Summary:
यदि सीजर को इस आत्म प्रेरणा की प्राप्ति न होती तो निस्सन्देह वह हरी घास की खोज में रोम की विचित्र पहाड़ियों पर अपनी भेड़ों को साधारण गड़रियों की तरह चराता फिरता।
मित्रों यदि नेपोलियन को गुप्त प्रेरणा मार्ग न दिखाती तो सम्भवतः वह साहित्य संसार की किसी अन्धकारमय कौने में अज्ञान रूप से अपनी जीवन-यात्रा समाप्त कर देता।
मित्रों यदि लेलिन, मुस्तफा, कमालपाशा, डीवेलरा जैसे पुरुष अन्तर्प्रेरणा से प्रेरित न होते तो अपने-अपने देशों के भाग्य विधाता कदापि न बन पाते। इसी प्रकार
यदि रेम्जेक्डानल्ड जैसे मजदूर को विलक्षण प्रेरणा न मिलती तो उसकी अद्भुत प्रतिभा तथा राजनैतिज्ञता भीतर ही भीतर दम घुटकर शान्त हो जाती। एक योग्य प्रधान मन्त्री बनने के स्थान पर वह कोयले की खानों में कोयले की बोरियां ही ढोया करता। इन सबकी संचालन शक्ति इनके अन्तःकरण में प्रवेश करने वाली आत्म प्रेरणा ही थी।
प्रेरणा के विषय में अनेक मत प्रचलित हैं। कुछ मनोवैज्ञानिकों ने प्रेरणा को स्पष्ट करने के लिए परिभाषाएं देने का भी प्रयत्न किया है। इनमे से कुछ परिभाषाएं इस प्रकार हैं ।
‘प्रेरणा ईश्वरीय शक्ति है। जो सात्विक प्रकृति के महापुरुषों को अपना जीवन कार्य करने का आदेश देती है।’
‘प्रेरणा मनुष्य के अन्तः स्थित अगाध सामर्थ्य को बाहर प्रकट करने की चेतावनी है। हमारे मनः प्रदेश में जो वास्तविक सामर्थ्य है हम उसका करोड़ हिस्सा भी बाहरी जीवन में प्रवेश नहीं करते। प्रेरणा आत्मा को प्रकाशित कर मनुष्य को आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है |
प्रत्येक व्यक्ति को परमेश्वर एक कार्य सौंपता है, किन्तु संसार में आने के पश्चात हम उस दैवी कार्य को भूल जाते हैं। प्रेरणा एक ऐसी आवाज है जो हमें उस सर्वव्यापक महाशक्ति के साथ संयुक्त कर देती है जो समस्त संसार का संचालन करती है।
जिस मनुष्य ने अपना अधिकांश जीवन योंही व्यर्थ खराब किया तथा ‘उष्ट्र’ शब्द का भी शुद्ध उच्चारण न कर सका, वही बाद में ‘रघुवंश’, ‘कुमार सम्भव’, ‘मेघदूत’ जैसे विश्व प्रसिद्ध पुस्तकें निर्माण कर गया। वह मूर्खता एवं विद्वता की चरम है। बंगाल प्रान्त के महाकवि माइकेल, मधुसूदनदत्त एक दिन यह नहीं समझते थे कि ‘पृथ्वी’ ‘प्रथ्वी’ में शुद्ध कौन सा है। जिस पर भी उन्होंने युगान्तरकारी काव्य लिख डाला।
जो मनुष्य आज कंगाल है, कल वही धन कुबेर बन जाता है। जिसने जीवन भर तलवार बन्दूक का नाम नहीं लिया वही कुछ पल पश्चात् रणक्षेत्र में शस्त्र विद्या की वह बहादुरी दिखाता है कि लोग देखकर चकित रह जाते हैं।
मित्रों अब मैं आपको आत्म प्रेरणा के तत्व के रहस्य को बताता हूँ |
प्रेरित व्यक्ति की मनोदशा देखने पर कई तत्व मिलते हैं।
सर्व प्रथम तो एक निश्चित उद्देश्य की प्रतीति है। प्रेरणा किसी खास दशा में होती है। यह किसी भी क्षेत्र के लिये सम्भव है। जोन आफ आर्क को प्रेरणा हुई कि वह अपने देश का उद्धार करने के उद्देश्य से भेजी गई है। उसने सब ओर से चित्त मोड़ कर केवल उसी महत्वपूर्ण कार्य पर समस्त शक्तियां केन्द्रित कर लीं। अन्य सभी ओर यहां तक कि अपने विवाह तक की ओर से उसने मन मोड़ लिया। अन्त में सैकड़ों कठिनाइयों का सामना करने के पश्चात उसने अपना कार्य पूर्ण किया।
दूसरा तत्व है असाधारण मनोबल। प्रेरित व्यक्ति परमेश्वर के अतिरिक्त अन्य किसी से भी नहीं डरता। उसके शरीर में अधिक बल नहीं होता, किन्तु उसमें दृढ़ निश्चय व्रत इच्छा तथा प्रबल प्रयत्न का बल होता है। वह तुच्छ विघ्नों से अकारण ही भयभीत नहीं होता बल्कि महान् साहसिक कार्यों की पूर्ति के लिए आगे बढ़ता है। मनोबल उसकी शक्तियों को सहस्र गुना कर देता है तथा उसकी अन्तर्दृष्टि तीव्र हो उठती है।
तृतीय तत्व है अपूर्व आत्म श्रद्धा। उसे पूरा-पूरा विश्वास होता है कि परमेश्वर की सेना मेरे साथ है। मैं ठीक पथ पर हूं। मुझमें कार्य सम्पादन की पूरी-पूरी योग्यता है। मैं ही अपने उद्देश्य में कृतकृत्य हो सकता हूं। आत्म श्रद्धा सब प्रकार की सफलताओं की मूल है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में इससे अद्भुत प्रकाश मिलता है।
विशिष्ट उद्देश्य, मनोबल तथा आत्म श्रद्धा से प्रेरणा प्राप्त हो गई है सचमुच वह व्यक्ति धन्य है।
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