ऊँचा रहन-सहन का सच्चा अभिप्राय क्या होता है? ~ What is the True meaning of a High Standard of Living?

 

दोस्तों ऊँचा रहन-सहन का सच्चा अभिप्राय यही है कि मनुष्य की सभी विवेकशील आवश्यकताएँ आसानी से पूर्ण हो जाय | जैसे उसे उचित मात्रा में पौष्टिक भोजन मिले |  उसके पास स्वस्थ हवादार घर हो | वह अपने बच्चों को उचित शिक्षा दिलवा सकें | और कुछ भविष्य के लिए बचत कर सके | ताकि वह भविष्य में उन्नति और आत्म विकास के साथ संतोष और तृप्ति पा सके।

मेरे भाई हमारा रह सहन ऊँचा कैसे होगा | उसके सबसे पहली जरूरत है हमारे अंदर विवेक का होना | अर्थात् हमें चाहिये कि अधिक बचत करने में प्रयत्नशील रहें। इससे भी अधिक यह आवश्यक है कि जो कुछ हमें प्राप्त हो उसका विवेक पूर्ण तरीके से खर्च करें | प्रत्येक पैसे से अधिकतम लाभ उठाया जाय। विवेकहीनता के कारण भारतवासियों को सबसे अधिक कष्ट उठाना पड़ रहा है।

शिक्षा की वृद्धि की जाय। अर्थ शास्त्र का ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है। उद्योग धंधों की शिक्षा का प्रबन्ध होना चाहिए। प्रत्येक स्त्री पुरुष को उद्योगी बनाया जाय, आलस्य या पर्दे में न बैठने दिया जाय। स्त्रियाँ घरेलू धन्धे जैसे-कताई, बुनाई, रंगाई, पढ़ना, लिखना, सीना, पिरोना, कटाई इत्यादि का कार्य करें। कुछ बाहर नौकरियाँ भी कर सकती हैं। तीज त्यौहारों, विवाह, मृत्यु, और मुकदमेबाजी में, शराबखोरी और सस्ती चटोरी दिखावटी वस्तुओं से रुपया बचाकर निपुणता दायक पदार्थों में व्यय किया जाय।

मेरे भाई अपने जीवन से झूठा दिखावा, विलासिता, फैशन निकाल दो। और अपने धन का उपयोग ठोस पौष्टिक खाद्य पदार्थों, हवादार मकानों, शिक्षा, स्वास्थ्य इत्यादि पर करना सीखो।

एक छोटा सा वाक्य अपने दिमाग में भर लो | सुबह शाम इसे जपों | सादा जीवन और उच्च विचार | इस नियम के अनुसार ही जीवन ढ़ाल लो | जैसे-जैसे तुम मितव्ययिता और सादगी ग्रहण करते जाओगे पर्याप्त भोजन, वस्त्र, शिक्षा प्राप्त होगी, तुम्हारा स्तर ऊँचा होता जायेगा।

मेरे भाइयों मितव्ययिता को तो जीवन का एक स्वाभाविक अंग बना लेना चाहिए। जो आवश्यक खर्चे हैं, उन पर व्यय किया जाना चाहिए, फिजूल खर्ची और विलासिता की संतुष्टि में धन खर्च मत करों इस बचे धन का उपयोग अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा में खर्च करो। आपकी संपत्ति तभी तक है जब तक आप सुरक्षित हो | आपको याद है न सोमनाथ के मंदिर को १७ बार लूटा गया | और हम इसकी ख़ुशी मानते हुए देखते है बहुत से लोगों को कि हमें इतनी बार लूटा हमने फिर से इतना भव्य मंदिर बना लिया | अगर इतना पैसा अपने समाज को बलशाली बनाने में लगा दिया होता तो किसी की हिम्मत नहीं होती उस पर आक्रमण करने की | अभी भी शाम है भाइयों |

जितना ही कम रुपया प्राप्त हो, उतनी ही विवेकशीलता से बजट बना कर जीवन रक्षक पदार्थों, तत्पश्चात् प्रतिष्ठा रक्षक और निपुणता रक्षक पदार्थों में व्यय करना चाहिए। पारिवारिक बजट बहुत सोच समझ कर विवेक पूर्ण रूप से बनाना चाहिए। बचत की रकम पहले ही पृथक कर लेनी चाहिए।

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