क्या हमें जीवन में शक्ति को प्राप्त करना चाहिए? ~ Should we Get Strength in Life?


 

नमस्कार दोस्तों, हमें जीवन में शक्ति को प्राप्त करना बहुत ही आवश्यक है | जीवन एक प्रकार का संग्राम है, एक युद्ध है इसे जितनी जल्दी समझ लो उतना अच्छा है । जीवन में हमें घड़ी-घड़ी विपरीत परिस्थितियों से, कठिनाइयों से लड़ना पड़ता है । मनुष्य को अनगिनत विरोधी तत्त्वों को पार करते हुए अपनी यात्रा जारी रखनी होती है ।

मेरे भाई जरा दृष्टि उठाकर देखो, जिधर देखोगे उधर ही शत्रुओं से जीवन को घिरा हुआ पाओगे। इस दुनिया में दुर्बल तो ताकतवरों का आहार ही बनते है | हर बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है | प्रकृति का यह एक ऐसा कडुआ सत्य है जिसे लाचार होकर स्वीकार करना ही पड़ेगा । अपने आसपास देखो, बड़े वृक्ष अपना पेट भरने के लिए आस-पास अनेक छोटे पौधों की खुराक झपट लेते हैं और वे बेचारे छोटे पौधे मृत्यु के मुख में चले जाते हैं । छोटे कीड़ों को चिड़ियाँ खा जाती हैं और उन चिड़ियों को बाज आदि बड़ी चिड़ियाँ मार खाती हैं । क्या तुमको पता नहीं है कि गरीब लोग अमीरों द्वारा, दुर्बल, बलवानों द्वारा सताये जाते हैं ।

समझो मेरे भाई इस बात को कब तक आँखें बंद करके भगवान को याद करते रहोगे | भगवान उनकी ही सहायता किया करते है जो अपनी सहायता अपने आप करने की हिम्मत करते है |

इन सब बातों पर विचार करते हुए हमें इस निर्णय पर पहुँचना होता है कि यदि ताकतवर का शिकार होने से पहले, उनके द्वारा नष्ट किए जाने से अपने को बचाना है तो अपनी दुर्बलता को हटाकर इतनी शक्ति तो कम से कम अवश्य ही संचय करनी चाहिए कि कोई भी तुम्हें यों ही चट न कर जावे । तुम्हारी चटनी न बना जाए |

साथियों क्या आप जानते है कि रोगों के कीटाणु जो इतने छोटे होते हैं कि आँखों से दिखाई ही नहीं पड़ते, हमारे स्वास्थ्य को नष्ट कर डालने और मार डालने के लिए चुपके- चुपके प्रयत्न करते रहते हैं । हमारे शरीर में उन्हें थोड़ी भी जगह मिल जाय तो बड़ी तीव्र गति से वे हमें बीमारी और मृत्यु की ओर खींच ले जाते हैं । जरा सा मच्छर मलेरिया का उपहार लिए हुए पीछे फिरा करता है, मक्खियाँ हैजा की भेंट लिए तैयार खड़ी हैं । बिल्ली घर में से खाने-पीने की चीजें चट करने के लिए, चूहा कपड़े काट डालने के लिए, बंदर बरतन उठा ले जाने के लिए तैयार बैठा है ।

मेरे भाई बाजार में निकलिए दुकानदार खराब माल देने, कम तौलने, दुगने पैसे वसूल करने की घात लगाए बैठा है । ठग, चोर, उचक्के अपना-अपना दाव देख रहे हैं, ढोंगी, मुफ्तखोर अपना जाल अलग ही बिछा रहे हैं । चोर, गुंडे, दुष्ट अकारण ही जलते, दुश्मनी बांधते और नुकसान पहुँचाने का प्रयत्न करते हैं । सगे-संबंधी भी अपने-अपने स्वार्थ साधन की प्रधानता से ही आपसे हित या अनहित घटाते-बढ़ाते रहते हैं ।

भाइयों चारों ओर मोर्चाबदियाँ बंधी हुई है । यदि आप सावधान न रहें, जागरूकता से काम न लें, अपने को बलवान साबित न करें तो निस्संदेह इतने प्रहार चारों ओर से होने लगेंगे कि उनकी चोटों से अपने को बचाना कठिन हो जायगा । ऐसी दशा में उन्नति करना, आनंद प्राप्त करना तो दूर, शोषण, अपहरण, चोट और मृत्यु से बचना मुश्किल होगा । अतएव सांसारिक जीवन में प्रवेश करते हुए इस बात को भली प्रकार समझ लेना और समझकर गांठ बांध लेना चाहिए कि केवल जागरूक और बलवान व्यक्ति ही इस दुनिया में आनंदमय जीवन के अधिकारी है । जो निर्बल, अकर्मण्य और लापरवाह स्वभाव के हैं, वे किसी न किसी प्रकार दूसरों के द्वारा चूसे जाएँगे और आनंद से वंचित कर दिए जाएँगे । जिन्हें अपने स्वाभाविक अधिकारों की रक्षा करते हुए प्रतिष्ठा के साथ जीने की इच्छा है, उन्हें अपने दुश्मनों से सजग रहना होगा, उनसे बचने के लिए बल एकत्रित करना होगा ।

दोस्तों जब तक आप अपनी योग्यता नहीं प्रकट करते, तब तक लोग अकारण ही आपके रास्ते में रोड़े अटकाएँगे, किंतु जब उन्हें यह मालूम हो जायगा कि आप शक्ति संपन्न हैं तो वे जैसे अकारण दुश्मनी ठानते थे, वैसे ही अकारण मित्रता करेंगे । बीमार के लिए पौष्टिक भोजन विषतुल्य होता जाता है किंतु स्वस्थ मनुष्य को बल प्रदान करता है । जो सिंह रास्ता चलते सीधे-साधे आदमियों को मारकर खा जाता है वही सिंह सरकस मास्टर के आगे दुम हिलाता है और उसकी आज्ञा का पालन करता हुआ, बहुत बड़ी आमदनी कराने का साधन बन जाता है ।

मेरे भाई पहले अच्छे स्वास्थ्य वाले को बलवान कहते थे , परंतु आज के युग में वह परिभाषा अधूरी है । इस युग में शरीर का बल, पैसे का बल, बुद्धि का बल, प्रतिष्ठा का बल, साथियों का बल, साहस का बल यह सब मिलकर एक पूर्ण बल बनता है । आज के युग में बलवान वह है जिसके पास उपरोक्त छह बलों में से कई बल हों; आप अपने शरीर को बलवान बनाइए, परंतु साथ-साथ अन्य पाँच बलों को भी एकत्रित कीजिए । किसी के साथ बेइंसाफी करने में इन बलों का उपयोग करें, ऐसा हमारा कथन नहीं है । परंतु जब आपको अकारण सताया जा रहा हो तो आत्मरक्षा के लिए यथोचित रीति से इनका प्रयोग भी कीजिए जिससे शत्रुओं को दुस्साहस न करने की शिक्षा मिले । बलवान बनना पुण्य है क्योंकि इससे दुष्ट लोगों की कुवृत्तियों पर अंकुश लगता है और दूसरे कई दुर्बलों की रक्षा हो जाती है ।

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