों वह तुम्हें मारते-मारते बेदम व अधमरा कर देगी। मेरे भाई तब भी यदि तुम न चेतोगे या सुधरोगे | जैसे तुम सड़े हुए फलोे को फेंक देते हो, उसी प्रकार प्रकृति माता तुम्हें मृत्यु की ओर फेंक देगी, तुम्हें उठाकर नर्क कुण्ड में डाल देगी।
भाइयो! प्रकृति की शरण में लौट आओ। प्रकृति माता परम दयालु है। वह तुम्हारा अवश्य सुधार करेगी।”
0 टिप्पणियाँ